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Kiren Rijiju: कॉलेजियम सिस्टम पर केंद्रीय कानून मंत्री का बड़ा बयान, कहा- एक बार जज बन जाने के बाद..!

नई दिल्ली। किसी भी सफल लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए यह जरूरी हो जाता है कि विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका का सुचारू संचालन हो। लोकतांत्रिक व्यवस्था में ये तीनों ही किसी गाड़ी के पहिए की भांति हैं। अगर किसी एक में भी कोई खामी आएगी, तो इसका बाकियों पर असर पड़ेगा, इसलिए सभी की कोशिश रहती है कि तीनों सुचारू रूप से संचालित हों। इसी बीच पिछले कुछ दिनों से न्यायपालिका को लेकर चर्चा जोरों पर है। पिछले कुछ दिनों से न्यायपालिका की खामियों और विशेषतौर पर जजों की नियुक्ति के लिए बनाए गए कॉलेजियम प्रणाली को लेकर चर्चाएं हो रही हैं। जिस पर सभी खुलकर अपनी राय व्यक्त करते हुए नजर आ रहे हैं। जिस पर केंद्रीय कानून मंत्री किरण रिजिजू खुलकर अपनी राय व्यक्त कर रहे हैं। अब इसी बीच उन्होंने एक बार फिर से इस पर खुलकर अपनी राय साझा की हैं। आइए, आपको बताते हैं कि उन्होंने क्या कुछ कहा है।

 

आपको बता दें कि केंद्रीय कानून मंत्री किरण रिजिजू ने कॉलेजियम सिस्टम पर अपनी राय व्यक्त की है। जिसमें उन्होंने कहा कि एक सफल लोकतंत्र के लिए न्यायपालिका का आजाद होना अनिवार्य है। उन्होंने कहा कि अगर न्यायपालिका को आजादी नहीं मिलेगी, तो लोकतंत्र सफल नहीं हो पाएगा। लोकतंत्र की सफलता के लिए न्यायपालिका का आजादा रहना अनिवार्य है। बता दें कि उन्होंने इस विषय को सीजेआई को लिखे खत में भी उठाया है। केंद्रीय मंत्री ने आगे अपने पत्र में कहा है कि जज बन जाने के बाद किसी को भी जांच का सामना नहीं करना पड़ता है और ना ही कभी वो सार्वजनिक जीवन में चुनाव लड़ता है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि आपको कोई देख नहीं दे रहा है। यह सोशल मीडिया का जमाना है। आप किसी से भी कुछ छुपा नहीं सकते हैं। आपकी हर छोटी-बड़ी गतिविधियों पर सभी नजर बनाए रखते हैं। उन्होंने आगे अपने बयान में कहा कि आज की प्रणाली पर कोई सवाल नहीं उठाएगा, मुझे लगता है कि अगर कोई ऐसा सोच रहा है, तो गलत सोच रहा है। सर्वप्रथम उसे अपनी सोच बदलनी होगी।

केंद्रीय मंत्री ने आगे कहा कि कुछ लोग कह रहे हैं कि सरकार और न्यायपालिका के बीच कोई समस्या है, लेकिन मैं स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि सरकार और न्यायपालिका के बीच कोई समस्या नहीं है। उन्होंने आगे कहा कि हमारी सरकारों से लेकर पूर्व की सरकारों तक ने संविधान के कई अनुच्छेद में बदलाव किए हैं और मुझे लगता है कि हमें इन बदलावों को सकारात्मक रूप लेना चाहिए, ना की नकारात्मक रूप से। केंद्रीय मंत्री ने आगे कहा कि मैंने कॉलेजियम को एक पत्र लिखा था। जिसके बारे में पता नहीं मीडिया को कैसे पता लग गया और खबर बना दी, लेकिन किसी को भी इस बारे में नहीं पता है कि उस पत्र में मैंने क्या लिखा था, लेकिन खबर बना दी गई।

खैर, पत्र में, मैंने जजों की नियुक्ति करने वाले कॉलेजियम में सरकार के प्रतिनिधिन को भी रखने की मांग की थी। जिसे लेकर अभी काफी चर्चाएं हो रही है, मेरा मानना है कि इससे लोकतंत्र के तीनों खंभों में पारदर्शियता आएगी। लेकिन, अब सवाल यह है कि आखिर मैं उस में कैसे सरकार के प्रतिनिधि को डाल दूं? यह तो अपने आप में ही एक बड़ा सवाल है, जिस पर विवेचना जारी है। बता दें कि केंद्रीय कानून मंत्री ने आगे कहा कि किसी भी देश में लोकतंत्र को स्वास्थ्य रखने के लिए जरूरी है कि न्यायपालिका को आजादी दी जाए, क्योंकि अगर उसकी आजादी पर कुठाराघात होगा, तो इसका सीधा असर लोकतंत्र की प्रणाली पर होगा। बहरहाल, वर्तमान में केंद्रीय कानून मंत्री न्यायपालिका के संदर्भ में दिए अपने बयान को लेकर अभी खासा सुर्खियों में हैं। जिस पर लोग अलग-अलग तरह से अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए नजर आ रहे हैं, लेकिन अब आपका इस पूरे मसले पर क्या कुछ कहना है। आप हमें कमेंट कर बताना बिल्कुल भी मत भूलिएगा।

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