नई दिल्ली। बांग्लादेश में पहली बार तख्तापलट नहीं हुआ है, इससे पहले भी सन 1975 में बांग्लादेश की सेना तख्तापलट कर चुकी है। बांग्लादेश के स्वतंत्रता संग्राम में प्रमुख भूमिका निभाने वाले बंगबंधु सेना के प्रमुख और शेख हसीना के पिता शेख मुजीबुर्रहमान उस समय बांग्लादेश के प्रधानमंत्री थे। एक दिन सेना ने बांग्लादेश की सरकार के खिलाफ विद्रोह कर दिया। इसी विद्रोह में कुछ हथियारबंद लोग शेख हसीना के घर में घुस आए और उनके पिता शेख मुजीबुर रहमान, उनकी मां और तीन भाइयों की हत्या कर दी थी।
बांग्लादेश में जब ये हिंसात्मक घटना हुई तब शेख हसीना अपने पति वाजिद मियां और छोटी बहन के साथ यूरोप में थीं इसीलिए उनकी जान बच गई थी। साल 2004 में भी शेख हसीना पर ग्रेनेड हमला हो चुका है। इस हमले में शेख हसीना बहुत ही गंभीर रूप से घायल हो गई थीं। इस हमले में 24 लोगों की मौत हुई थी। शेख हसीना के इंदिरा गांधी से अच्छे संबंध थे। तख्तापलट और परिजनों की हत्या की घटना के बाद इंदिरा गांधी ने शेख हसीना को भारत में शरण दी थी। उस दौरान वह कई सालों तक भारत में रहीं थीं।
<blockquote class=”twitter-tweet”><p lang=”en” dir=”ltr”>VIDEO | Protesters set Bangabandhu Memorial Museum in Dhaka on fire. <br><br>This comes in wake of the Bangladesh PM Sheikh Hasina resigning in wake of unprecedented anti-government protests in the neighbouring country. <a href=”https://t.co/p99I7g7ZZP”>pic.twitter.com/p99I7g7ZZP</a></p>— Press Trust of India (@PTI_News) <a href=”https://twitter.com/PTI_News/status/1820426455022796923?ref_src=twsrc%5Etfw”>August 5, 2024</a></blockquote> <script async src=”https://platform.twitter.com/widgets.js” charset=”utf-8″></script>
इसके बाद जब बांग्लादेश के हालात सुधरे तो शेख हसीना साल 1981 में अपने वतन वापस पहुंचीं। छात्र जीवन से ही राजनीति से जुड़ी रहीं शेख हसीना ने बांग्लादेश पहुंचकर अपने समर्थन में लोगों को जुटाना शुरू किया। हसीना ने 1986 के आम चुनाव में हिस्सा लिया, हालांकि वह हार गईं। 1991 के चुनाव में भी उनको हार का सामना करना पड़ा। इसके बाद 1996 के आम चुनााव में शेख हसीना की पार्टी भारी बहुमत से सत्ता में आई और शेख हसीना पहली बार बांग्लादेश की प्रधानमंत्री बनीं। साल 2009 में शेख हसीन दूसरी बार बांग्लादेश की प्रधानमंत्री चुनी गईं। इसके बाद साल 2014 में उन्हें फिर से तीसरे कार्यकाल के लिए चुना गया और तब से अभी तक बांग्लादेश की सत्ता उन्हीं के हाथों में थी।