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Make In India in Chandrayaan 3 Mission: चंद्रयान-3 की सफलता में मेक इन इंडिया की भी बड़ी भूमिका, देश में बने इन दो यंत्रों का रोल समझिए

Chandrayan

नई दिल्ली। भारत के वैज्ञानिकों ने चांद पर सफलता से चंद्रयान-3 का विक्रम लैंडर उतार दिया है। विक्रम लैंडर के साथ गया प्रज्ञान रोवर भी चांद पर घूमकर तमाम शोध कर रहा है। खास बात ये है कि इसरो के इस चंद्रयान-3 में काफी कुछ मेक इन इंडिया भी है। जिन कुछ चीजों और यंत्र को चंद्रयान-3 अभियान में इसरो ने इस्तेमाल किया है, वे भारत में ही बने हैं। जबकि, पहले अंतरिक्ष में जो सैटेलाइट वगैरा भारत भेजता था, उनमें विदेश में बने ज्यादातर यंत्र लगाने पड़ते थे। इस तरह अब अंतरिक्ष के क्षेत्र में भी भारत आत्मनिर्भरता की ओर तेजी से बढ़ चला है।

सरकारी सूत्रों के अनुसार चंद्रयान-3 में इसरो ने लॉन्च विहेकिल यानी रॉकेट में भारत में बना विक्रम प्रोसेसर इस्तेमाल किया था। इसके अलावा विक्रम लैंडर में लगाया गया इमेज कॉन्फिगरेटर यंत्र भी भारत में बना है। दोनों ही यंत्र चंद्रयान-3 अभियान के लिए अहम रहे हैं। विक्रम प्रोसेसर और इमेज कॉन्फिगरेटर को पंजाब के मोहाली स्थित सेमीकंडक्टर लैब (एससीएल) में तैयार किया गया। संचार मंत्रालय के इस लैब ने दोनों अहम यंत्र तैयार कर इसरो को सौंपे थे। विक्रम प्रोसेसर के जरिए चंद्रयान को अंतरिक्ष में ले जाने वाले एलवीएम-3 रॉकेट का दिशापथ सटीक रखा गया। वहीं, इमेज कॉन्फिगरेटर के जरिए लैंडर के कैमरे में कैद हो रही तस्वीरों को प्रोसेस किया जा रहा है।

1990 के दशक तक भारत का अंतरिक्ष अभियान अमेरिका और रूस की मदद से चल रहा था। दोनों देशों से इसरो को अपने सैटेलाइट या तो बनवाने पड़ते थे या उनके लिए यंत्र खरीदने होते थे। भारत का पहला दूरसंचार उपग्रह एप्पल भी अमेरिका में ही बना था और वहां से लॉन्च किया गया था। अमेरिका के दबाव के कारण रूस ने समझौता करने के बाद भी इसरो को जीएसएलवी के लिए इंजन की तकनीकी नहीं दी थी। इसरो के वैज्ञानिक इससे हताश नहीं हुए और उन्होंने जीएसएलवी के लिए अपना इंजन तैयार किया। अब संचार समेत तमाम उपग्रह भी इसरो खुद बनाता है। इससे विदेशी मुद्रा और दूसरे देशों पर भारत की निर्भरता कम हुई है।

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