नई दिल्ली। बिहार में इस साल विधानसभा के चुनाव होने हैं। इससे ठीक पहले चुनाव आयोग बिहार में सभी वोटरों का विशेष गहन पुनरीक्षण करा रहा है। बिहार के वोटरों के गहन पुनरीक्षण के काम को चुनाव आयोग तेजी से करा रहा है। चुनाव आयोग के मुताबिक वोटरों के विशेष गहन पुनरीक्षण में अब तक 2.88 करोड़ लोगों से गणना प्रपत्र हासिल किए जा चुके हैं। चुनाव आयोग के मुताबिक जो गणना प्रपत्र मिले हैं, सोमवार को उनमें से 11.26 फीसदी को सिस्टम में अपलोड भी किया जा चुका है।
चुनाव आयोग ने वोटरों के विशेष गहन पुनरीक्षण के लिए 25 जुलाई 2025 तक की तारीख तय की है। इसके बाद ड्राफ्ट वोटर लिस्ट जारी कर लोगों से आपत्तियां ली जाएंगी और सितंबर तक बिहार के सभी योग्य वोटरों की लिस्ट जारी करने का काम होगा। चुनाव आयोग भले ही बिहार में वोटरों का विशेष गहन पुनरीक्षण का काम तेजी से कर रहा हो, लेकिन सारा दारोमदार गुरुवार 10 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिकाओं की सुनवाई पर टिका हुआ है। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स यानी एडीआर, योगेंद्र यादव, टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा और आरजेडी सांसद मनोज झा के अलावा एआईएमआईएम चीफ असदुद्दीन ओवैसी ने चुनाव आयोग के विशेष गहन पुनरीक्षण के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है। सभी का आरोप है कि चुनाव आयोग के इस पुनरीक्षण से बिहार में करोड़ों वोटरों के मतदान का अधिकार छिन जाएगा।
विपक्षी दल ये सवाल उठा रहे हैं कि जनवरी 2025 में जब चुनाव आयोग ने बिहार की अद्यतन वोटर लिस्ट जारी की थी, तो अब विशेष गहन पुनरीक्षण क्यों कराया जा रहा है? उनका ये भी कहना है कि चुनाव आयोग ने वोटर की वैधता सुनिश्चित करने के लिए जो दस्तावेज मांगे हैं, वे सबके पास मिलना संभव नहीं है। इनकी ये भी दलील है कि आधार कार्ड और राशन कार्ड को वोटर होने के दस्तावेज के तौर पर मान्य क्यों नहीं किया जा रहा। हालांकि, आधार कार्ड जारी करने वाले संगठन यूआईडीएआई ने पहले ही ये कह रखा है कि उसका कार्ड नागरिकता का सबूत नहीं है। इसी तरह राशन कार्ड को भी नागरिकता का सबूत नहीं माना जाता है। ऐसे में अब सबकी नजरें सुप्रीम कोर्ट पर टिकी हैं कि बिहार में चुनाव आयोग के विशेष वोटर पुनरीक्षण को वो जारी रखने के पक्ष में फैसला देता है, या विपक्षी नेताओं की दलील को सही ठहराता है।