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Rubaiya Sayeed kidnapping: हॉस्पिटल से घर आते वक्त जब रूबिया को उठा ले गए थे आतंकी, 6 दिन पहले ही पिता बने थे गृहमंत्री, जानें इस किडनैपिंग का पूरा किस्सा

नई दिल्ली। आज कहानी उस अपरहण कांड की जिसने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था। साल 1989, तारीख थी 8 दिसंबर। सर्दियों के इस मौसम में इस दिन अचानक से गर्मी तब बढ़ गई जब सर्दी की दोपहर लगभग साढ़े 3 बजे एक 22-23 साल की लड़की लालदेड़ मेडिकल हॉस्पिटल से बाहर निकलती है और घर जाने के लिए मिनी बस में बैठ जाती है। अभी मिनी बस कुछ ही दूर गई थी कि अचानक नौगाम के रास्ते में चार हथियार बंद लोग बस में घुस जाते हैं, ये सभी हथियार बंद जम्मू कश्मीर लिब्रेशन फ्रंट से जुड़े थे। अब बस की दिशा मुड़ गई थी और थोड़ी ही दूर जाने के बाद ये बस रूकती है, जहां हथियार बंद ये लोग उस लड़की को बस से नीचे उतरने के लिए कहते हैं। बस यही वो वक़्त था जब पूरे देश में हड़कंप मचने वाला था। क्योंकि ये लड़की कोई और नहीं बल्कि देश के तत्कालीन केन्द्रीय गृह मंत्री मुफ़्ती मोहम्मद सईद की छोटी बेटी रुबिया सईद थी, जिसका अपरहण किया गया था।

रुबिया को अगवा करने के बाद अपहरणकर्ताओं ने वहां के एक लोकल अखबार को फोन कर इस घटना की जानकारी दी। फिर अखबार के एडिटर ने इस अपहरण की जानकारी गृह मंत्री और केंद्र सरकार तक पहुंचाई। इस खबर के बाद सियासी गलियारों में सनसनी मच गई और लंदन गए जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन मुख्यमंत्री फारुख अब्दुल्ला को भी लंदन से दिल्ली आना पड़ गया। इस घटना की जानकारी मिलने के तुरंत बाद भारतीय ख़ुफ़िया एजेंसी के कई बड़े अधिकारी श्रीनगर पहुंचे और इस पूरे मामले की जांच शुरू हो गई।

किडनैपिंग के बदले क्या मांगा?

रुबिया सईद के अपरहण के मामले में फिरौती में लाखों-करोड़ो रुपये नहीं बल्कि भारतीय जेल में बंद 5 खूंखार आतंकवादियों को रिहा करने की मांग की गई। इन आतंकवादियों में गुलाम नबी भट, मोहम्मद अल्ताफ, नूर मोहम्मद कलवाल, जाविद जरगर और अब्दुल हमीद शेख जैसे नाम शामिल थे। मुख्यमंत्री फारुख अब्दुल्ला ने ये मांग को पहले तो सिरे से ठुकरा दिया लेकिन जब सरकार को बर्खास्त करने का डर दिखा तो वह मान गए।

6 दिन पहले गृहमंत्री बने थे पिता मुफ़्ती मोहम्मद सईद

आपको बता दें कि इस वक्त केंद्र में वीपी सिंह की सरकार थी और वो भी 6 दिन पहले ही बनी थी। दरअसल, राजीव गांधी के बाद 2 दिसंबर 1989 को ही वीपी सिंह को भारत का प्रधानमंत्री बनाया गया था। इसके साथ ही मुफ़्ती मोहम्मद सईद को भारत का केन्द्रीय गृह मंत्री नियुक्त किया गया था। छह दिन बाद ही 8 दिसंबर 1989 को जेकेएलएफ ने मुफ़्ती मोहम्मद सईद की बेटी रुबिया को अगवा कर लिया।

कैसे हुई थी रिहाई?

कहा जाता है कि अपहरणकर्ताओं से बातचीत के सारे चैनल खोल दिए गए। उस दौरान इलाहबाद हाईकोर्ट के जज रहे मोती लाल बट ने सीधे आतंकवादियों से डील कर रुबिया को छुड़वाने की कोशिश की। वहीं केन्द्रीय मंत्री इंद्र कुमार गुजराल, आरिफ मोहम्मद और जार्ज फर्नांडिस ने इस काम में उनका सहयोग किया।  8 तारिख को अपहरण हुआ लेकिन समझौता होते-होते 5 दिन बीत गए। आखिरकार सरकार ने 13 दिसंबर 1989 को जेकेएलएफ की मांग पूरी करते हुए उनके 5 आतंकियों को जेल से रिहा कर दिया और कुछ ही घंटों बाद रुबिया को सोनवर स्थित जस्टिस मोतीलाल भट्ट के घर पहुंचा दिया गया। इसके बाद उसी रात रुबिया विमान से दिल्ली आईं। रुबिया की सुरक्षित वापसी पर केंद्रीय मंत्री मुफ़्ती मोहम्मद सईद ने कहा कि एक पिता के तौर पर तो वो खुश हैं लेकिन एक नेता के तौर पर ये गलत हुआ ऐसा नहीं होना चाहिए था।

अब कहां हैं रुबिया सईद ?

आपको बता दें कि रूबिया सईद अब चेन्नई के हर्रिंगटन रोड के तारापुर एवेन्यू में अपने पति और दो बेटों के साथ रहती हैं। रूबिया के पति शरीफ अहमद ऑटोमोबाइल शोरूम चलाते है।

रुबिया के घर 24 घंटे रहती है सिक्योरिटी

रुबिया सईद और उनकी फैमिली को तमिलनाडु स्पेशल आर्म्ड फोर्स यूनिट से सिक्युरिटी दी गई है। रुबिया के घर के बाहर पांच जवान 24 घंटे तैनात रह कर पहरा देते हैं। रुबिया के घर की सिक्युरिटी इतनी ज्यादा टाइट है कि दूध देने वाले और सफाई करने वाले को भी एक खास जगह से आगे जाने की परमिशन नहीं होती है। पड़ोसियों से रुबिया की बातचीत तो होती है लेकिन वो भी उनके बारे में बहुत ज्यादा नहीं जानते हैं।

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