नई दिल्ली। बिहार के लिए बजट में करीब 64000 करोड़ का स्पेशल पैकेज हासिल करने के बाद अब नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू ने केंद्र की मोदी सरकार के सामने नई मांग रख दी है। जेडीयू की मांग है कि बिहार में जातिगत सर्वे के बाद आरक्षण बढ़ाने का जो कानून विधानसभा से पास कराया गया था, उसे मोदी सरकार संविधान की नौवीं अनुसूची में डाल दे। नौंवी अनुसूची में डालने से किसी भी कानून की न्यायिक समीक्षा नहीं हो पाती है। नौंवी अनुसूची में अब तक 284 कानून डाले जा चुके हैं।
अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस से जेडीयू के प्रवक्ता केसी त्यागी ने इस बारे में बातचीत करते हुए कहा कि हमारे पास सीमित विकल्प हैं। केंद्र सरकार को हमारी मांग पर विचार करना चाहिए। उन्होंने कहा कि चीजों को व्यापक संदर्भ में देखने की जरूरत है। केसी त्यागी ने कहा कि जेडीयू दबाव की राजनीति पर भरोसा नहीं करती। खास बात ये भी है कि जेडीयू की तरफ से आरक्षण को बढ़ाने वाला कानून संविधान की नौंवीं अनुसूची में डालने के मसले पर मोदी सरकार भी दबाव में जरूर आने वाली है। अगर सरकार इस बढ़े हुए आरक्षण के कदम को बचाने की कोशिश नहीं करती, तो उस पर ओबीसी विरोध का तमगा लग सकता है।
बिहार में जब नीतीश कुमार कांग्रेस और आरजेडी के साथ महायुति की सरकार चला रहे थे, उस वक्त उन्होंने जातिगत सर्वे कराया था। इस सर्वे के नतीजे आने के बाद बिहार विधानसभा में नीतीश कुमार ने आरक्षण को 50 से बढ़ाकर 65 फीसदी करने का कानून पास भी कराया। इस कानून पर पटना हाईकोर्ट ने रोक लगा दी। पटना हाईकोर्ट की रोक के खिलाफ नीतीश कुमार सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया, लेकिन देश की सबसे बड़ी अदालत ने सोमवार को झटका देते हुए पटना हाईकोर्ट के आदेश पर स्टे देने से इनकार कर दिया था। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट अपने कई फैसलों में कह चुका है कि 50 फीसदी से ज्यादा आरक्षण नहीं दिया जा सकता। कई राज्यों में इससे इतर आरक्षण दिए जाने की कोशिशों पर भी सुप्रीम कोर्ट ने पहले रोक लगाई थी।