लखनऊ। समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने जनता को झांसा देने वाला बयान दिया है। अखिलेश ने ये बयान जातीय जनगणना के बारे में दिया है। आज सपा दफ्तर में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस करते हुए अखिलेश ने कहा कि सरकार बनने पर 3 महीने के भीतर वो जातिगत जनगणना कराएंगे। उन्होंने ये भी कहा कि जरूरत पड़ी, तो दलितों और पिछड़ों को उनकी जनसंख्या के आधार पर सरकार की कल्याणकारी योजनाओं में लाभ दिया जाएगा। मजे की बात ये है कि जिस जातिगत जनगणना कराने का एलान अखिलेश कर रहे हैं, उसका अधिकार राज्यों की सरकारों के पास होता ही नहीं है। जनगणना कराने का जिम्मा केंद्र सरकार के पास होता है। केंद्र की मोदी सरकार इस मसले पर सुप्रीम कोर्ट में भी कह चुकी है कि वो जातिगत जनगणना नहीं कराएगी। वहीं, दलितों को सरकारी योजनाओं में लाभ दिए जाने वाले बयान पर इसलिए भी सवाल उठते हैं, क्योंकि बीते कल ही भीम आर्मी के चीफ चंद्रशेखर ने अखिलेश यादव पर दलित विरोधी होने के आरोप लगाए हैं। अखिलेश यादव के इन बयानों पर यूपी बीजेपी के प्रवक्ता संजय चौधरी ने हैरानी जताई है। उन्होंने कहा कि जनगणना तो केंद्र सरकार कराती है, लेकिन क्या कहा जाए जब अखिलेश यादव ऑस्ट्रेलिया से इंजीनियरिंग करके आए, लेकिन उन्हें ये तक पता नहीं कि वर्चुअल रैली क्या होती है। संजय चौधरी ने कहा कि अखिलेश ऐसे ही झांसा देने वाले बयान देते रहते हैं और जनता को भरमाकर वोट हासिल करने की फिराक में हैं। उन्होंने कहा कि जो सपना सपा अध्यक्ष ने पाला हुआ है, वो 10 मार्च को टूट जाएगा।
चंद्रशेखर ने अखिलेश से मुलाकात के बाद बाकायदा प्रेस कॉन्फ्रेंस करके कहा था कि वो अखिलेश यादव की पार्टी के साथ गठबंधन करना चाहते थे, लेकिन अखिलेश ने उनका सम्मान नहीं किया। चंद्रशेखर ने ये भी कहा था कि अखिलेश यादव ने सिर्फ उनका ही नहीं, बल्कि पूरे दलित समाज का अपमान किया है। चंद्रशेखर ने अपने दम पर चुनाव लड़ने का भी एलान किया और कहा था कि वो दिखाएंगे कि पश्चिमी यूपी में उनकी पार्टी कितना दम रखती है।
अखिलेश आज दलितों के लिए योजनाएं बनाने और उनका लाभ देने की बात कर रहे थे, लेकिन इसी मुद्दे पर बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने भी उन्हें कल घेरा था। मायावती ने बयान दिया था कि अखिलेश दलित विरोधी हैं। मायावती ने इसके लिए यूपी के रमाबाई नगर जिले का उदाहरण दिया था। बीएसपी सुप्रीमो ने कहा था कि रमाबाई नगर का नाम बीएसपी सरकार के दौरान उन्होंने रखा था। जबकि, 2012 में यूपी की सत्ता संभालते ही अखिलेश यादव ने इस नाम को हटा दिया। बता दें कि मायावती के साथ अखिलेश ने 2019 के लोकसभा चुनाव के वक्त गठबंधन किया था, लेकिन नतीजों में खस्ता हाल होने के बाद मायावती ने गठबंधन तोड़ने का एलान कर दिया था।