नई दिल्ली। द्रौपदी मुर्मू आज से देश के 15वें राष्ट्रपति का कार्यभार संभालने जा रही हैं। वो अब तक की सबसे कम उम्र की राष्ट्रपति बनी हैं। द्रौपदी मुर्मू को सियासत के जानकार ‘नो नॉनसेंस’ नेता के तौर पर जानते रहे हैं। यहां तक कि जिस बीजेपी से मुर्मू जुड़ी रही हैं और जिसने उन्हें शीर्ष पद तक पहुंचाया, उसे भी वो तगड़ा झटका दे चुकी हैं। ये मामला साल 2017 का है। उस वक्त झारखंड में बीजेपी की सरकार थी। सीएम रघुवर दास थे। रघुवर दास की सरकार ने छोटा नागपुर काश्तकारी एक्ट 1908 और संथाल परगना काश्तकारी एक्ट 1949 में संशोधन के लिए विधानसभा में बिल पास कराकर तब गवर्नर रहीं द्रौपदी मुर्मू को दस्तखत के लिए भेजा था।
द्रौपदी मुर्मू के पास उस वक्त तक 200 से ज्यादा लोगों ने इस बिल के खिलाफ अपनी शिकायत भेजी थी। मूलरूप से ज्यादातर शिकायत इस बात की थी कि बिल के कानून बनने से आदिवासियों को अपनी जमीन गंवानी पड़ सकती है। ऐसे में बिल जब मुर्मू के पास पहुंचा, तो उन्होंने इसका न सिर्फ खुद अध्ययन किया, बल्कि कानूनी सलाह भी ली। सारे मामले को देखते हुए उन्होंने बिल पर दस्तखत करने से इनकार कर दिया था। उन्होंने कानून में बदलाव पर सरकार को चिट्ठी भेजी और उससे स्पष्टीकरण मांगा कि कैसे इससे आदिवासियों का भला हो सकता है?
मुर्मू ने इस बिल को लौटाने से पहले दिल्ली जाकर बीजेपी के नेतृत्व को भी सारी जानकारी दी थी। उसके बाद झारखंड की तत्कालीन सरकार ने कभी दोबारा वो कानून संशोधित नहीं किया। द्रौपदी मुर्मू के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने छात्र जीवन में कभी राजनीति नहीं की। 1997 में बीजेपी में शामिल होने के बाद वो आरएसएस के करीब आ गईं। इसके बाद भी वो गवर्नर के तौर पर कभी रबर स्टैंप नहीं रहीं। लगातार अपनी संवैधानिक ताकत का वो इस्तेमाल करती रहीं। शायद इसी बिल पर दस्तखत न करना ही था कि साल 2017 में उनको राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार नहीं बनाया गया। जबकि, उस वक्त भी संभावितों की लिस्ट में उनका नाम था।