वॉशिंगटन। उस ऐतिहासिक घटना को आज 11 साल हो गए। साल 2011 की 2 मई की वो तारीख थी। तड़के अमेरिकी राष्ट्रपति के सरकारी आवास व्हाइट हाउस के सिचुएशन रूम में तत्कालीन राष्ट्रपति बराक ओबामा अपने सलाहकारों, विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन और सेना प्रमुखों के साथ बैठे थे। सामने स्क्रीन लगी थी। जिसपर उस एक्शन का सीधा वीडियो आ रहा था, जो पाकिस्तान के एबटाबाद में अमेरिकी नौसेना की सील्स टुकड़ी अंजाम दे रही थी। रात के अंधेरे में दो हेलीकॉप्टर से अमेरिकी सील के जवान एबटाबाद में सेना की छावनी के पास उस घर के कंपाउंड में उतरे, जिसकी दीवारें सबसे ऊंची थीं। इसके साथ ही दुनिया से सबसे बड़े आतंकी सरगना को मिटाने की कार्रवाई शुरू हुई।
इस आतंकी सरगना का नाम ओसामा बिन लादेन था। आतंकी संगठन अल-कायदा के इस चीफ ने 9/11 हमला कराकर अमेरिका तक को दहला दिया था। इसके बदले में अमेरिका ने अफगानिस्तान पर काबिज तालिबान पर हमले किए, लेकिन लादेन और उसके दायें हाथ अयमान-अल-जवाहिरी को मार नहीं सका। लादेन पहले पहाड़ों में अपने परिवार के साथ छिपता रहा था। जिसके बाद वो चुपके से पाकिस्तान में घुसा और एबटाबाद में सेना की छावनी के पास ही घर बनाकर रहने लगा। इस घर से न कोई बाहर जाता था और न ही किसी को आने की मंजूरी थी। उस पर अमेरिका ने 5 करोड़ डॉलर का इनाम तक घोषित किया था।
दुनिया से अपनी पहचान मिटाने में पेशे से इंजीनियर रहा लादेन करीब-करीब कामयाब हो गया था, लेकिन पाकिस्तान के एक डॉक्टर को उसके घर पहुंचने का मौका मिल गया। लादेन के एक बच्चे की तबीयत खराब थी। पाकिस्तानी डॉक्टर ने बच्चे का ब्लड सैंपल लिया। फिर ये सैंपल अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए तक पहुंचा और लादेन के परिवार के ब्लड सैंपल से मैच कराने पर पता चला कि बच्चा उसी परिवार का है। इसके बाद पुख्ता हो गया कि ऊंची दीवारों वाले घर के भीतर लादेन और उसका परिवार रहता है। जिसके बाद अमेरिकी सेना ने वहां धावा बोला और उसे मार गिराया। लादेन के घर से जो दस्तावेज मिले, उनसे पता चला कि वो और बड़े आतंकी हमलों की साजिश रच रहा था।