पटना। बिहार विधानसभा चुनाव इस साल अक्टूबर-नवंबर में होने हैं। वक्त कम बचा है, लेकिन अब तक विपक्ष के महागठबंधन में सीटों का बंटवारा फाइनल नहीं हो सका है। बिहार विधानसभा चुनाव के लिए सीटों का बंटवारा तय करने वास्ते महागठबंधन के नेता चार बार बैठक कर चुके हैं। पटना में शनिवार को भी तेजस्वी यादव की अध्यक्षता में महागठबंधन के नेताओं की बैठक हुई। जिसके बाद तेजस्वी यादव ने एक्स पर पोस्ट कर इस बैठक को सार्थक और सकारात्मक बताया, लेकिन सीटों के बंटवारे पर अब भी उन्होंने चुप्पी साध रखी है। आखिर बिहार के महागठबंधन में सीटों का बंटवारा क्यों नहीं हो पा रहा है?
अखबार नवभारत टाइम्स के मुताबिक बिहार में विपक्ष के महागठबंधन में सीटों का बंटवारा तय न होने की वजह कांग्रेस का रुख है। कांग्रेस पिछली बार से ज्यादा सीटें भी चाहती है और उसने उन सीटों को चिन्हित कर रखा है, जिसमें उसे जीत हासिल करने में आसानी होगी। जानकारी के मुताबिक कांग्रेस चाहती है कि बिहार विधानसभा चुनाव में महागठबंधन उसे 90 सीटें दे। इससे पहले ये खबर भी आ चुकी है कि कांग्रेस ने 58 सीटों पर कांग्रेस ने प्रत्याशी भी तय कर रखे हैं। वहीं, अखबार के अनुसार महागठबंधन में शामिल वामदलों ने भी सीटों के मुद्दे पर अपना रुख साफ कर दिया है। वामदल अपने कोटे की सीटें घटाने के पक्ष में बिल्कुल नहीं हैं। ऐसे में चार दौर की बैठक के बावजूद महागठबंधन में फिलहाल ढाक के तीन पात वाली हालत है।
बिहार के महागठबंधन में कांग्रेस के प्रदर्शन की बात करें, तो 2020 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 70 सीटों पर प्रत्याशी उतारे थे, लेकिन इनमें से सिर्फ 19 ही जीतकर विधानसभा पहुंचे थे। बताया जा रहा है कि इस बार कांग्रेस के स्थानीय नेताओं ने पार्टी आलाकमान को बिहार की जिन 90 विधानसभा सीटों के बारे में जानकारी दी है, उनमें से 50 को ‘ए’ कैटेगरी में रखा है। यानी इन सीटों पर कांग्रेस उम्मीदवारों के जीतने की सबसे ज्यादा संभावना है। कांग्रेस के सूत्रों ने पहले बताया था कि बिहार विधानसभा के पिछले चुनाव में पार्टी 70 में से ज्यादा सीटें इसलिए नहीं जीत सकी क्योंकि उन सीटों पर उसकी जगह एनडीए का जोर था। ऐसे में कांग्रेस अब सीटों के मामले में समझौता करने के मूड में नहीं दिख रही। इससे आरजेडी और वामदलों के लिए भी प्रत्याशियों का चयन आसानी से करने में दिक्कत पैदा हो सकती है।