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 Balwant Singh: दिहाड़ी मज़दूर बना ‘पंजाब का गोल्डमैन’, 70 साल के बुज़ुर्ग एथलीट के आगे जवान भी फेल

नई दिल्ली। Age is Just A Number…अंग्रेजी के पांच शब्द आपने अक्सर उन लोगों के लिए सुने होंगे जो ज्यादा उम्र होते हुए भी कम उम्र के नौजवानों वाले काम कर लेते हैं। ये कहावत ज्यादातर उन लोगों के लिए इस्तेमाल की जाती है, जो बुज़ुर्ग होते हुए भी जवानों की तरह मोहब्बत फरमाते हैं । उनकी कहानी पढ़कर आप भी यही कहेंगे कि Age is Just A Number and not only for Lovers… दरअसल, पंजाब के गुरदासपुर में एक 70 साल के एथलीट हैं। नाम है बलवंत सिंह, इनका जज़्बा देखकर आप दंग रह जाएंगे। इस बुजुर्ग एथलीट ने हाल ही में हुए इंडिया मास्टर्स गेम्स में 5 गोल्ड मेडल जीते हैं। जब ये मेडल जीत कर अपने गांव पहुंचे तो इनका शानदार स्वागत किया गया। वैसे ये कोई पहला मौका नहीं है जब इन्होंने मेडल अपने नाम किए हों, अब तक कई प्रतियोगिताओं में ये जीत की गाथाएं लिख चुके हैं और इनके घर में मेडल्स और ट्रॉफियों का अंबार है।

फिटनेस, स्टैमिना, स्पीड और इरादा…एक एथलीट के अंदर जितने भी गुण होते हैं वो सभी बलवंत सिंह के पास भी हैं। इनकी उम्र 70 साल है। लेकिन जज़्बा जवानों को भी मात देता है। यही वजह है कि वो इस उम्र में भी ट्रैक के किंग हैं। जब वो ट्रैक पर दौड़ते हैं तो दूसरे एथलीट आस-पास भी नहीं होते हैं। बेंगलुरु में हुए इंडिया मास्टर्स गेम्स में बलवंत सिंह ने 5 अलग-अलग दौड़ प्रतियोगिताओं में पांच गोल्ड मेडल जीते थे।

हालांकि, ये कोई पहली प्रतियोगिता नहीं हैं जिसमें बलवंत सिंह ने अपना परचम लहराया है। उनका घर अलग-अलग प्रतियोगिताओं में जीते गए मेडल्स, ट्राफीज और सर्टिफिकेट से भरा हुआ है। जब बेंगुलुरू में जीत का परचम लहरा कर वो गुरदासपुर लौटे तो उनका स्वागत किसी हीरो की तरह किया गया। बलवंत की छाती मेडल्स से भरी हुई थी और उन मेडल्स को देख कर पूरे पिंड की छाती फूली जा रही थी।

खास बात ये है कि तमाम मेडल्स को हांसिल करने के लिए बलवंत ने ना तो कोई स्पेशल ट्रेनिंग ली है और ना ही उनके पास किसी तरह की सुविधाएं थीं। उन्होंने ये उपलब्धियां तंग हालात से लड़ते हुए हासिल की हैं। तलवंडी गांव के रहने वाले बलवंत गुजारा करने के लिए दिहाड़ी मजदूरी करते हैं और लकड़ी काट कर बेचते हैं। लेकिन अपने बुलंद इरादे के बूते उन्होंने सभी खिताब जीते हैं। खान-पान में भी वो कुछ ज्यादा खास नहीं लेते बस घी दूध और चना ही उनकी डाइट का अहम हिस्सा है। उनकी रफ्तार और स्टेमिना देख कर गांव के लोग उन्हें घोड़ा कहते हैं। उम्र के इस पड़ाव पर भी वो थके नहीं हैं। हौसला इतना बुलंद है कि अभी और दौड़ने की ख्वाहिश है।

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