कोलंबो। इस वक्त भारत का पड़ोसी मुल्क श्रीलंका आर्थिक संकट से जूझ रहा है। चीन की चपेट में आए श्रीलंका को दाने-दाने के लिए मोहताज होना पड़ा। कोलंबो पोर्ट से लेकर श्रीलंका के बड़े-बड़े प्रोजेक्ट चीन के लालच के चलते पूरी तरह फेल हो गए और रही सही कसर श्रीलंका के आंतरिक हालातों ने पूरी कर दी। जब श्रीलंका की मदद के लिए कोई भी देश आगे नहीं आया तो भारत में मदद का हाथ आगे बढ़ाते हुए श्रीलंका पर भरोसा जताया। भारत कर्ज में घिरे श्रीलंका के लिए अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष राहत पैकेज के समर्थन में खड़ा हुआ है। इसके साथ ही भारत गंभीर आर्थिक संकट का सामना कर रहे श्रीलंका के उबरने के प्रयासों को समर्थन देने वाला पहला प्रमुख ऋणदाता बन गया है। 2 दिवसीय यात्रा पर गुरुवार को श्रीलंका पहुंचे जयशंकर ने श्रीलंकाई समकक्ष अली साबरी और राष्ट्रपति रानिल विक्रमासिंघे सहित अन्य शीर्ष नेताओं से मीटिंग की।
1948 में मिली आजादी के बाद सबसे गंभीर आर्थिक संकट
गौर करने वाली बात यह है कि आर्थिक संकट से गुजर रहे श्रीलंका को 1948 में आजादी आजादी मिली थी जिसके बाद से वो सबसे गंभीर आर्थिक संकट का सामना कर रहा है और उसे संकट से उबरने में मदद के लिए भारत ने विभिन्न तरीकों से करीब 4 अरब अमेरिकी डॉलर की मदद दी है। श्रीलंका आईएमएफ से 2.9 अरब डॉलर का ऋण हासिल करने की कोशिश में लगा है। वह चीन, जापान और भारत जैसे प्रमुख कर्जदाताओं से वित्तीय आश्वासन हासिल करने की कोशिश कर रहा है। दरअसल, आईएमएफ ने राहत पैकेज को रोक दिया है और वह श्रीलंका के प्रमुख कर्जदाताओं से वित्तीय आश्वासन चाहता है। और भारत श्रीलंका की ऐसे वक्त में मदद के लिए आगे आया है।
आपको बता दें कि अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष में भारत की मदद पर श्रीलंकाई राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे के कार्यालय की ओर से जारी बयान में कहा गया, ‘भारत की मदद से श्रीलंका में सामुदायिक विकास परियोजना संबंधी समझौते पर वर्ष 2005 में हस्ताक्षर किए गए थे। इस परियोजना की सीमा 30 करोड़ रुपये थी, जिसे इस समझौते में दोगुना कर 60 करोड़ रुपये किया जाएगा। भारत के विदेश मंत्री से बातचीत के दौरान श्रीलंका के कर्ज पुनगर्ठन कार्यक्रम पर विशेष गौर किया गया और भारत सरकार की ओर से इसपर सकारात्मक रिएक्शन मिला।’