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Kolkata: 2013 में अहमदाबाद के एक कार्यक्रम के दौरान पीएम मोदी ने जो किया था ममता बनर्जी को उससे सीखना चाहिए

Mamata Banerjee & Narendra Modi

नई दिल्ली। कोलकाता में विक्टोरिया मेमोरियल में सुभाष चंद्र बोस की 125 वीं जयंती समारोह में जो कुछ हुआ वह पहले से ही संभावित सा लग रहा था। ममता बनर्जी यहां भी सियासी अवतार में नजर आईं। जबकि यह कार्यक्रम केंद्र सरकार के पर्यटन मंत्रालय के द्वारा आयोजित किया गया था। यह पूरी तरह से सरकारी कार्यक्रम था जिसके लिए पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी को भी आमंत्रित किया गया था। पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव नजदीक है। हालांकि अभी इसके लिए तारीखों की घोषणा नहीं हुई है। लेकिन जिस तरह से टीएमसी और भाजपा आमने-सामने हैं वहीं कुछ इस कार्यक्रम के दौरान ममता बनर्जी के स्वभाव में भी दिखा है।

ममता बनर्जी ने पहले तो कोलकता में इस दौरान 9 किलोमीटर लंबी पदयात्रा निकाली और जमकर भाजपा और केंद्र सरकार पर अपना गुस्सा जाहिर किया। लेकिन ममता यह भूल गईं की पीएम नरेंद्र मोदी का कार्यक्रम इसी दिन कोलकाता में होना है और उन्हें राज्य में आना है। सीएम ममता बनर्जी ने पीएम मोदी की अगुवाई के लिए अपने एक मंत्री को भेज दिया। बात तब तक भी ठीक थी लेकिन जब ममता नरेंद्र मोदी के साथ विक्टोरिया मेमोरियल पहुंचीं तो उनके चेहरे पर गुस्सा साफ नजर आ रहा था।

इस पूरे इवेंट के दौरान ममता बनर्जी और पीएम मोदी एक दूसरे से दूर-दूर ही चलते नजर आए। इसके बाद जब ममता बनर्जी बोलने के लिए मंच पर पहुंची तो दर्शक दीर्घा में बैठे कुछ लोगों ने ‘जय श्री राम’ और ‘वंदे मातरम’ के नारे लगाए। इस पर ममता भड़क उठीं और मंच से इसको अपनी बेइज्जती बताकर कुछ ना कहने की घोषणा कर दी और मंच से नीचे उतर गईं।

लेकिन ममता बनर्जी को 2013 में अहमदाबाद के उस कार्यक्रम से सीखने की जरूरत है जिसमें तब के तत्कालिन गुजरात के सीएम नरेंद्र मोदी और देश के पीएम मनमोहन सिंह मौजूद थे। यह कार्यक्रम गुजरात कांग्रेस की तरफ से सरदार बल्लभ भाई पटेल संग्रहालय के उद्घाटन के लिए आयोजित किया गया था। तत्कालीन सीएम नरेंद्र मोदी को तब इसके लिए न्यौता दिया गया था और उस वक्त उनका जो आचरण था उसके ठीक विपरीत आचरण सीएम ममता बनर्जी ने किया जो लोकतांत्रिक व्यवस्था में कतई उचित नहीं था।

29 अक्टूबर 2013 को तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह को अहमदाबाद में सरदार पटेल संग्रहालय का उद्घाटन करना था। यह कार्यक्रम गुजरात कांग्रेस के दिग्गज और पूर्व मंत्री दिनशा पटेल द्वारा आयोजित किया जा रहा था। यह सरदार पटेल की जयंती मनाने का कार्यक्रम था। कार्यक्रम का समय ऐसा था जब इसके ठीक बाद देश में आम चुनाव होना था और नरेंद्र मोदी राजग की तरफ से प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर स्वीकार कर लिए गए था। नरेंद्र मोदी के प्रति कांग्रेस और खासकर गुजरात कांग्रेस की सोच भी किसी से छिपी नहीं थी।

फिर भी जब मनमोहन सिंह अहमदाबाद में उतरे, तो हवाई अड्डे पर मोदी ने उनका स्वागत किया। इसके विपरीत, बनर्जी ने पीएम मोदी का स्वागता करने के लिए अपने एक मंत्री को भेजने को प्राथमिकता दी। इससे साफ पता चलता है कि विशेष अवसर विशेष नेताओं की सोच भी विशेष होती है। नेताओं के अलग-अलग राजनीतिक दल हो सकते हैं लेकिन वह महत्वपूर्ण राष्ट्रीय मुद्दों पर एक सोच रखते हैं।

संग्रहालय में कार्यक्रम के दौरान बड़े पैमाने पर कांग्रेस नेताओं के साथ मंच पर और दर्शकों में कांग्रेस समर्थक मौजूद थे। भरत सोलंकी से लेकर शंकरसिंह वाघेला तक सभी गुजरात के शीर्ष नेता इसमें मौजूद थे। भीड़ सीएम मोदी की बेहतर मेहमानबाजी के लिए तैयार नहीं थी। लेकिन, जब सीएम मोदी ने माइक संभाला तो गुस्से या बेचैनी का कोई निशान उनके चेहरे पर नहीं था। अपनी टिप्पणी में, उन्होंने अहमदाबाद नगरपालिका में अपने कार्यकाल के दौरान महिला आरक्षण, शहरी नियोजन और स्वच्छता पर अपने काम के अलावा सरदार पटेल की जमकर सराहना की। उन्होंने यूपीए सरकार से गुजरात को मिले विभिन्न पुरस्कारों पर भी प्रकाश डाला। सीएम मोदी ने यह भी संदेश दिया कि भारत में माओवाद और आतंकवाद सफल नहीं होगा। हालांकि मंच से उन्होंने एक राजनीतिक बात भी कही थी। उन्होंने बताया था कि क्यों सरदार पटेल भारत के पहले प्रधानमंत्री नहीं थे।

विक्टोरिया मेमोरियल में ममता बनर्जी का आचरण इसके विपरीत था। अहमदाबाद में डॉ. मनमोहन सिंह के विपरीत, पीएम मोदी ने कोलकाता में अपने लंबे भाषण में राजनीति को बिल्कुल नहीं आने दिया। उनके भाषण का फोकस नेताजी बोस थे। लोकतंत्र में राजनीतिक नेताओं और कैडरों के बीच क्रॉसफायर आम है, साथ ही स्वस्थ है, बशर्ते यह शालीनता और सम्मान के साथ किया जाए। 2013 में अहमदाबाद में और 2021 में कोलकाता में कई समानताएं थीं- भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख हस्तियों का दोनों जयंती कार्यक्रम था, विभिन्न दलों से संबंधित पीएम और सीएम दोनों में मौजूद थे।

लेकिन ममता बनर्जी जिस तरह से इस पूरे प्रकरण में केवल नारों से बौखलाकर नहीं बोलने का प्रण ले बैठीं। वहीं सीएम रहते हुए नरेंद्र मोदी ने जो अनुशासन और राजनीति बड़प्पन दिखाया था वह अनुकरणीय था। ममता बनर्जी को भी 2013 में नरेंद्र मोदी के द्वारा किए गए इस व्यवहार के काफी कुछ सीखने की जरूरत है।

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