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सरकार लोगों की दुर्दशा पर भी ध्यान दे : सुप्रीम कोर्ट

Migrants worker

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने बुधवार को ऋण स्थगन अवधि के दौरान ब्याज पर छूट के बारे में कोई रुख स्पष्ट नहीं करने पर केंद्र सरकार (Central Government) की खिंचाई की। कोर्ट ने अस्थायी निलंबन अवधि के दौरान ऋण पर ब्याज वसूलने वाले वित्तीय संस्थानों के खिलाफ सुनवाई के दौरान ऐसा किया। शीर्ष अदालत ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि केंद्र इस मुद्दे पर भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के निर्णय की आड़ में छिपा हुआ है, विशेष रूप से तब जब उसके पास आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत पर्याप्त शक्तियां हैं, जहां वह बैंकों को आस्थगित ईएमआई पर ब्याज लेने से रोककर फैसला ले सकता है और ऋण स्थगन अवधि में ब्याज पर छूट दे सकता है।

न्यायाधीशों अशोक भूषण, आर. सुभाष रेड्डी और एम.आर. शाह की पीठ ने केंद्र से कहा कि वह केवल व्यवसाय में दिलचस्पी नहीं ले सकती और लोगों की तकलीफों को अनदेखा नहीं कर सकती है। याचिकाकर्ता के वकील ने शीर्ष अदालत को सूचित किया कि ऋण स्थगन 31 अगस्त को समाप्त हो रहा है, और 1 सितंबर को, उनका ग्राहक डिफॉल्ट में होगा।

केंद्र का प्रतिनिधित्व कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि 6 अगस्त को फैसला लिया गया कि इस मुद्दे पर विभिन्न क्षेत्रों के अनुसार निर्णय किया जाना है। न्यायाधीश भूषण ने कहा कि इस मुद्दे पर केंद्र को अपना रुख स्पष्ट करना होगा। सॉलिसिटर जनरल ने शीर्ष अदालत को सूचित किया कि केंद्र आरबीआई के साथ मिलकर ऐसे लोगों की मुश्किल दूर करने में लगा है, जिन्होंने कर्ज लिया है।

न्यायाधीश भूषण ने कहा कि मौजूदा परिस्थितियां देशव्यापी लॉकडाउन (Lockdown) की देन हैं। न्यायाधीश शाह ने कहा कि यह केवल व्यवसाय के बारे में सोचने का समय नहीं है। पीठ ने कहा कि केंद्र को हलफनामे पर अपना पक्ष रखना होगा। शीर्ष अदालत ने मेहता को एक सप्ताह का समय दिया कि वह केंद्र के रुख को स्पष्ट करते हुए एक हलफनामा दायर करें और मामले की आगे की सुनवाई के लिए 1 सितंबर का दिन निर्धारित किया। कोर्ट ने गजेंद्र शर्मा और अन्य की याचिकाओं के संदर्भ यह सुनवाई की।

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