नई दिल्ली। भारत और चीन के बीच 2020 से चल रही तनातनी में कुछ कमी होने की उम्मीद है। भारत और चीन ने एलएसी पर पेट्रोलिंग यानी गश्त संबंधी समझौता किया है। अब भारत के सैनिक एलएसी पर डेमचोक और देपसांग समेत उन जगहों पर गश्त करने जा सकेंगे, जिनको चीन ने अपने सैनिक तैनात कर रोक रखा था। भारत ने भी बदले में सेना की तैनाती कर चीन के सैनिकों की गश्त पर रोक लगा दी थी। गश्त से जुड़ा समझौता होने के बावजूद अब भी इसका डर है कि चीन सलामी स्लाइसिंग की पुरानी नीति पर न चलता रहे। अगर चीन की सेना ने सलामी स्लाइसिंग की कोशिश की, तो भारत से फिर तनाव बढ़ना तय है।
चीन की हमेशा विस्तारवादी नीति रही है। उसने पूरे दक्षिण चीन सागर को अपना बता दिया है और इसके खिलाफ अंतरराष्ट्रीय कोर्ट के फैसले तक को नहीं मान रहा। नतीजे में दक्षिण चीन सागर के और देशों से उसकी तनातनी चल रही है। साथ ही चीन की सेना धीरे-धीरे कर नेपाल और भूटान के भी कई इलाकों पर काबिज हो चुकी है। चीन ने पहले भी भारत की जमीन पर धीरे-धीरे कब्जे की कोशिश की है। इसी को सलामी स्लाइसिंग कहते हैं। सलामी स्लाइसिंग के तहत चीन की सेना पड़ोसी देश की जमीन पर कुछ सौ मीटर तक घुसती है और वहां अपना कैंप बना लेती है। भारत में पूर्वी लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश में भी चीन की सेना कई बार ऐसी कोशिश कर चुकी है। 2020 में भी उसने पूर्वी लद्दाख के गलवान में इसी तरह घुसपैठ की कोशिश की थी, लेकिन भारतीय सेना के जांबाज जवानों ने उसकी हरकत पर पानी फेर दिया।
गलवान में भारतीय सेना से संघर्ष में चीन के तमाम सैनिक मारे गए थे। वहीं, भारतीय सेना के कर्नल बी. संतोष बाबू समेत 20 जवान शहीद हुए थे। इसके बाद चीन ने एलएसी पर बड़े पैमाने पर सेना की तैनाती की थी। जिसके जवाब में भारत ने भी एलएसी पर सेना और हथियार तैनात किए। तभी से चीन और भारत की सेना आमने-सामने तैनात हैं। बीते दिनों चीन से जो समझौता हुआ है, उसके तहत दोनों देशों की सेना पीछे हटेगी। यहां भारत को इस पर लगातार नजर बनाए रखनी होगी कि चीन की सेना एलएसी से कितना पीछे जाती है। इसकी वजह ये है कि चीन की सेना बहुत कम समय में एलएसी तक पहुंच सकती है। जबकि, भारत की सेना को एलएसी तक पहुंचने में ज्यादा वक्त लगता है।