नई दिल्ली। भारतीय रेलवे ने सोलर पॉवर की बिजली से ट्रेन दौड़ाने के लिए पूरी तैयारी कर ली है।इसके लिए रेलवे ने अपने पायलट प्रोजेक्ट के अंतर्गत मध्य प्रदेश के बीना में सोलर पावर प्लांट को स्थापित किया है। इस तरह का संचालन दुनिया के इतिहास में पहली होगा।
बता दें कि मध्य प्रदेश के बीना में सोलर पावर प्लांट को स्थापित किया है जिससे 1.7 मेगा वाट की बिजली का उत्पादन हो सकता है और इस बिजली से ट्रेनों को दौड़ाने की तैयारी है। रेलवे का दावा है कि दुनिया के इतिहास में यह पहली बार है जब सौर ऊर्जा का इस्तेमाल ट्रेनों को चलाने के लिए किया जाएगा। इस पावर प्लांट की खास बात यह है कि यहां से 25 हजार वोल्ट की बिजली पैदा होगी जिसे डायरेक्ट रेलवे के ओवरहेड पर ट्रांसफर किया जाएगा और इसकी मदद से ट्रेनों को दौड़ाया जाएगा।
बीएचईएल के सहयोग से मध्य प्रदेश के बीना में रेलवे की खाली पड़ी जमीन पर 1.7 मेगावाट क्षमता वाले सोलर पॉवर प्लांट को तैयार किया गया है। पूरी दुनिया में ऐसा पावर प्लांट नहीं लगा है, जिससे ट्रेन को चलाया जा सके। दुनिया के अन्य रेलवे नेटवर्क, सौर ऊर्जा का उपयोग मुख्य रूप से स्टेशनों, आवासीय कॉलोनियों और दफ्तरों की बिजली की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए करते हैं।
Indian Railways Sets Global Standards: In a one-of-a-kind instance, Railways sets up a Solar Power Plant in Bina in Madhya Pradesh to directly power the Railway Overhead Line. pic.twitter.com/PPdtydjLi4
— Piyush Goyal (@PiyushGoyal) July 5, 2020
भारतीय रेलवे ने कुछ डिब्बों की छत पर सौर ऊर्जा पैनल भी लगाए हैं, जिनसे ट्रेन के डिब्बों में बिजली की आपूर्ति हो रही है। लेकिन अब तक, किसी भी रेलवे नेटवर्क ने ट्रेनों को चलाने के लिए सौर ऊर्जा का उपयोग नहीं किया है। सोलर प्लांट डीसी बिजली उत्पन्न करेगा जो एक इनवर्टर के माध्यम से एसी में परिवर्तित होगा और एक ट्रांसफार्मर के माध्यम से 25KV एसी की ऊर्जा को ओवर हेड (ट्रेनों के ऊपर लगे बिजली के तार) तक पहुंचाएगा इस सोलर प्लांट से सालाना 24.82 लाख यूनिट बिजली का उत्पादन होगा। रेलवे को इस प्लांट से सालाना बिजली बिल में 1.37 करोड़ रुपये की बचत की उम्मीद है।
बता दें कि पिछले साल नवंबर में इस परियोजना की नींव रखी गई थी। रेलवे अधिकारियों के मुताबिक कुल 3 गीगावाट की क्षमता वाला सोलर पावर प्लांट लगाने की योजना है। ये पावर प्लांट सीधे इंजनों तक पहुंचेंगे। इन्हें तैयार करने का काम 2-3 वर्षों में पूरा कर लिया जाएगा। इसके लिए पहले ही टेंडर्स आमंत्रित किए जा चुके हैं।