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Ayodhya Ram Temple Lord Ramlala Pran Pratishtha: प्राचीन काल से 2019 तक, जानिए अयोध्या के राम मंदिर का पूरा इतिहास

Ayodhya Ram Temple Lord Ramlala Pran Pratishtha: कल यानी सोमवार को भगवान रामलला के विग्रह की प्राण प्रतिष्ठा होनी है। ऐसे में एक बार फिर लोग राम मंदिर से जुड़े इतिहास और इसके लिए हुए आंदोलन को लेकर चर्चा कर रहे हैं। राम मंदिर के आंदोलन ने तमाम उतार-चढ़ाव और खूनखराबा भी देखा।

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अयोध्या। रामनगरी में भव्य राम मंदिर तैयार हो रहा है। राम मंदिर का पहला तल और उसमें गर्भगृह बन चुका है। इसी गर्भगृह में कल यानी सोमवार को भगवान रामलला के विग्रह की प्राण प्रतिष्ठा होनी है। ऐसे में एक बार फिर लोग राम मंदिर से जुड़े इतिहास और इसके लिए हुए आंदोलन को लेकर चर्चा कर रहे हैं। राम मंदिर के आंदोलन ने तमाम उतार-चढ़ाव और खूनखराबा भी होते देखा। आपको आज हम राम मंदिर से जुड़ी सभी दास्तानें बताने जा रहे हैं। रामायण के मुताबिक भगवान राम का जन्म अयोध्या में हुआ था और फिर उनके बेटे कुश ने अपने पिता का पहला मंदिर बनवाया था। उज्जैन के सम्राट विक्रमादित्य ने अयोध्या में इस प्राचीन मंदिर का जीर्णोद्धार कराया। हिंदू पक्ष का कहना है कि साल 1528 में मुगल बादशाह बाबर के हुक्म पर उसके सेनापति मीर बाकी ने अयोध्या में भगवान राम की जन्मभूमि पर बना मंदिर गिराकर उसके ऊपर बाबरी मस्जिद बनवा दी।

यूरोप के एक जियोग्राफर जोसेफ टिफेनथेलर ने अपनी किताब डिस्क्रिप्टियो इंडिया में लिखा कि अयोध्या में राम चबूतरा है। जोसेफ यहां 1766 से 1771 तक रहे थे। 1813 में पहली बार हिंदुओं ने दावा किया कि बाबर ने राम मंदिर तोड़कर मंदिर बनाया था। 1853 में इसी मुद्दे पर अयोध्या में सांप्रदायिक हिंसा भी हुई। फिर विवाद और गहराता रहा। 1857 में गदर के वक्त हिंदू और मुसलमानों में बाबरी को लेकर समझौता हो जाता, लेकिन फिर ये नहीं हो सका। 1858 में कुछ निहंग सिखों ने बाबरी ढांचे के भीतर घुसकर हवन किया और भगवान राम संबंधी नारे दीवारों पर लिख दिए। इसके बाद अंग्रेजों की सरकार ने बाबरी मस्जिद के बाहर बाड़ लगवा दी। साल 1885 में महंत रघुबीर दास ने राम चबूतरे पर मंदिर बनाने के लिए फैजाबाद के जिला कोर्ट में याचिका दी। इसे कोर्ट ने खारिज कर दिया। फिर मामला काफी दिन शांत रहा।

साल 1949 में अक्टूबर महीने की एक रात हिंदू पक्ष ने बाबरी मस्जिद के भीतर रामलला की प्रतिमा प्रकट होने का दावा किया। इस पर मुस्लिमों ने आरोप लगाया कि हिंदुओं ने खुद मूर्ति रखी है। इसके बाद बाबरी मस्जिद में ताला लगा दिया गया। साल 1950 में गोपाल सिंह विशारद ने केस कर राम चबूतरे पर पूजा की मंजूरी मांगी। फिर 1959 में निर्मोही अखाड़ा की तरफ से भी अर्जी दी गई। 1961 में यूपी सुन्नी वक्फ बोर्ड ने बाबरी मस्जिद पर अपना दावा किया। 1986 में फैजाबाद के जिला जज केएम पांडेय ने बाबरी का ताला खोलकर दर्शन की मंजूरी दी। 1989 में विश्व हिंदू परिषद ने राम मंदिर का शिलान्यास किया। फिर 1990 में बीजेपी के नेता लालकृष्ण आडवाणी ने राम मंदिर के लिए रथयात्रा निकाली। इसी साल अक्टूबर में कासेवकों ने बाबरी ढांचे में तोड़फोड़ की और फिर यूपी की तत्कालीन मुलायम सिंह सरकार ने फायरिंग करवाई। इसमें कई कारसेवकों की जान गई।

साल 1992 में कारसेवकों ने 6 दिसंबर को बाबरी मस्जिद के विवादित ढांचे को गिरा दिया। फिर कोर्ट में मुकदमा चलने लगा। साल 2002 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सुनवाई शुरू की और फिर 2010 में विवादित जमीन को रामलला विराजमान, निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी वक्फ बोर्ड के बीच 3 हिस्सों में जमीन बांटने का आदेश दिया। इस आदेश को 2011 में सुप्रीम कोर्ट में हिंदू और मुस्लिम पक्ष ने चुनौती दी। इसके बाद लगातार सुनवाई करते हुए नवंबर 2019 में सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की बेंच ने राम मंदिर बनाने के पक्ष में फैसला दिया। कोर्ट के आदेश पर अयोध्या के धुन्नीपुर में मस्जिद बनाने के लिए मुस्लिम पक्ष को 5 एकड़ जमीन दी गई। राम मंदिर का शिलान्यास 5 अगस्त 2020 को पीएम नरेंद्र मोदी ने किया था।

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