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श्रमिक स्पेशल ट्रेन में अब जोड़े जाएंगे आइसोलेशन वार्ड में बदले गए रेल डिब्बे!

नई दिल्ली। देश में मौजदा वक्त में कोरोना वायरस अपने चरम पर पहुंचता जा रहा है। इसके बढ़ते खतरे को देखते हुए केंद्र सरकार ने लगातार चौथी बार लॉकडाउन लगाया है जो इस महीने के अंत 31 मई तक चलने वाला है। इस बीच लॉकडाउन की वजह से देश के विभिन्न हिस्सों में फंसे प्रवासी मजदूरों के लिए चलाये जा रहे श्रमिक स्पेशल ट्रेन की जैसे-जैसे मांग बढ़ रही है, वैसे-वैसे रेलवे के लिए यात्री डिब्बों का जुटाना मुश्किल हो रहा है।

इस मुश्किल हालात से निबटने के लिए रेलवे बोर्ड ने कोविड मरीजों के लिए आइसोलेशन वार्ड में बदले गए यात्री डिब्बों को अब फिर से रेलगाड़ी में चलाने लायक बनाने का फैसला किया है। इन डिब्बों का उपयोग श्रमिक स्पेशल ट्रेन में किया जाएगा।

करीब 3000 आइसोलेशन डिब्बे बदले जाएंगे

रेलवे बोर्ड के आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि इस समय आइसोलेशन वार्ड में बदले गए सभी डिब्बों को तो नहीं लेकिन कम से कम 3000 डिब्बों को फिर से रेलगाड़ी में जोड़ने लायक बनाया जाएगा। इसमें एक सप्ताह का समय लगेगा। इसके बाद रेलवे करीब 300 श्रमिक ट्रेन और चलाने की स्थिति में आ जाएगा। इस बारे में रेलवे बोर्ड की तरफ से सभी जोनल रेलवे को बीते 21 मई को ही चिट्ठी भेजी जा चुकी है। उल्लेखनीय है कि कोविड वार्ड या आइसोलेशन वार्ड के रूप में जोनल रेलवे ने कुल 5231 कोचों को विकसित किया है।

डिब्बों में थोड़ा करना होगा बदलाव

रेलवे के इंजीनियरों का कहना है कि आइसोलेशन वार्ड के रूप में बदले गए कोचोंं को फिर से रेलगाड़ी में चलाने लायक बनाने के लिए मामूली फेरबदल करना होगा। दरअसल आइसोलेशन वार्ड बनाते वक्त डिब्बे के अंत में बने दो शौचालयों को मिला कर एक बना दिया गया था ताकि उसमें नहाने की भी सुविधा हो जाए। यही नहीं, एक रोगी का दूसरे रोगी से संपर्क नहीं हो, इसलिए कूपे में परदे की भी व्यवस्था की गई थी। इसके साथ ही कूपे में अतिरिक्त स्विच की व्यवस्था की गई थी ताकि उसमें मच्छर भगाने वाली मशीन लगायी जा सके या फिर मोबाइल फोन चार्ज करने के लिए चार्जर लगाया जा सके। कुछ कोच में पावर स्विच भी लगाया गया था ताकि जरूरत पड़ने पर उसमें वेंटीलेटर भी लगाया जा सके। अब इन सब अतिरिक्त सुविधाओं को हटा कर वैसा ही बना दिया जाएगा, जैसा कि रेलगाड़ी के आम डिब्बों में होता है।

अभी तक इन डिब्बों का नहीं हुआ है उपयोग

रेलवे ने भले ही देश भर में 5200 से भी ज्यादा रेल डिब्बों को आइसोलेशन वार्ड के रूप बदला हो, लेकिन अभी तक उनमें से एक भी डिब्बे का इस तरह से उपयोग नहीं हुआ है। अधिकारियों का कहना है कि या तो उन डिब्बों का रोगियों के लिए उपयोग हो या फिर श्रमिकों की ढुलाई में उपयोग हो। ऐसे कहीं खड़े रखने का कोई औचित्य नहीं बनता।

200 स्पेशल ट्रेन चलाने से डिब्बों की हुई कमी

रेलवे ने फैसला किया है कि आगामी एक जून से देश के विभिन्न हिस्सों में 200 मेल/एक्सप्रेस स्पेशल रेलगाड़ी चलनी है। लंबी दूरी की किसी भी गाड़ी के लिए दो से तीन रैक तो साधारण सी बात है। दिल्ली से डिब्रूगढ़ जाने वाली ट्रेन के लिए तो पांच से छह रैक रखना पड़ता है। एक रैक में 24 डिब्बे भी मान लिया जाए तो हजारों डिब्बों की आवश्यकता निकल गई है। इसलिए अब यार्ड में बेकार पड़े डिब्बों पर रेल प्रशासन की नजर गई है।

गर्मी के दिनों में शायद ही रेलवे के वार्ड का हो उपयोग

रेल अधिकारी का कहना है कि बैशाख-जेठ के तपते दिनों में रेलगाड़ी के नॉन एसी डिब्बों में 24 घंटे रहना जरा मुश्किल है। यात्रा के दौरान तो जब रेलगाड़ी दौड़ती है तो दरवाजे और खिड़की से हवा आती रहती है। लेकिन जब रेलगाड़ी के डिब्बे खड़े हों तो उसमें कितनी गर्मी लगेगी, यह सोचकर ही पसीना निकल जाता है। इसलिए 2000 डिब्बों को छोड़ कर शेष डिब्बों को फिर से रेलगाड़ी में जोड़ने का फैसला हुआ है।

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