नई दिल्ली। भारत पाकिस्तान के बंटवारे के बाद से व्यक्तियों के साथ कई चीजें फंसकर रह गई हैं। दोनों देशों के कई नागरिक सरहद पार अपनी जमीनें मकान आदि छोड़कर चले आए जो कहीं न कहीं आज भी अपने प्रिय जनों और असली मकान-मालिकों का इंतजार कर रही हैं। लेकिन कुछ चीजें ऐसी भी हैं जो बीच में फंस कर रह गई हैं। ऐसी ही चीजों में पीपल का एक पेड़ भी शामिल है। भारत पाकिस्तान दोनों को समान रूप से छाया प्रदान करता ये पीपल का पेड़ अंतर्राष्ट्रीय सीमा रणवीर सिंह पुरा के जीरो लाइन पर स्थित है। ये पेड़ भारत-पाकिस्तान के बीच खिचीं रेखाओं के मध्य फंसकर रह गया है। सदियों से खड़े इस मूक वृक्ष ने इतिहास को करवट बदलते हुए देखा है, साथ ही इतिहास में घटित घटनाओं का साक्षी बना है। कहा जाता है कि देश के बंटवारे से पहले ये विशालकाय वृक्ष शांतिपूर्ण माहौल में कभी लहराते हुए इतराता नजर आता था। लेकिन, आज ये नफरत के साए में खड़ा नजर आता है।
इस वृक्ष का आधा तना भारत में तो आधा पाकिस्तान में है। एक समय में जब बस जम्मू से सियालकोट होते हुए लाहौर और लाहौर से जम्मू आया-जाया करती थी। तब, बस के यात्री इस स्थान पर कुछ देर ठहर कर पीपल के नीचे आराम फरमाते नजर आते थे। साल 1947 में देश के विभाजन के बाद सियालकोट पाकिस्तान में चला गया। दोनों देशों के बीच सीमाएं बन गईं। इस बंटवारे में जमीन का बंटवारा तो हुआ लेकिन पीपल का वृक्ष दोनों देशों के बीच बनी जीरोलाइन पर उस जगह पर आया, जहां इसके तने का भी बंटवारा करना पड़ा।
इस वृक्ष के साथ हदबंदी का पिलर नंबर 918 लगाया गया। अपने तने और शाखाओं का विस्तार करते पीपल ने इस पिलर को भी अपनी आगोश में समेट लिया, जैसे वो देश के बंटवारे की बंदिशें तोड़ने की कोशिश में हो। जम्मू से करीब 27 किलोमीटर की दूरी पर बसने वाले गांव सुचेतगढ़ में स्थित भारतीय अग्रिम चौकी ऑक्ट्राय पोस्ट पर इतिहास को समेटे खड़ा ये पेड़ वक्त के थपेड़ों में कहीं गुमसुम सा भी नजर आता है।