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WB: बंगाल में एक और मासूम की मौत से पसरा मातम, लेकिन ममता मुलाकातों में व्यस्त, प्रियंक कानूनगो ने दिलाई CM को नैतिकता की याद

नई दिल्ली। इसे राजनीतिक तुष्टिकरण की इंतहा नहीं, तो और क्या कहेंगे कि जहां एक तरफ लगातार मासूम बच्चे मौत के गाल में समा रहे हैं, तो वहीं दूसरी तरफ मुख्यमंत्री ममता बनर्जी इन सबसे बेखबर अभी से ही चुनाव जीतने की स्क्रिप्ट लिखने में मशगूल हैं। कायदे से इन्हें मासूम बच्चों के माता-पिता की गुहार की ओर कान लगाना चाहिए, लेकिन नहीं सियासत इंसान को किस कदर गिरा देती है, उसका ताजा नमूना अगर आपको कहीं देखने को मिलेगा, तो वो है पश्चिम बंगाल।

अब आप सोच रहे होंगे कि आखिर पश्चिम बंगाल में ऐसा हो क्या रहा है, तो आपको बता दें कि पहले उत्तर दिनाजपुर और अब मालदा से दिल दहला देने वाली खबर आई है। दिनाजपुर के बाद अब मालदा में एक मासूम बच्चे ने दम तोड़ दिया। यह किसी बच्चे की दूसरी मौत है। इससे पहले दिनाजपुर में एक बच्ची की मौत हो गई थी। तब बच्ची के साथ दुष्कर्म कर उसके शव को नदी में फेंक दिया गया था। बीजेपी ने तब ममता सरकार के खिलाफ मोर्चा भी खोला था और मामले में शामिल आरोपियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की भी मांग की थी, लेकिन जैसा कि हमने आपको बताया कि सियासत किसी इंसान को किस कदर नीचा गिरा देती है, इसका अगर आपको कहीं नमूना देखने को मिलेगा, तो वो है पश्चिम बंगाल।

अपनी हर तकरीरों में महिला सुरक्षा पर बड़ी–बड़ी बातें करने वालीं ममता ने संवेदनाओं को झकझोर कर रख देने वाले इस मसले की ओर ध्यान देने के बजाय नीतीश कुमार और तेजस्वी से मुलाकात करना ज्यादा जरूरी समझा। दीदी को वैसे भी मोदी जी को हराना है, तो यह मुलाकात तो जरूरी है, लेकिन हम कहना चाहेंगे कि मोदी जी को हराइए ना। रोका किसने है आपको। देश का संविधान आपको यह अधिकार देता है कि अगर आप में सियासी प्रबुद्धता और प्रतिबद्धता है, तो आप अपने सियासी प्रतिद्वंदियों को शौक से हराइए, लेकिन जरा उन मासूमों के माता-पिता के गुहार की ओर से कान लगाने की जहमत भी उठाइए ना, जिनके घर पर इस वक्त मातम पसरा है, लेकिन नहीं आपके लिए चुनाव जीतना जरूरी हो जाता है, बाकी बातें बाद में।

खैर, आज इन्हीं दिल पसीज देने वाली घटनाओं को जब दृश्यों के रूप में जब सोशल मीडिया पर प्रियंक कानूनगो ने साझा किया, तो देखने वालों के दिल दहल गए और जिसने भी देखा उसने ममता दीदी को उनके नैतिक कर्तव्यों की याद दिलाने से अपने कदम पीछे नहीं किए। नैतिक कर्तव्यों से मतलब कि सियासत छोड़कर जरा जनता के हित पर भी ध्यान दें, बात बेशक कड़वी है, लेकिन कोई गुरेज नहीं कहने में कि सौ टका सही है। बहरहाल, मसले से वाकिफ होने के बाद दीदी का अगला कदम क्या होगा। यकीनन, देखना दिलचस्प रहेगा।

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