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Waqf Board Claims Land: कभी शांति से दशकों से इस गांव में रह रहे थे मछुआरे, अब अचानक मंडरा रहा पलायन का खतरा, वक्फ बोर्ड ने किया जमीन पर दावा

नई दिल्ली। केरल के कोच्चि शहर की हलचल से दूर मुनंबम उपनगर में स्थित चेराई, एक शांत और खूबसूरत मछुआरों का गांव है। समुद्र तट के पास बसे इस गांव में आज कई बीच रिसॉर्ट्स हैं, जो पर्यटकों के बीच बेहद लोकप्रिय हैं। हालांकि, इस प्राकृतिक सुंदरता के बीच गांव के लोगों के सामने एक गंभीर समस्या आ खड़ी हुई है। यहां के करीब 610 परिवार वक्फ बोर्ड द्वारा जमीन पर किए गए दावे के कारण डर और अनिश्चितता में जी रहे हैं। गांव के लोगों का कहना है कि 2022 से उनकी जमीन और संपत्तियों पर वक्फ बोर्ड ने अपना दावा किया हुआ है, जिसके कारण वे न तो अपनी जमीन पर कोई लोन ले सकते हैं, और न ही उसे बेच सकते हैं। इस कानूनी विवाद ने गांव के लोगों की जिंदगी को मुश्किलों से भर दिया है। सिरो-मालाबार चर्च और केरल कैथोलिक बिशप काउंसिल जैसे प्रमुख ईसाई संगठनों ने भी इस मामले में दखल दिया है और वक्फ (संशोधन) विधेयक के तहत सुधार की मांग की है। उन्होंने संयुक्त संसदीय समिति (JPC) को पत्र लिखकर वक्फ अधिनियम 1995 में संशोधन के लिए अपने सुझाव भेजे हैं।

पीड़ित परिवारों की आपबीती

एक समाचार चैनल की टीम जब चेराई गांव पहुंची तो उन्होंने वहां के पीड़ित परिवारों से मुलाकात की। समुद्र किनारे बने एक छोटे से घर में गौरी और उनकी विकलांग बेटी सिंटा से मिलने का अवसर मिला। सिंटा ने बताया कि कुछ साल पहले उन्हें स्ट्रोक हुआ था, जिससे उनकी शारीरिक हालत बिगड़ गई। बावजूद इसके, वह आज भी लॉटरी टिकट बेचकर अपने जीवन का गुजारा कर रही हैं। उन्होंने भावुक होकर कहा, “हम यह घर नहीं छोड़ सकते। यह हमारा है। 2022 तक सब कुछ सामान्य था, फिर अचानक हमें बताया गया कि जिस जमीन पर हम सालों से रह रहे हैं, अब वह हमारी नहीं रही।” सिंटा की पड़ोसी सीना की भी कहानी कुछ ऐसी ही है। उनके पति एक मछुआरे हैं और सालों की मेहनत से उन्होंने यह घर बनाया है। उन्होंने कहा, “हमारे पास इस घर के अलावा और कुछ नहीं है। अगर यह घर हमारे हाथ से गया, तो कुछ नहीं बचेगा। सरकार को वक्फ बोर्ड अधिनियम में संशोधन करना चाहिए और हमारी समस्याओं का समाधान निकालना चाहिए।”

प्रदीप और श्रीदेवी की जद्दोजहद

थोड़ी दूर पर प्रदीप और उनकी पत्नी श्रीदेवी से भी मुलाकात हुई, जो अपने घर और जमीन से संबंधित दस्तावेज हाथ में लेकर खड़े थे। प्रदीप ने कहा, “मैंने यह जमीन 1991 में खरीदी थी और मेरे पास सभी प्रमाण हैं कि यह जमीन मेरी है। अब मेरी तबीयत ठीक नहीं रहती, इसलिए काम नहीं कर पाता, लेकिन मैं यह सुनिश्चित करूंगा कि मेरे बेटे को भविष्य में इस घर को लेकर कोई परेशानी न हो।” इतना कहने के बाद प्रदीप अपनी बात पूरी नहीं कर पाए और भावुक हो गए।

ग्रामीणों ने की वक्फ अधिनियम में संशोधन की मांग

गांव के हर घर की यही कहानी है। ग्रामीणों का कहना है कि वक्फ बोर्ड के इस विवाद ने उनकी जिंदगी को संकट में डाल दिया है। उनकी मांग है कि सरकार वक्फ अधिनियम में जरूरी बदलाव करे ताकि उनके घर और जमीन पर उनका हक बना रहे।

 

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