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Modi In Mangarh Dham: राजस्थान के जिस मानगढ़ धाम में अंग्रेजों ने किया था जलियांवाला बाग से बड़ा नरसंहार, वहां आज पहुंचेंगे PM मोदी

मानगढ़ टेकरी में आदिवासी समाजसेवी गोविंद गुरु के समर्थकों ने अंग्रेजों और रजवाड़ों की संयुक्त फौज से मोर्चा लिया था। भगत आंदोलन के नाम से ये सभी बंधुआ मजदूरी के खिलाफ थे। गोविंद गुरु बंजारा समुदाय के थे। वो डूंगरपुर के वेदसा गांव के निवासी थे। 1890 के दशक में उन्होंने आंदोलन शुरू किया था। वे अग्नि की पूजा करते थे।

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बांसवाड़ा। पीएम नरेंद्र मोदी आज राजस्थान के बांसवाड़ा जिले स्थित मानगढ़ धाम जाने वाले हैं। वो यहां नरसंहार के शहीदों को श्रद्धांजलि देंगे। मानगढ़ धाम को राजस्थान के आदिवासी अपना तीर्थ मानते हैं। यहां अंग्रेजों ने रजवाड़ों के सिपाहियों के साथ मिलकर करीब 109 साल पहले बड़ा नरसंहार किया था। ये नरसंहार पंजाब के जलियांवाला बाग कांड से भी बड़ा था। मानगढ़ धाम में मोदी एक जनसभा करेंगे। इसमें राजस्थान, गुजरात और मध्यप्रदेश से हजारों आदिवासी शामिल होंगे। मोदी आज मानगढ़ धाम को राष्ट्रीय स्मारक भी घोषित कर सकते हैं। राजस्थान, गुजरात और मध्यप्रदेश की 99 विधानसभा सीटें आदिवासी बहुल हैं। ऐसे में मोदी का यहां आना सियासी मायने में भी अहम है। चलिए, आपको बताते हैं मानगढ़ धाम में हुए नरसंहार के बारे में।

आदिवासी समाजसेवी गोविंद गुरु और मानगढ़ धाम नरसंहार का स्केच

मानगढ़ टेकरी में आदिवासी समाजसेवी गोविंद गुरु के समर्थकों ने अंग्रेजों और रजवाड़ों की संयुक्त फौज से मोर्चा लिया था। भगत आंदोलन के नाम से ये सभी बंधुआ मजदूरी के खिलाफ थे। गोविंद गुरु बंजारा समुदाय के थे। वो डूंगरपुर के वेदसा गांव के निवासी थे। 1890 के दशक में उन्होंने आंदोलन शुरू किया था। उनके समर्थक अग्नि की पूजा करते थे। साल 1903 में गोविंद गुरु मानगढ़ आए थे। 1910 तक उन्होंने खूब आंदोलन किया। बंधुआ मजदूरी के अलावा बड़ा लगान और उत्पीड़न के खिलाफ आवाज उठाई। इन मांगों को मानने से रजवाड़ों और अंग्रेजों ने साफ इनकार कर दिया। अंग्रेजों ने मानगढ़ पहाड़ी से गोविंद गुरु को गिरफ्तार किया और फिर उम्रकैद की सजा सुना दी। उनको बाद में रिहा किया गया, लेकिन कई जगह जाने पर रोक लगा दी।

मानगढ़ धाम शहीद स्थल पर बना म्यूरल। इसमें आदिवासियों और अंग्रेजों का संघर्ष दिखाया गया है

गोविंद गुरु उसके बाद गुजरात के कंबोई में रहने लगे। वहीं, गोविंद गुरु के समर्थकों ने आजादी का एलान कर दिया। अंग्रेजों की चौकी पर हमले करने लगे। फिर अंग्रेजों और रजवाड़ों ने इनको कुचलने का प्लान बनाया। 1913 में भगत आंदोलनकारियों को मानगढ़ खाली करने की चेतावनी दी गई। इसके लिए 15 अक्टूबर तक का वक्त दिया गया। गोविंद गुरु के समर्थकों ने पहाड़ी खाली करने से इनकार कर दिया। देसी तमंचे और तलवारों से उन्होंने मोर्चा लिया। अंग्रेजों और रजवाड़ों ने आंदोलनकारियों पर तोपों और बंदूकों का इस्तेमाल किया। मेजर एस. बेली, कैप्टन ई. स्टॉइली और कैप्टन आरई हैमिल्टन ने हमले किए। इसमें 1500 से ज्यादा आदिवासी शहीद हुए। एक अंग्रेज ने तब गोलीबारी रुकवाई, जब उसने देखा कि एक मृतक महिला का बच्चा उसका स्तनपान कर रहा है। करीब 900 लोगों को गिरफ्तार किया गया। साल 1931 में गोविंद गुरु का निधन कंबोई में हुआ। वहां उनका मंदिर भी है।

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