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Himachal Pradesh: हिमाचल का आर्थिक ‘संकट’ और ‘चार्वाक’ दर्शन

अपनी ठंडक के लिए मशहूर पहाड़ी राज्य हिमाचल आजकल अपनी ‘आर्थिक गर्मी’ के लिए चर्चा में है। इस ‘आर्थिक गर्मी’ से मेरा क्या तात्पर्य है इसको समझने के लिए हमें हाल ही में प्रकाशित कुछ मीडिया रिपोर्ट्स पर ध्यान देने की आवश्यकता है। पहली रिपोर्ट हैं ‘अमर उजाला’ की, जिसका शीर्षक है ‘हिमाचल सरकार का खजाना खाली, छह निगमों-बोर्डों के कर्मचारियों को नहीं मिला वेतन।’ यह रिपोर्ट आगे बताती है कि पथ परिवहन निगम (एचआरटीसी) कर्मियों, पंप ऑपरेटरों, वन निगम के दैनिक भोगियों और आउटसोर्स स्वास्थ्य कर्मियों समेत छह निगमों-बोर्डों के कर्मचारियों को 10 तारीख के बाद भी जून का वेतन नहीं मिला है। वहीं दूसरी रिपोर्ट है ‘दैनिक भास्कर’ की, जिसमें कहा गया है ‘खजाना खाली होने से सैलरी पर संकट।’ इस रिपोर्ट में बताया गया है कि आर्थिक बदहाली की वजह से प्रदेश के 15 हजार से ज्यादा कर्मचारियों को मई महीने की सैलरी नहीं मिल पाई है। जबकि आमतौर पर अधिकांश विभागों, बोर्ड व निगमों में सैलरी पहली तारीख को मिल जाती है।

7 जून 2023 को अंग्रेजी समाचार पत्र ‘द ट्रिब्यून’ के ऑनलाइन संस्करण में Himachal Government set to raise Rs 800 crore loan for ‘development’ शीर्षक से एक समाचार छपा है। और कई मीडिया पोर्टल्स में भी यह समाचार आया है। उपरोक्त मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश आर्थिक संकट से जूझ रहा है और मुख्यमंत्री सुखविन्दर सिंह सुक्खू के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार की राह आसान नही दिख रही है। यह आर्थिक संकट कितना गहरा है इस बात का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि हिमाचल के मुख्यमंत्री सुखविन्दर सिंह सुक्खू प्रदेश की आर्थिक स्थिति को लेकर ‘वाइट पेपर’ लाने की बात कह चुके हैं। हिमाचल कांग्रेस और मुख्यमंत्री प्रदेश की खस्ता आर्थिक हालत को लेकर अपनी पूर्ववर्ती भाजपा सरकार पर सारा दोष मढ़ते आये हैं। वहीं भाजपा नेता और पूर्व मुख्यमंत्री भी इस मामले में फ्रंट फुट पर खेल रहे हैं।

कुछ दिन पहले मुख्यमंत्री सुखविन्दर सिंह सुक्खू ने बताया था कि पहाड़ी राज्य हिमाचल पर लगभग 76 हजार करोड़ से अधिक का कर्ज है। लेकिन वास्तविकता कुछ ऐसी है कि वर्तमान कांग्रेस सरकार के गले की फास बन रही हैं उनकी चुनावी ‘फ्री’ घोषणाएं, कर्मचारियों का मासिक वेतन, पेंशन आदि। विकास के कार्य अभी ठंडे बस्ते में हैं। हिमाचल की अर्थव्यवस्था बुरी तरह हांफ चुकी है और हालात यह है कि हिमाचल की अर्थव्यवस्था ओवरड्राफ्ट की चिंताजनक स्थिति में पहुंच गई है। जानकारों के अनुसार हिमाचल में 1 हजार करोड़ रुपये का घाटा चल रहा है और इसी घाटे का उपचार करने के लिए अब सरकार 800 करोड़ रुपए का ऋण लेने की तैयारी कर रही है।

गौरतलब है कि हिमाचल प्रदेश विकास कार्यो को लेकर अधिकांश केंद्र सरकार पर ही निर्भर रहता है। पिछले लगभग 2 दशकों का ट्रेंड रिकॉर्ड तो कुछ ऐसा ही है। लेकिन अब परिस्थिति थोड़ी विकट हुई है बल्कि हिमाचल प्रदेश की राह अब और कठिन हुई है। हिमाचल प्रदेश के ऋण लेने की सीमा जो लगभग 14 हजार 500 करोड़ रुपए थी, अब केंद्र सरकार ने घटाकर लगभग 9 हजार करोड़ रुपए कर दी है अर्थात हिमाचल के ऋण लेने की सीमा को लगभग 5 हजार 500 करोड़ रुपए तक घटा दिया गया है। इसी कड़ी में केंद्र सरकार ने हिमाचल प्रदेश सरकार को नेशनल पेंशन सिस्टम के लिए मिलने वाली मैचिंग ग्रांट भी रोक दी है। हिमाचल सरकार को एनपीएस के लिए केंद्र से 1 780 करोड़ रुपए पेंशन के मिलते थे। साल 2023-24 के बजट के अनुसार राज्य सरकार कुल जीडीपी का 3 प्रतिशत रकम के बराबर ही कर्ज ले सकती है। इससे पहले प्रदेश सरकार 6 प्रतिशत तक लोन उठा रही थी। इस नियम में रियायत न मिलने पर सरकार की राह लगातार मुश्किल होती दिख रही है।

कदाचित सुखविंदर सुक्खू की सरकार अब चुनावों के समय किये वादों को पूरा करने के लिए 800 करोड़ रुपये का ऋण लेने वाली है। वहीं अब यह बात भी बाहर निकलकर आ रही है कि सरकार के पास कर्मचारियों की सेलरी और और पेंशनर्स की पेंशन देने के लिए भी पैसा नहीं है और सरकार पर भारी दबाव है। इससे पहले दिसंबर 2022 में सत्ता में आई सुक्खू सरकार ने वित्त वर्ष 2022-23 में 3200 करोड़ रुपये का कर्ज लिया था और अब जून में फिर से 800 करोड़ रुपये नया कर्ज लेने के बाद हिमाचल पर 76 हजार करोड़ से अधिक का कर्ज हो जाएगा।
हिमाचल आर्थिक मामलों जानकारों के अनुसार खर्च किए जाने वाले प्रत्येक 100 रुपये में से 26 रुपये वेतन पर, 16 रुपये पेंशन पर, 10 रुपये ब्याज भुगतान पर, 10 रुपये ऋण अदायगी पर, 9 रुपये स्वायत्त संस्थानों को अनुदान देने पर और 29 रुपये पूंजीगत कार्यों सहित अन्य गतिविधियों पर खर्च किए जाएंगे। इसके आलावा बजट में प्रमुख घोषणाओं में 2.31 लाख महिलाओं को 1,500 रुपये प्रति माह, पुरानी पेंशन योजना की बहाली, 1.36 लाख कर्मचारियों को लाभ, और सौर ऊर्जा और अन्य हरित पहलों को बढ़ावा देने के लिए सब्सिडी शामिल हैं।
यह स्वाभाविक है कि कांग्रेस द्वारा चुनावों में की गयी इन आर्थिक भार बढ़ाने वाली और ‘फ्री’ की घोषणायें भी हिमाचल की अर्थव्यवस्था पर अपना दुष्प्रभाव दिखायेंगी। कदाचित इसलिए ही हिमाचल सरकार अब 800 करोड़ रूपए का लोन लेने जा रही है। महाभारत के शांति पर्व के अध्याय 38 और 39 में चार्वाक नामक राक्षस का वर्णन आता है। चार्वाक दर्शन के नाम से प्रसिद्ध एक दर्शन भी है, जिसे नास्तिक दर्शन के नाम से भी जाना जाता है। राक्षस चार्वाक के दर्शन का एक श्लोक बहुत प्रसिद्ध है:

यावत् जीवेत् सुखम् जीवेत्।
ऋणं कृत्वा घृतं पिबेत्।
भस्मिभूतस्य देहस्य पुनरागमनं कुतः।
अर्थ: ‘जब तक जियो सुख से जियो और कर्ज लेकर भी घी पियो, भस्म हो जाने के बाद शरीर वापस नही आता है।‘

चार्वाक दर्शन का यह श्लोक हिमाचल प्रदेश की वर्तमान कांग्रेस सरकार पर सटीक बैठता है।लोगों को लुभाने वाली और ‘फ्री’ की रेवड़ियां बांटने वाली घोषणायें करना आसान है लेकिन उन्हें धरातल पर उतारना बहुत कठिन काम है। शायद इस आर्थिक संकट से हिमाचल सरकार और हिमाचल की जनता को यह एहसास हो रहा होगा। भारत के दूसरे राज्यों के लोगों को हिमाचल के इस आर्थिक संकट के प्रकरण से सीख लेना चाहिए।

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