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Karnataka: तीन साल के CM वाले फॉर्मूले से क्यों ख़ौफ खा रहे DK शिवकुमार, मायावती और भूपेश बघेल से मिली सीख

siddaramaiah and dk shivkumar

नई दिल्ली। कर्नाटक विधानसभा चुनाव 2023 में भारी जीत के बाद कांग्रेस के लिए नई मुश्किलें खड़ी हो गई हैं। डी के शिवकुमार और सिद्धारमैया के बीच मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर पेंच फंस गया है। सूत्रों के मुताबिक मुख्यमंत्री के पद को लेकर रेस में सिद्धारमैया सबसे आगे चल रहे हैं। सूत्र तो इस ओर भी इशारा कर रहे हैं कि डी के शिवकुमार ने उप-मुख्यमंत्री पद को भी अस्वीकार कर दिया है। वो किसी भी कीमत पर सिद्धारमैया से पीछे रहने को तैयार नहीं हैं। इन्हीं खबरों के बीच एक खबर ये भी आई थी कि कांग्रेस की पहली पसंद बने सिद्धारमैया ने खुद ही कांग्रेस हाईकमान को एक सुझाव देते हुए कहा कि पहले उन्हें दो साल मुख्यमंत्री रहने दिया जाए और फिर बाद में तीन साल के लिए डीके शिवकुमार को मौका मिले। इस सुझाव के बाद माना गया था कि अब सुलह हो सकती है, लेकिन डीके शिवकुमार ने इस फॉर्मूले सिरे से नकारकर कांग्रेस की मुश्किलें बढा दी हैं।

शिवकुमार का ऐसा मानना है कि ये कोई पारिवारिक संपत्ति नहीं है जिसका बंटवारा किया जाएगा। बल्कि ये मुख्यमंत्री की कुर्सी है, इसपर या तो पांच साल पूरे वो रहेंगे या नहीं। लेकिन ऐसा नहीं है कि डी के शिवकुमार ने इस प्रस्ताव को यूं ही ठुकरा दिया है। बल्कि इसके पीछे बड़ी वजह है इतिहास में सियासी दुनिया में घटी कुछ घटनाएं। ये घटनाएं बताती हैं कैसे ये फार्मूला कई राज्यों के भीतर फेल हुआ है। 2018 में छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल को एक समझौते के तहत मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठाया गया था। लेकिन टीएस देव सिंह भी इस रेस में थे, लिहाजा पार्टी ने फैसला किया कि उन्हें ढाई साल के बाद सीएम बना दिया जाएगा। लेकिन ढाई साल बाद हालात पूरी तरह बदल गए थे। भूपेश बघेल की सरकार पर मजबूत पकड़ बन चुकी थी, उन्होंने साफ तौर पर कुर्सी छोड़ने से इनकार कर दिया। टीएस देव सिंह ने इसके बाद खूब हाथ पैर मारे लेकिन इसके बाद भी कुर्सी नहीं मिली। एक सबक तो यहां से मिलता है।

ऐसा ही एक समझौता देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में बसपा और भाजपा के बीच हुआ था, या यूं कहें कि ये समझौता मायावती और कल्याण सिंह के मध्य हुआ था। यहां पर प्रस्ताव अलग तरीके से रखा गया था। दोनों के बीच 6-6 महीने सीएम की गद्दी पर बैठने को लेकर सहमति बनी। इसके बाद कल्याण सिंह जब राजी हो गए तो मायावती ने पहले टर्म में गद्दी संभाली, लेकिन पहले टर्म के पूरा होते ही मायावती पलट गई, उन्होंने कल्याण सिंह को दलित विरोधी करार देते हुए अपना समर्थन वापस खींच लिया और सरकार गिरा दी। लेकिन इसके बावजूद भी कल्याण सिंह क्योंकि एक मझे हुए नेता थे लिहाजा उन्होंने सरकार को किसी तरह से टूटने से बचा लिया और विश्वास मत भी प्राप्त कर लिया था। लेकिन इसके बाद ये प्रकरण सियासी दुनिया में आज तक चर्चाओं में रहता है। तो ये वो दूसरा सबक है जिसके चलते डी के शिवकुमार शायद 3 साल के फॉर्मूले पर राजी नहीं हो रहे हैं।

 

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