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ड्रैगन की अब और बढ़ेगी परेशानी, जापान-भारत के साथ करने वाला है ये सीक्रेट डील

नई दिल्ली। भारत के साथ लद्दाख में सीमा पर तनाव बढ़ाना चीन को अब महंगा पड़ता दिखाई दे रहा है। सीमा विवाद को लेकर चीन की  मुश्किलें लगातार बढ़ती ही जा रही है। एक तरफ जहां ड्रैगन की इस कायराना हरकत के बाद मोदी सरकार सख्त कदम उठाने से नहीं चूक रही है। वहीं चीन के पड़ोसी मुल्क भी अब उनको सबक सिखाने के लिए मोदी सरकार का पूर्ण समर्थन कर रही है।

इसी कड़ी में अब मोदी सरकार को एक और बड़ी सफलता मिली है। जापान अब चीन के खिलाफ भारतीय सेना के साथ सीक्रेट डील को तैयार हो गया है। उसने डिफेंस इंटेलिजेंस साझा करने के लिए अपने कानून में बदलाव किया है। इस बदलाव के साथ ही जापान अमेरिका के अलावा भारत, ऑस्ट्रेलिया और ब्रिटेन के साथ डिफेंस इंटेलिजेंस साझा करेगा।

जापान के सीक्रेट कानून के दायरे में यह विस्तार पिछले महीने किया गया। इससे पहले जापान केवल अपने निकटतम सहयोगी अमेरिका के साथ ही डिफेंस इंटेलिजेंस साझा करता था, लेकिन अब इस सूची में भारत, ऑस्ट्रेलिया और ब्रिटेन भी शामिल हो गए हैं। विवादों के बीच 2014 में लागू हुए इस कानून के मुताबिक, जापान की राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा पहुंचाने वाली जानकारी लीक करने पर जुर्माने के साथ ही 10 साल की सजा का भी प्रावधान है। इस कानून के तहत रक्षा, कूटनीति और काउंटर-टेररिज्म आते हैं।

विदेशी सेना से मिली जानकारी को स्टेट सीक्रेट के रूप में वर्गीकृत करने से संयुक्त अभ्यास और उपकरणों के विकास के लिए समझौतों में मदद मिलेगी। साथ ही चीनी सेना के मूवमेंट के बारे में डेटा साझा करना भी आसान हो जाएगा। जापान का यह कदम उसके लिए भी काफी फायदेमंद होगा, क्योंकि बीजिंग पूर्वी चीन सागर में जापान को लगातार परेशान कर रहा है और उसके लिए चीन की गतिविधियों पर अपने दम पर नजर रखना कठिन हो गया है।

पूर्वी चीन सागर में चीनी गतिविधियों में हाल के वक्त में काफी तेजी आई है। जापान के शासन वाले सेंकाकू टापू के आसपास चीन के कोस्ट गार्ड शिप चक्कर काटते रहते हैं। चीन इस द्वीप को दियाऊ करार देकर उस पर अपना दावा ठोकता है। गुरुवार को लगातार 80वें दिन चीनी जहाज यहां पहुंचे थे। सीक्रेट कानून में बदलाव के तहत जापान ने भारत, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया और फ्रांस के साथ ऐसे समझौतों पर हस्ताक्षर किये हैं, जो दोनों पक्षों को वर्गीकृत रक्षा जानकारी को गुप्त रखने के लिए बाध्य करते हैं। सभी देश डेटा लीक होने के खतरे को कम करते हुए एक-दूसरे से डिफेंस जानकारी साझा करेंगे।

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