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Hypocricy: दुनिया को देता है ज्ञान लेकिन खुद नस्लीय भेदभाव और मानवाधिकार हनन करने में अमेरिका आगे, CDPHR की रिपोर्ट में खुलासा

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वॉशिंगटन। अमेरिका पूरी दुनिया को मानवाधिकार का पाठ पढ़ाता है। इस मसले पर तमाम देशों पर प्रतिबंध तक लगा चुका है, लेकिन दीया तले अंधेरा वाली कहावत खुद अमेरिका पर लागू होती है। मानवाधिकारों के लिए काम करने वाली संस्था Centre for Democracy, Pluralism and Human Rights यानी CDPHR ने अपनी ताजा रिपोर्ट में अमेरिका में मानवाधिकार हनन की पोल खोलकर रख दी है। CDPHR की रिपोर्ट कहती है कि अमेरिका का संविधान अब भी दास प्रथा का समर्थन करता है। इसके अनुच्छेदों में से इसे हटाया नहीं गया है। संविधान के चौथे अनुच्छेद का तीसरा क्लॉज कहता है कि गुलाम बनाने वाले व्यक्ति को गुलाम को साथ रखने का अधिकार है और गुलाम भाग जाए,तो कड़ी सजा का प्रावधान है। इस रिपोर्ट में और क्या कहा गया है, ये आपको सिलसिलेवार बताते हैं।

-इसमें कहा गया है कि अमेरिका के कैलिफोर्निया और न्यूयॉर्क प्रांत के लिए संविधान में ऐसे प्रावधान है, जो मूल निवासी रेड इंडियंस को रहने के लिए घर तक नहीं लेने देते।

-CDPHR की रिपोर्ट के मुताबिक मूल निवासी रेड इंडियंस की सालाना आय अमेरिका की औसत आय से कम है। रेड इंडियंस महिलाओं के बलात्कार की दर औसत बलात्कार दर से ढाई गुना ज्यादा है।

-CDPHR की रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका के कानून और कोर्ट खुद नस्लभेद का गढ़ हैं।

-रिपोर्ट में कहा गया है कि साल 1994 में बने कानून की वजह से एक ही तरह के अपराध के लिए अश्वेतों को श्वेतों के मुकाबले ज्यादा कड़ी सजा मिलती है।

-रिपोर्ट कहती है कि अमेरिका के सभी शिक्षण संस्थानों में अश्वेतों की भागीदारी न के बराबर है।

-अगर अमेरिका में चर्च का पादरी अश्वेत हो, तो भी चर्च को चलाने वाले श्वेत ही होते हैं।

– CDPHR की रिपोर्ट कहती है कि अमेरिका में प्लांड पैरेंटहुड नाम के एनजीओ को श्वेत चलाते हैं और ये एनजीओ अश्वेतों को बहला-फुसलाकर अबॉर्शन कराता है, ताकि उनकी आबादी कम कराई जा सके।

-रिपोर्ट कहती है कि अमेरिका दूसरों को धार्मिक आजादी का ज्ञान देता है, लेकिन वहां जोनिंग कानून से हिंदुओं, बौद्धों को धार्मिक स्थान बनाने को नहीं मिलता।

-CDPHR की रिपोर्ट ये भी कहती है कि अमेरिका में हर 5 में से 1 महिला बलात्कार का शिकार होती है। बच्चों के यौन शोषण के 4 करोड़ मामले हैं।

-अमेरिका में अब भी तमाम अश्वेतों के वोटर आईडी नहीं बने हैं। कई बार उनके वोटों की गिनती तक नहीं होती। साल 2000 में अश्वेत बहुल इलाकों के बैलट बॉक्स तक गायब कर दिए गए थे।

-स्वास्थ्य सेवाओं में भी अमेरिका में नस्लभेद झलकता है। यहां की हिस्पैनिक आबादी कुल आबादी का 18 फीसदी है और कोरोना में इस आबादी के 24 फीसदी लोग मारे गए। अश्वेत कुल आबादी का 13 फीसदी हैं और कोरोना काल में 14 फीसदी की मौत हुई।

 

– CDPHR की रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका की वजह से इराक में 9 करोड़ से ज्यादा, सीरिया में 7 करोड़ से ज्यादा और अन्य जगह 4 करोड़ से ज्यादा लोग बेघर हुए हैं।

-रिपोर्ट कहती है कि नाटो संगठन अमेरिका का प्यादा है और इसके जरिए अमेरिका तमाम देशों को अस्थिर करता है। इस संगठन के कारण अफगानिस्तान में 2.5 लाख, यूगोस्लाविया में 1.30 लाख और सीरिया में 3.5 लाख लोगों की जान गई।

-अमेरिका में मानवाधिकार हनन की घटनाओं को छिपाए जाने का दावा रिपोर्ट में किया गया है। अमेरिका जिन देशों को पसंद नहीं करता, वहां की गलत रिपोर्ट भी जारी करने के साथ ही दुनिया को उस देश के खिलाफ खड़ा करने की कोशिश भी करता है।

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