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Yogi Adityanath: महर्षि वाल्‍मीकि आश्रम पहुंचने वाले पहले मुख्‍यमंत्री बने योगी आदित्यनाथ

Yogi Adityanath Balmiki Ashram

लखनऊ। महर्षि वाल्‍मीकि की जयंती मनाने देश भर से जुटे साधु संत हों या फिर हजारों की संख्‍या में मौजूद श्रद्धालुओं की भीड़, सभी की जुबां पर भगवान राम और माता सीता के साथ महर्षि वाल्‍मीकि का नाम था। केसरिया रंग में सराबोर वाल्‍मीकि पर्वत पर शुक्रवार का दिन कुछ खास था। पहली बार प्रदेश के किसी मुख्‍यमंत्री को अपने बीच पा कर साधु, संत और आश्रम के बटुक, सभी के मन अह्लादित थे। उत्तर प्रदेश में महर्षि वाल्‍मीकि आश्रम के अनुष्‍ठान में पहुंचने वाले योगी आदित्यनाथ पहले मुख्‍यमंत्री हैं।

भगवान महर्षि वाल्‍मीकि की जयंती पर चित्रकूट पहुंचे सीएम योगी अन्‍य साधु संतों के साथ वाल्‍मीकि आश्रम में आयोजित अनुष्‍ठान, पूजन, हवन, आरती और अखण्‍ड रामायण के पाठ में शामिल हुए। योगी बतौर मुख्‍यमंत्री चित्रकूट में पहली बार किसी विशुद्ध धार्मिक अनुष्‍ठान में शामिल हुए।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ शुक्रवार को करीब ढाई बजे लालापुर के महर्षि वाल्‍मीकि पर्वत स्थित महर्षि वाल्मीकि के  आश्रम पहुंचे। इससे पहले, करीब दो बजे चित्रकूट पहुंचने के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्‍यनाथ हेलीपैड से सीधे असावर माता के मंदिर पहुंचे। मुख्‍यमंत्री करीब 10 मिनट तक मंदिर में रुके और असावर देवी की पूजा, अर्चना की।

असावर देवी मंदिर से निकल कर योगी पर्वत के शिखर पर स्‍थति महर्षि वाल्‍मीकि के आश्रम पहुंचे। 31 अक्तूबर को महर्षि वाल्‍मीकि की जयंती है। मुख्‍यमंत्री ने आश्रम में महर्षि वाल्‍मीकि की पूजा, गोरक्षा हवन और आरती करने के साथ अखण्‍ड रामायण पाठ का शुभारंभ भी किया। करीब एक घंटे तक आश्रम में रुकने के दौरान सीएम योगी ने आश्रम की देखरेख की जानकारी लेने के साथ ही चित्रकूट को विश्‍वस्‍तर के तीर्थस्‍थल के रूप में विकसित करने और आवश्‍यक सुविधाओं को लेकर साधु संतों के साथ स्‍थानीय जन प्रतिनिधियों से चर्चा की। इस मौके पर मुख्‍यमंत्री ने असावर माता मंदिर के सामने सौंदर्यीकरण कार्य का शिलान्यास भी किया।

योगी आदित्यनाथ बोले दुश्‍मनों के दांत खट्टे करने वाली तोपें भी बनाएगी वाल्‍मीकि, तुलसी की तपोस्‍थली

मुख्‍यमंत्री के रूप में सातवीं बार चित्रकूट और पहली बार महर्षि वाल्‍मीकि आश्रम पहुंचे मुख्‍यमंत्री योगी आदित्‍यनाथ ने लालापुर की जनसभा में भारत माता की जय और वंदेमातरम के नारे के साथ अपना संबोधन शुरू किया। सीएम योगी ने कहा कि रामायण काल की अति प्राचीन परंपरा के वाहक दो ऋषियों की जयंती है। एक महर्षि वाल्मीकि जी, जिन्होंने भगवान राम से साक्षात्कार कराया। दूसरे राष्‍ट्रऋषि नानाजी जिन्‍होंने प्रधानमंत्री मोदी को आत्मनिर्भर भारत की परिकल्पना दी। मैं दोनों को नमन करता हूं। सीएम ने कहा कि अर्से से यहां आना चाहता था। हजारों साल पहले भगवान राम प्रयागराज आए और महार्षि वाल्मीकि जी से मिलकर चित्रकूट गए थे। मैं स्वयं इस धरती का दर्शन करना चाहता था। महार्षि वाल्मीकि के दर्शन को पूज्‍य तुलसीदास ने रामकथा के रूप में घर घर पहुंचाई। भगवान श्रीराम की तपोस्‍थली चित्रकूट आज नए कदम बढ़ा रही है। जहां किसी प्रकार का कोई भेद भाव नहीं है वही राम राज्‍य है।


मुख्‍यमंत्री योगी आदित्‍यनाथ ने केंद्र और प्रदेश सरकार की उपलब्धियां गिनाते हुए कहा कि  प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना से घर-घर तक व्यवस्था पहुंचाने का काम हो रहा है। भाजपा सरकार में 500 साल के बाद अयोध्या में भव्य मंदिर का निर्माण शुरू हो गया है। कोरोना नहीं होता तो हर गांव से एक व्यक्ति अयोध्या जरूर पहुंचता। कोरोना खत्म होने पर हर गांव से लोगों को कार सेवा कराएंगे। हमने बुंदेलखंड एक्सप्रेस वे दिया। बहुत जल्‍द चित्रकूट, बांदा में घर-घर तक पेयजल पहुंचाएंगे। डिफेंस कॉरीडोर की योजना पर काम होगा। योगी ने कश्‍मीर का जिक्र करते हुए कहा कि विंग कमांडर अभिनंदन को छोड़ने के दौरान पाकिस्तानी सेना कांप रही थी। योगी ने कहा कि दुश्‍मन को दांत खट्टे करने वाली तोपें भी चित्रकूट में बनेंगी। तुलसी, वाल्‍मीकि और राम की तपोस्थली के साथ ये जिला दुश्मन के दांत भी खट्टे करने में अपनी भूमिका अदा करेगा।

चित्रकूट का प्रवेश द्वार है महर्षि वाल्मीकि का आश्रम

मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान श्रीराम की तपोभूमि महर्षि वाल्मीकि आश्रम चित्रकूट के प्रवेश द्वार के नाम से प्रसिद्ध है। महर्षि वाल्मीकि  की तपोस्थली लालापुर चित्रकूट प्रयागराज राष्ट्री्य राजमार्ग पर बगरेही गांव के समीप है। झुकेही से निकली तमसा नदी इस आश्रम के समीप से बहती हुई सिरसर के पास यमुना में मिल जाती है। भगवान श्रीराम के पुत्र लव और कुश की जन्मभूमि एवं रामायण के रचयिता महर्षि वाल्मीकि की तपोस्थली होने के कारण धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से समूचे विश्व के तीर्थ स्थीलों में यह काफी महत्वहपूर्ण है। घने जंगल के बीच पहाड़ी पर स्थित इस आश्रम में आज भी त्रेतायुग के तमाम साक्ष्य मौजूद हैं।

रामायण की रचना कर भगवान श्रीराम के आदर्श और चरित्र की गौरवगाथा को जन -जन तक पहुंचाने वाले आदि कवि महर्षि वाल्मीकि ने इसी आश्रम में रहकर रामायण की रचना की थी। इसके अलावा इस आश्रम की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि अयोध्या लौटने के बाद जब भगवान श्रीराम ने माता सीता को अपने राज्य से निकाला था, तब माता सीता ने इसी आश्रम में शरण लिया था। इसी आश्रम में माता सीता ने भगवान श्रीराम के पुत्र लव और कुश को जन्म दिया और उनकी शिक्षा-दीक्षा हुई थी। आश्रम में महर्षि बाल्मीकि जी की गुफा एवं माता सीता की रसोई और उनके चरण चिन्ह आज भी स्पष्ट रूप से देखे जा सकते हैं।

डाकू से कैसे बने महर्षि वाल्मीकि

महर्षि वाल्मीकि का जन्म नागा प्रजाति में हुआ था। ऋषि मुनि बनने से पूर्व वे एक कुख्यात डाकू थे। उनका नाम रत्नाकर था। मनुस्मृति के अनुसार वे प्रचेता, वशिष्ठ, नारद, पुलस्त्य आदि के भाई थे। उनके बारे में कहा जाता है कि बाल्यावस्था में ही उनको एक निःसंतान भीलनी ने चुरा लिया था। भीलनी ने रत्नाकर का बड़े ही प्रेम से लालन-पालन किया। भीलनी के जीवनयापन का मुख्य साधन दस्यु कर्म का था। भीलनी बुरे कर्म और लूट-पाट से रत्नाकर का पालन-पोषण कर रही थी। इसका रत्नाकर पर काफी प्रभाव पड़ा और उन्होंने भी इसे ही अपना कर्म बना लिया था। रत्नाकर को लगा लूट-पाट हत्या ही उनका कर्म है। जब वाल्मीकि एक तरूण युवा हो गए तब उनका विवाह उसी समुदाय की एक भीलनी से कर दिया गया। विवाह बाद रत्नाकर कई संतानों के पिता बने और उन्हीं के भरण-पोषण के लिए उन्होंने पाप कर्म को ही अपना जीवन मानकर और भी अधिक घोर पाप करने लगे।

एक बार रत्नाकर ने वन से गुजर रहे साधुओं की मंडली को ही हत्या की धमकी दे दी। साधु के पूछने पर उन्होंने इस बात को स्वीकार किया कि वे यह सब अपने पत्नी और बच्चों के लिए कर रहे हैं। तब साधु ने उन्हें ज्ञान दिया और कहा कि जो भी पाप कर्म तुम कर रहे हो, उसका दंड केवल तुम्हें ही भुगतना पड़ेगा। तब साधु ने उनसे कहा कि तुम जाकर अपने परिवार वालों से पूछकर आओ कि क्या वे तुम्हारे इस पाप के भागीदार बनेंगे? इस प्रकार रत्नाकर पर साधु यानि की नारद मुनि की बातों का काफी प्रभाव पड़ा। वह नारद मुनि की बात पर विश्वास नहीं करने वाले थे किंतु वह सोच में डूब गए। इस प्रकार नारद मुनि से रत्नाकर ने कहा कि वह अगर परिवार से यह पूछने जाएगा तो आप सब साधु लोग भाग जाएंगे। तो रत्नाकर की इस शंका को दूर करने के लिए नारद मुनि ने कहा कि वह हमें यहीं पेड़ से बांध जाए। हम नहीं भागेंगे। इस प्रकार रत्नाकर नारद मुनि को साधुओं संग बांधकर परिवार से यह पूछने गया कि वह उसके पाप में भागीदार होंगे या नहीं?

रत्नाकर के परिवार और पत्नी ने उन्हें फटकार लगा दी। रत्नाकर की पत्नी ने कहा कि वह परिवार का भरण-पोषण चाहे जैसे भी करें। इससे उन्हें कोई मतलब नहीं। रत्नाकर के पापों में भागीदार होने पर जब उनकी पत्नी और बच्चों ने अपनी असहमती प्रदान की तब उनकी आंखे खुल गईं। तब रत्नाकर को अपने द्वारा किए गए पाप कर्म पर बहुत पछतावा हुआ और उन्होंने साधु मंडली को मुक्त कर दिया। साधु मंडली से क्षमा मांग कर जब वाल्मीकि लौटने लगे तब साधु ने उन्हें तमसा नदी के तट पर ‘राम-राम’ नाम जप ही अपने पाप कर्म से मुक्ति का यही मार्ग बताया। भूलवश वाल्मीकि राम-राम की जगह ‘मरा-मरा’ का जप करते हुए तपस्या में लीन हो गए।

इसी तपस्या के फलस्वरूप ही वह वाल्मीकि के नाम से प्रसिद्ध हुए और रामायण की महान रचना की। इसलिए उन्हें आदिकवि के नाम से पुकारा गया और यही नाम आगे चलकर वाल्मीकि ‘रामायण के रचयिता’ के नाम से अमर हो गए। इसलिए भगवान वाल्मीकि को महर्षि का दर्जा प्राप्त है।

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