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Chaitra Navratri 2022 : एक ऐसा मंदिर, जहां हिन्दू ही नहीं, बल्कि मुस्लिम भी रहते हैं जाने के लिए लालायित

नई दिल्ली। देश भर में पूरे साल मनाए जाने वाले त्योहारों और व्रतों में हिंदू नववर्ष के पहले महीने में मनाए जाने वाले त्योहार, चैत्र नवरात्रि का विशेष महत्व होता है। इसमें मां शक्ति के उपासक पूरे नौ दिनों तक मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा-अर्चना करते हैं। नौ दिनों तक पूरे विधि-विधान से मां दुर्गा की पूजा करने से मां प्रसन्न होती हैं और अपने भक्तों पर विशेष कृपा बरसाती हैं। इस दौरान मंदिर जाकर माता के दर्शन करना काफी शुभ माना जाता है। देश में मां दुर्गा के कई प्राचीन मंदिर हैं, जिनकी अपनी कहानियां और चमत्कार प्रसिद्ध हैं। इन सभी मंदिरों का अपना महत्व है। आज हम आपको ऐसे ही एक मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जहां हिन्दू ही नहीं मुसलमान भी आते हैं। जितने मन से हिन्दू यहां पूजा करते हैं उतने ही मन से दूसरे धर्म के लोग भी पूजा करते हैं। ‘नेतुला देवी’ नाम का ये मंदिर बिहार के जमुई में स्थित है। जमुई जिले के ‘सिकंदरा प्रखंड’ से मात्र 3 किलोमीटर की दूरी पर स्थित ये मंदिर, धार्मिक एकता का भी प्रतीक है।

महत्व

मां नेतुला को नेत्र और पुत्र की देवी माना जाता है। ऐसा माना जाता है, कि संतान की इच्छा रखने वालों और नेत्र पीड़ितों के सभी दुख दूर होते हैं। उन्हें मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। कहा जाता है कि नवरात्रि के समय हजारों की संख्या में महिला और पुरुष पूरे 9 दिनों तक मंदिर में रह कर सुबह शाम माता की सेवा करते हैं। इस मंदिर के विषय में एक खास मान्यता ये भी है कि अगर कोई भक्त सच्चे मन और भक्ति भाव से से 30 दिनों तक इस मंदिर में धरना देता है तो उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती है। वैसे तो इस मंदिर में रोजाना ही मां का फूलों से श्रृंगार करने के बाद उनकी पूजा और आरती की जाती है, लेकिन मंगलवार और शनिवार को यहां विशेष पूजा की जाती है। यहां दर्शन के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं।

मंदिर का इतिहास
इस मंदिर का इतिहास 2600 साल पुराना बताया जाता है। जैन धर्म के प्रसिद्ध ग्रंथ कल्पसूत्र के में इसका वर्णित कथा के अनुसार 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी जब घर का त्याग कर जब ज्ञान प्राप्ति के लिए निकले थे, तब पहले दिन मां नेतुला मंदिर के पीछे स्थित बरगद  के पेड़ के नीचे उन्होंने रात में विश्राम किया था और उसी स्थान पर अपने वस्त्रों का त्याग कर दिया था, इसलिए भी ये एक ख्यातिप्राप्त मंदिर है।

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