News Room Post

कच्छ भूकंप के बाद पीएम मोदी ने जो किया वह नहीं भूले हैं लोग, इसलिए है भरोसा कोरोना के बाद भी बेहतर होगा हमारा भविष्य

PM Narendra Modi

भारत जिस वक्त 52वां गणतंत्र दिवस मना रहा था, सुबह पौने नौ बजे गुजरात का भुज भूकंप से हिल उठा। धरती की कंपकंपी सिर्फ दो मिनट की ही थी, लेकिन इसी दो मिनट में सब खत्म। आखिरी आंकड़ों के मुताबिक कच्छ और भुज में 30,000 से ज्यादा लोगों की जान गई। भूकंप की तीव्रता 7.7 मापी गई थी। इससे पूरा शहर ही मानो मलबे के ढेर में तब्दील हो गया। गांव के गांव मिट्टी में मिल गए, ऐतिहासिक इमारतें जमींदोज हो गईं। भुज में 40 फीसदी घर, आठ स्कूल, दो अस्पताल और कई किलोमीटर सड़कें तबाह हो गई थीं। इस त्रासदी में डेढ़ लाख से ज्यादा लोग जख्मी हुए और करीब 4 लाख मकान जमींदोज हो गए। इसके साथ साथ अंजर, भुज और बहुआ तालुका पूर्ण रूप से तबाह हो गए थे। साथ ही लगभग 15 हज़ार करोड़ की संपत्ति का नुक़सान हुआ था।

कोविड-19 के इस काल में पीएम मोदी ने मन की बात में इस विनाशकारी और हृदयविदारक प्राकृतिक आपदा का जिक्र किया और कहा कि, मैंने अपनी आंखों के सामने कच्छ भूकंप के दिन देखे हैं। हर तरफ सिर्फ मलबा ही मलबा। सबकुछ ध्वस्त हो गया था। ऐसा लगता था मानो कच्छ मौत की चादर ओढ़ कर सो गया था। उस परिस्थिति में कोई सोच भी नहीं सकता था कि कभी हालत बदल पाएगी। लेकिन देखते ही देखते कच्छ उठ खड़ा हुआ। कच्छ बढ़ चला। यही हम भारतीयों की संकल्पशक्ति है। हम ठान लें तो कोई लक्ष्य असंभव नहीं, कोई राह मुश्किल नहीं। और आज तो चाह भी है, राह भी है। ये है भारत को आत्मनिर्भर बनाना।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जानते हैं कि संकट के समय आत्मबल मजबूत रखना जरूरी होता है। दुनिया चार महीनों से घरों में कैद है। इससे कई देशों में बहुत सारे लोग तनाव और अवसाद के शिकार हो रहे हैं। ऐसे में लॉकडाउन-3 में रियायतें देने और इसको बढ़ाने की बात के साथ लोगों के आत्मबल को मजबूत रखना बहुत जरूरी था। यही वो कारण था कि प्रधानमंत्री मोदी ने अपने भाषण के बीच में कच्छ में आए भूकंप और उसके बाद कच्छ में आए बदलाव की चर्चा की। प्रधानमंत्री ने लोगों को बताया कि एक समय जब कच्छ बर्बाद हो चुका था। वहां से उसका आगे बढ़ना मुश्किल दिख रहा था। ऐसे समय में इस देश के लोगों ने अपनी लड़ाई लड़ी और कच्छ को देश के विकसित शहरों में एक बना दिया।

आपको बता दें कि जब उन्होंने गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में पदभार संभाला, तो सर्वोच्च प्राथमिकता कच्छ का पुनर्निर्माण और बचाव कार्यों को सुव्यवस्थित करना था। नए मुख्यमंत्रियों के पास आमतौर पर “हनीमून पीरियड” होता है, लेकिन नियति की मोदी के लिए अलग योजना थी।

तो आइए ये जानने कि कोशिश करते हैं कि बूकंप से तबाह भुज और कच्छ आकिर इतना विकसित हो कैसे गया। मोदी ने एक मुख्यमंत्री के तौपर पर ऐसा क्या किया कि आज भी आपदा प्रबंधन के लिए इसे एक मिसाल के तौर पर देखा जाता है।

जब भुज और कच्छ में भूकंप ने तबाही मचा दी तो वहां के लिए एक प्रमुख चुनौती घरों की कमी थी। गांव के गांव, शहर के शहर तबाह हो चुके थे। इलाके में राजमिस्त्री की भी भारी कमी थी। गुजरात सरकार ने तेजी से काम किया और स्थानीय समुदायों को एकीकृत किया, छोटी-छोटी टीमों में इनको बांटा, प्रत्येक टीम को किट दिया और घरों के निर्माण पर ध्यान केंद्रित किया। धीरे-धीरे इस पूरे इलाके से आवास की चुनौती दूर हो गई। घरों की संख्या बढ़ गई। घर पहले की तुलना में बड़े और व्यवस्थित थे। वहीं इसकी तुलना लातूर में भूकंप के बाद के परिदृश्य से करें, जहां भूकंप के कई साल बाद भी, आवास अपर्याप्त थे और शौचालय निर्माण कार्यक्रम में कमियां थीं।

मोदी ने जिस दूसरे विषय पर जोर दिया वह था स्कूलों का निर्माण। उन्होंने कहा कि आओ, हमें स्कूली आधारभूत संरचना को पटरी पर लाने की जरूरत है। यह एक ऐसा जिला था जो अपनी मरुभूमि और पाकिस्तान (रेगिस्तानी और पाकिस्तान) से लगा हुआ था। भूकंप के बाद, मोदी कच्छ की इस धारणा को बदलने के लिए दृढ़ संकल्प थे। सीएम के रूप में इस क्षेत्र के अपने पहले के दौरे के दौरान, मोदी ने कहा था कि वह कच्छ को पाकिस्तान के साथ सीमा शेयर करने की कहानी से अलग बनाना चाहते हैं।

मोदी ने तब कच्छ में कृषि क्षेत्र के सतत विकास के लिए प्रयास करना शुरू कर दिया। भूकंप के बाद के वर्षों में, कच्छ ने आम, खजूर और अनार का निर्यात करना शुरू किया। इस पूरे इलाके में एक विस्तृत सिंचाई नेटवर्क स्थापित किया गया और धीरे-धीरे, नर्मदा का पानी इस क्षेत्र में पहुंच गया।

इस इलाके से लोगों को जोड़ने के लिए मोदी ने रण उत्सव का शुभारंभ किया, जिसमें कच्छ की संस्कृति, परंपराओं और व्यंजनों को दिखाया गया। स्थानीय हस्तशिल्प उद्योग को भी बढ़ावा दिया गया। इसने एक आर्थिक पुनरुत्थान में योगदान दिया। डेयरी और सहकारी समितियां बड़े पैमाने पर कच्छ में आईं। सड़कों, रेलवे और राजमार्ग जैसे बुनियादी ढांचे को रिकॉर्ड गति से क्षेत्र तक पहुंचाया गया। किसी ने कल्पना नहीं की थी कि एक दशक से भी कम समय में, कच्छ भारत के सबसे समृद्ध और प्रगतिशील जिलों में से एक होगा।

इसी के बाद 2003 में, गुजरात विधानसभा ने गुजरात राज्य आपदा प्रबंधन अधिनियम पारित किया, इस प्रकार आपदा प्रबंधन के लिए एक कानूनी और नियामक ढांचा बनाने वाला पहला राज्य बन गया। पहले देश का गृह मंत्रालय था जो आपदा प्रबंधन पर नियंत्रण रखता था और आपदाओं से निपटने में कई बारीकियों पर विचार करता था। यूपीए सरकार ने गुजरात के इसी मॉडल को आजमाया और आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 पारित किया।

हाल ही में, जब मोदी ने COVID के बाद के युग में स्वास्थ्य, शिक्षा और पर्यटन के क्षेत्र को देखने के तरीके को समझने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला, तो कच्छ में उनके काम की याद आ गई। जो योजना बनाई जा रही है, वह दीर्घकालिक उपाय हैं, जिसका उद्देश्य केवल क्षति को ठीक करना नहीं है, बल्कि भविष्य में इसी तरह की चुनौतियों के खिलाफ राष्ट्र को एक सुदृढ़ व्यवस्था प्रदान करने की है।

Exit mobile version