नई दिल्ली। नेपाल को अब वस्तुस्थिति समझ में आने लगी है। इससे पहले नेपाल चीन का मोहरा बना हुआ था। सीमा पर नक्शे के विवाद में वह चीन के मुताबिक कदम उठा रहा था और भारत के हिस्सों को अपना दिखा रहा था। मगर अब नेपाल के विदेश मंत्री ने कहा है, ‘हम भारत के साथ बात करना चाहते हैं। इसके अलावा कोई और विकल्प नहीं है।’ नेपाल के विदेश मंत्री प्रदीप कुमार ग्यावली से सीमा विवाद को कूटनीतिक तरीके से सुलझाने की बात कही।
वहीं नेपाल के उप प्रधानमंत्री और रक्षा मंत्री ईश्वर पोखरेल ने कहा है कि वह भारत के साथ सीमा विवाद को बातचीत के जरिए हल करेंगे। पोखरेल ने कहा, ‘हम भारत के साथ सीमा विवाद को वार्ता के जरिए सुलझाएंगे, हम लगातार इस बात को कह रहे हैं। सेना तैनात करने का कोई मतलब नहीं है।’
We will solve the border issue through dialogue with India, it is our consistent point. There is no sense in deploying the Army: Nepal Deputy PM and Defense Minister Ishwar Pokhrel pic.twitter.com/XFKvvvPQ4V
— ANI (@ANI) June 9, 2020
नेपाल की संसद नए राजनीतिक नक्शे के लिए किए जा रहे संविधान संशोधन पर मुहर लगाने के लिए लगभग तैयार है। इस बीच नेपाल को भारत की अहमियत समझ में आ रही है। नेपाल में एक प्रभावशाली तबके को समझ आ चुका है कि भारत विरोध का राग अलाप कर वह चीन के हाथों में खेल रहा है।
भारत और नेपाल के बीच सीमा को लेकर विवाद तब शुरू हुआ, जब भारत ने कैलाश-मानसरोवर जाने वाले बीहड़ मार्ग पर सड़क बनाते हुए चीन सीमा तक वाहन के ज़रिए पहुंचने की कामयाबी हासिल कर ली। नेपाल का आरोप है कि भारत ने यह सड़क उसकी संप्रभुता वाले क्षेत्र में बनाई है। हालांकि भारत ने उसके दावे को पूरी तरह खारिज कर दिया।
इसके बाद नेपाल ने देश का संशोधित राजनीतिक एवं प्रशासनिक मानचित्र जारी किया जिसमें उसने सामरिक रूप से महत्वपूर्ण इलाकों लिपुलेख, कालापानी और लिम्पियाधुरा पर दावा किया। भारत ने इस पहल पर नाराजगी जताते हुए पड़ोसी देश से इस तरह के अनुचित मानचित्र दावे से अलग रहने को कहा।