नई दिल्ली। इन्फोसिस के संस्थापक एनआर नारायण मूर्ति ने 70 घंटे काम करने की वकालत की थी। वहीं, बीते दिनों एलएंडटी के चेयरमैन एसएन सुब्रहमण्यम ने हफ्ते में 90 घंटे काम करने की वकालत की। काम के घंटे बढ़ाने के पक्षधर एनआर नारायण मूर्ति और एसएन सुब्रहमण्यम को इसी वजह से ट्रोल होना पड़ा। सवाल ये है कि क्या हफ्ते में इतना काम किया जा सकता है? क्या ज्यादा काम करने का स्वास्थ्य पर असर पड़ता है? तो चलिए इसकी पड़ताल करते हैं कि अगर हर हफ्ते हम ज्यादा काम करें, तो इससे हमारे स्वास्थ्य के लिए किसी तरह का खतरा होता है या नहीं?
हफ्ते में ज्यादा घंटे तक काम करने के बारे में विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी डब्ल्यूएचओ और संयुक्त राष्ट्र के इंटरनेशनल लेबर ऑर्गेनाइजेशन यानी आईएलओ ने साल 2016 में एक शोध कराया था। डब्ल्यूएचओ और आईएलओ के शोध में पता चला कि हर हफ्ते ज्यादा काम की वजह से किसी व्यक्ति के स्वास्थ्य पर कैसा प्रभाव पड़ता है? शोध से पता चला कि साल 2016 में लंबे वक्त तक काम करने के कारण कोरोनरी हार्ट डिजीज और स्ट्रोक से दुनियाभर में 7.45 लाख लोगों की जान गई। ये साल 2000 में लंबे समय तक काम करने में हुई मौतों से 29 फीसदी ज्यादा रहीं। डब्ल्यूएचओ और आईएलओ के शोध में ये भी सामने आया कि अगर कोई हर हफ्ते 55 या इससे ज्यादा घंटे काम करता है, तो 35 से 40 घंटे काम करने वाले के मुकाबले उसमें 35 फीसदी स्ट्रोक और 17 फीसदी कोरोनरी हार्ट डिजीज के कारण मौत का खतरा बढ़ता है।
इन्फोसिस संस्थापक एनआर नारायण मूर्ति ने चीन का उदाहरण देते हुए कहा था कि हर हफ्ते काम के घंटे 70 होने चाहिए। उन्होंने कहा था कि हमें अपनी आकांक्षाओं को ऊंचा रखना होगा। नारायण मूर्ति ने कहा था कि देश के विकास के लिए हमें कड़ी मेहनत करनी होगी। जब तक भारतीय कर्मचारी काम के प्रति समर्पण नहीं करते, तब तक देश में गरीब और अल्पविकास का जोखिम रहेगा। वहीं, एलएंडटी के चेयरमैन एसएन सुब्रहमण्यम ने कहा था कि कब तक घर पर बैठकर पत्नी को निहारते रहोगे। ये कहते हुए उन्होंने 90 घंटे तक काम करने का पक्ष लिया था।