नई दिल्ली। दलाई लामा के उत्तराधिकारी पर भारत ने चीन के एकाधिकार जताने को साफ तौर पर खारिज कर दिया है। मोदी सरकार में अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा कि दलाई लामा के उत्तराधिकारी का चुनाव स्थापित परंपराओं और खुद दलाई लामा की मर्जी से होगा। किरेन रिजिजू ने साफ कहा कि दलाई लामा के उत्तराधिकारी चुनाव में कोई और अधिकार नहीं रखता। मीडिया की ओर से पूछे जाने पर किरेन रिजिजू ने कहा कि दलाई लामा बौद्धों के सबसे बड़े और पारिभाषित करने वाली संस्था हैं। केंद्रीय मंत्री ने कहा कि दलाई लामा के अनुयायी मानते हैं कि अवतार सिर्फ स्थापित परंपरा और मौजूदा दलाई लामा की इच्छा से ही तय होगा।
मोदी सरकार में मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा कि भारत में रहने वाले बौद्ध दलाई लामा की शिक्षा और परंपरा को मानते हैं। उन्होंने कहा कि कोई और व्यक्ति या देश ये फैसला नहीं कर सकता कि दलाई लामा का उत्तराधिकारी कौन होगा। इससे पहले चीन ने कहा था कि अगले दलाई लामा को उससे स्वीकृति लेनी होगी और अपनी पहचान भी चीन में ही बतानी होगी। इस तरह देखा जाए, तो दलाई लामा पर एकाधिकार के चीन के रुख के उलट भारत की राय आ गई है। चीन का दलाई लामा के उत्तराधिकारी के बारे में बयान इस वजह से आया था, क्योंकि बुधवार को मौजूदा दलाई लामा ने साफ कहा था कि उनकी ओर से गठित गादेन फोडरोंग ट्रस्ट ही उत्तराधिकारी को मान्यता देने वाली एकमात्र संस्था है। 6 जुलाई को अपने 90वें जन्मदिन से पहले दलाई लामा ने ये अहम एलान किया है।
दरअसल, चीन हमेशा दलाई लामा का विरोध करता है। जब चीन ने तिब्बत पर कब्जा किया था, तब मौजूदा दलाई लामा ल्हासा में ही रहते थे। चीन की सरकार ने दलाई लामा पर तमाम प्रतिबंध लगाए थे। दलाई लामा की जान को भी खतरा हो गया था। इसे भांपते हुए मौजूदा दलाई लामा साल 1959 में तमाम अनुयायियों के साथ तिब्बत से भागकर भारत आ गए थे। उनको जवाहरलाल नेहरू की तत्कालीन सरकार ने शरण दी थी। दलाई लामा और उनके तिब्बती अनुयायी तभी से हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में रहते हैं। धर्मशाला से तिब्बत की निर्वासित सरकार भी चलती है। चीन इसी वजह से दलाई लामा से बौखलाया हुआ है और खुद उनका उत्तराधिकारी चुनकर ल्हासा की गद्दी पर बिठाने की जुगत भिड़ा रहा है।