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Karnataka Election 2023: कर्नाटक का सियासी शोर गया थम…10 को चुनाव….13 को लगेगा पता…किसने मारी बाजी?

BJP and Congress

नई दिल्ली। आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर कर्नाटक में जारी चुनाव प्रचार शाम के पांच बजते ही थम गया। कल तक जो गलियां सियासी नुमाइंदों की आमद से गुलजार थीं, वो अब वीरान हो चुकी हैं। कांग्रेस, बीजेपी, जेडीएस सहित विभिन्न सियासी दलों के नेता लुभावने वादों के सहारे सूबे की जनता को रिझाने की पूरी कोशिश तो कर चुके हैं, लेकिन अब उनकी यह कोशिश कितनी सफल हो पाती है। इस पर सभी की निगाहें टिकी रहेंगी। बता दें कि कर्नाटक में आगामी 10 मई को चुनाव होने हैं। वहीं नतीजों की घोषणा 13  मई को होगी। ऐसे में उसी दिन स्पष्ट हो पाएगा कि सूबे में किसकी सरकार बनने जा रही है, लेकिन आइए जरा इस रिपोर्ट में जान लेते हैं कि आखिर किन–किन मुद्दों का जिक्र चुनाव प्रचार में हुआ?

पहले तो चुनाव प्रचार के केंद्र में बेरोजगारी, महंगाई और भ्रष्टाचार जैसे मुद्दे रहे। सत्ताधारी बीजेपी यह दावा कर रही थी कि उन्होंने अपने कार्यकाल में सूबे की जनता के हित में काम किया है, लिहाजा इस बार उन्हें सत्ता में आने का मौका मिलना चाहिए, तो वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस महंगाई, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार जैसे मसलों को लेकर बीजेपी की घेराबंदी कर दी थी। अगर देखा जाए, तो बीजेपी के पास भी कांग्रेस को घेरने के लिए कोई दमदार मुद्दा नहीं था। सियासी विश्लेषक बताते हैं कि पूरी राजनीतिक परिस्थिति कांग्रेस के ही पक्ष में थी, लेकिन फिर एकाएक पासा उस वक्त पलट गया, जब  कांग्रेस ने अपने मेनिफेस्टो में सत्ता में आने पर बजरंग दल पर बैन लगान का  ऐलान कर दिया। बता दें कि कांग्रेस ने ना महज बजरंग दल पर बैन लगाने की ऐलान कर दिया, बल्कि इस संगठन की तुलना प्रतिबंधित पॉपुलर फ्रंट आफ इंडिया यानी की पीएफआई से कर दी, जिसे लेकर बीजेपी कांग्रेस पर और हमलावर हो गई।

ध्यान रहे कि गत दिनों केंद्र की मोदी सरकार विभिन्न आतंकी गतिविधियों में संलिप्त होने के आरोप में पीएफआई पर प्रतिबंध लगा चुकी थी। इसके साथ ही उसके आर्थिक सम्राज्य को भी तहस-नहस किया जा चुका है। बीते दिनों यूपी एटीएस ने पीएफआई के 26 ठिकानों पर छापेमारी की थी और दो लोगों को भी गिरफ्तार कर लिया था। इस तरह से केंद्र सरकार की कड़ी कार्रवाई के नतीजतन पीएफआई का वजूद ही खत्म होने की कगार पर आ चुका है। पीएफआई पर राष्ट्र विरोधी गतिविधियों में संलिप्त होने के आरोप लग चुके हैं। जिसे देखते हुए केंद्र सरकार इस संगठन पर प्रतिबंध लगा चुकी है। लेकिन अब गत दिनों कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में इस पर किस तरह के प्रतिबंध की बात कही है? यह समझ से परे है।

इसके अलावा जिस तरह बीजेपी ने अपने मेनिफेस्टो में बजरंग दल पर बैन लगाने का ऐलान किया था, उस पर बीजेपी की ओर से तीखी प्रतिक्रिया आई थी। इसके साथ ही बीजेपी को कांग्रेस पर हमला बोलने का मौका मिला गया। कर्नाटक में 80 फीसद हिंदू हैं। ऐसे में बजरंग दल पर बैन लगाने के कांग्रेस के ऐलान के खिलाफ बीजेपी ने आक्रमक रूख अख्तियार कर सूबे के बहुसंख्यक  वर्ग को अपनी ओर  साधने की कोशिश की। बहरहाल, अब यह कोशिश कितनी सफल हो पाई है। यह देखने वाली बात होगी।

वहीं, बजरंग बली के साथ-साथ आरक्षण को लेकर भी जुबानी जंग देखने को मिली। दरअसल, कांग्रेस ने ऐलान किया कि अगर प्रदेश में उसकी सरकार बनी तो मुस्लिमों को 6 फीसद आरक्षण दिया जाएगा। जिसका बीजेपी ने विरोध किया। अमित शाह ने संविधान का हवाला देकर कहा कि धर्म के आधार पर आरक्षण  देने का प्रावधान संविधान में नहीं दिया गया है। बताया जाता है कि वर्तमान में मुस्लिम को 4 फीसद आरक्षण दिया जाता है, लेकिन कांग्रेस ने सत्ता में आने पर इसे  6 फीसद करने का वादा किया है। वहीं, आज अमित शाह ने एक इटरव्यू के दौरान सवाल भी किया कि कांग्रेस यह कह रही है कि वह सत्ता में आने पर मुस्लिम के आरक्षण को बढ़ाकर 4 से 6 फीसद कर दी। मैं यह जानना चाहता हूं कि आखिर वह 2 फीसद आरक्षण किसका काटेगी। एससी का। एसटी का। ओबीसी  का। सूबे की जनता को इसका जवाब चुनाव प्रचार खत्म होने से पहले चाहिए।

वहीं,  इस चुनाव प्रचार में विवादित बयानों की बयार भी खूब बही। कुलबर्गी में कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्य़क्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने पीएम मोदी को जहरीला सांप बता दिया। जिस पर बीजेपी ने जोरदार हमला बोला। इसके बाद उनके बेटे प्रियंक खड़गे ने पीएम  को नालायक बेटा कह दिया, जिसके बाद बीजेपी ने चुनाव आयोग का दरवाजा खटखटाया है। बता दें कि आयोग ने अब दोनों नेताओं को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है, तो इस तरह से आप बतौर पाठक समझ सकते हैं कि कैसे मुख्तलिफ मुद्दों को लेकर राज्य में विभिन्न दलों के बीच जुबानी जंग देखने को मिली। बहरहाल, अब सभी को इसी बात का इंतजार रहेगा कि सूबे में इस बार किसकी सरकार बनने जा रही है?

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