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Assam Muslim Census: असम में अब स्थानीय और बाहर से आए मुस्लिमों की होगी पहचान, हिमंत बिस्व सरमा सरकार का बड़ा फैसला

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गुवाहाटी। असम में अब मुस्लिमों की गणना का काम होगा। इस गणना से ये पता लगाया जाएगा कि कौन असम का मूल निवासी मुस्लिम है और कौन बाहर यानी बांग्लादेश या म्यांमार से राज्य में दाखिल हुआ है। असम की हिमंत बिस्व सरमा सरकार की शुक्रवार को हुई कैबिनेट बैठक में मुस्लिमों की गणना कराने का फैसला हुआ है। असम में मुस्लिमों की गणना का ये काम अल्पसंख्यक और चार इलाका निदेशालय करेगा। इससे पहले हिमंत बिस्व सरमा की सरकार ने मुस्लिमों के 5 समुदायों को असम का मूल निवासी माना था। असम में मुस्लिमों की गणना कराने के बीजेपी सरकार के फैसले से सियासत के गरमाने के आसार हैं। देश में असम पहला ऐसा राज्य होगा, जहां गणना से पता लगाया जाने वाला है कि वहां का स्थानीय मुस्लिम निवासी कौन है और बाहर से कितने मुस्लिम आए हैं।

असम में स्थानीय मुस्लिमों की पहचान करने का फैसला हिमंत बिस्व सरमा सरकार ने किया है।

अगर असम में मुस्लिमों की आबादी की बात करें, तो ये 1 करोड़ से कुछ ऊपर है। 2011 की जनगणना के अनुसार उस वक्त असम की कुल जनसंख्या 3.1 करोड़ आंकी गई थी। असम में जो 1 करोड़ से कुछ ऊपर मुस्लिम हैं, उनमें से 40 लाख ही असमिया बोलते हैं और वहां पीढ़ियों से रह रहे हैं। बाकी को बांग्लादेश और म्यांमार से आया हुआ माना जाता है। इसी साल अक्टूबर महीने में असम के सीएम हिमंत बिस्व सरमा ने बताया था कि राज्य की बीजेपी सरकार असम के स्थानीय मुस्लिमों का आर्थिक और सामाजिक सर्वे कराएगी। ताकि उनकी बेहतरी के लिए योजनाएं बनाई जा सकें। असम सरकार ने गोरिया, मोरिया, जोलाह, सैयद और देसी को ही असम का मूल निवासी मुस्लिम माना है। इन सभी के पुरखों ने 13वीं से 17वीं सदी के बीच इस्लाम अपनाया था।

असम में मुस्लिमों के इन 5 समुदाय के लोग असमिया भाषा बोलते हैं और इनके कई रीति-रिवाज हिंदुओं से भी मिलते हैं। जबकि, बाकी मुस्लिम बांग्लाभाषी हैं। वे असमिया नहीं बोलते। इसी वजह से उनके बांग्लादेश (पहले पूर्व पाकिस्तान) से आकर असम में बसने की बात कही जाती है। बता दें कि हिमंत बिस्व सरमा ने पहले असम में मदरसों को बंद करने और इनके छात्रों को आधुनिक सरकारी स्कूलों में भर्ती कराने का भी आदेश दिया था। उसे लेकर भी जमकर सियासत गरमाई थी।

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