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Opposition Meeting in Patna: पटना में विपक्षी दलों की बैठक खत्म होते ही AAP ने गठबंधन से बनाई दूरी, जानें क्या कहा?

नई दिल्ली। आगामी लोकसभा चुनाव से पूर्व राजधानी पटना में विपक्षी दलों की बैठक बुलाई गई थी। जिसमें 17 दलों ने शिरकत की। बैठक में मुख्तलिफ मसलों पर चर्चा हुई। इस बीच कुछ दलों में विचारों के बीच जारी मतभेद भी सतह पर देखने को मिला। जहां एक तरफ फारूक अब्दुल्ला ने सीएम केजरीवाल से धारा 370 पर रुख साफ नहीं होने को लेकर स्पष्टिकरण की मांग की तो वहीं दूसरी तरफ आप संयोजक ने केंद्र के अध्यादेश को लेकर विपक्षियों से समर्थन की मांग की। बहरहाल, अब बैठक खत्म हो चुकी है। बैठक के बाद सभी दलों के प्रमुखों ने प्रेस कांफ्रेंस में केंद्र की मोदी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलने के प्रति अपनी प्रतिबद्धता जाहिर की,  लेकिन ध्यान देने वाली बात है कि सीएम केजरीवाल इस प्रेस कांफ्रेंस में शामिल नहीं हुए ,लेकिन अब आप की ओर से इस बैठक को लेकर आधिकारिक बयान जारी किया गया है। आइए आगे आपको बताते हैं कि बयान में क्या कुछ कहा गया ?

बता दें कि आप की ओर से जारी आधिकारिक बयान में कहा गया है कि, ‘काले अध्यादेश का उद्देश्य न केवल दिल्ली में एक निर्वाचित सरकार के लोकतांत्रिक अधिकारों को छीनना है, बल्कि यह भारत के लोकतंत्र और संवैधानिक सिद्धांतों के लिए भी एक महत्वपूर्ण खतरा है। यदि चुनौती न दी गई, तो यह खतरनाक प्रवृत्ति अन्य सभी राज्यों में फैल सकती है, जिसके परिणामस्वरूप लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित राज्य सरकारों से सत्ता छीन ली जा सकती है। इस काले अध्यादेश को हराना महत्वपूर्ण है।’ आप की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि,’पटना में समान विचारधारा वाली पार्टी की बैठक में कुल 15 पार्टियां शामिल हो रही हैं, जिनमें से 12 का प्रतिनिधित्व राज्यसभा में है। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को छोड़कर, अन्य सभी 11 दलों, जिनका राज्यसभा में प्रतिनिधित्व है, ने काले अध्यादेश के खिलाफ स्पष्ट रूप से अपना रुख व्यक्त किया है और घोषणा की है कि वे राज्यसभा में इसका विरोध करेंगे। कांग्रेस, एक राष्ट्रीय पार्टी जो लगभग सभी मुद्दों पर एक स्टैंड लेती है, ने अभी तक काले अध्यादेश पर अपना रुख सार्वजनिक नहीं किया है। हालांकि, कांग्रेस की दिल्ली और पंजाब इकाइयों ने घोषणा की है कि पार्टी को इस मुद्दे पर मोदी सरकार का समर्थन करना चाहिए। आज पटना में समान विचारधारा वाली पार्टी की बैठक के दौरान कई दलों ने कांग्रेस से काले अध्यादेश की सार्वजनिक रूप से निंदा करने का आग्रह किया। हालांकि, कांग्रेस ने ऐसा करने से इनकार कर दिया। कांग्रेस की चुप्पी उसके वास्तविक इरादों पर संदेह पैदा करती है।

व्यक्तिगत चर्चाओं में कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने संकेत दिया है कि उनकी पार्टी अनौपचारिक या औपचारिक रूप से राज्यसभा में इस पर मतदान से दूर रह सकती है। इस मुद्दे पर कांग्रेस के मतदान से दूर रहने से भाजपा को भारतीय लोकतंत्र पर अपने हमले को आगे बढ़ाने में काफी मदद मिलेगी। काला अध्यादेश संविधान विरोधी, संघवाद विरोधी और पूर्णतया अलोकतांत्रिक है। इसके अलावा, यह इस मुद्दे पर माननीय सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को उलटने का प्रयास करता है और न्यायपालिका का अपमान है। कांग्रेस की झिझक और टीम प्लेयर के रूप में कार्य करने से इनकार, विशेष रूप से इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर, AAP के लिए किसी भी गठबंधन का हिस्सा बनना बहुत मुश्किल हो जाएगा जिसमें कांग्रेस भी शामिल है। जब तक कांग्रेस सार्वजनिक रूप से काले अध्यादेश की निंदा नहीं करती और घोषणा नहीं करती कि उसके सभी 31 राज्यसभा सांसद राज्यसभा में अध्यादेश का विरोध करेंगे, AAP के लिए समान विचारधारा वाले दलों की भविष्य की बैठकों में भाग लेना मुश्किल होगा जहां कांग्रेस भागीदार है। अब समय आ गया है कि कांग्रेस तय करे कि वह दिल्ली की जनता के साथ खड़ी है या मोदी सरकार के साथ।

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