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Delhi: किसान आंदोलन के सियासी होने का एक और सबूत आया सामने!, जिस MSP कानून के लिए अडे़ थे उसी पर बैठक से नेताओं ने बनाई दूरी

skm leaaders

नई दिल्ली। एक साल से ज्यादा वक्त तक कृषि कानूनों के खिलाफ किसान नेताओं ने साथियों संग धरना दिया। इस दौरान न्यूनतम समर्थन मूल्य MSP के मुद्दे पर भी मांग रखी। किसान नेताओं का कहना था कि एमएसपी की गारंटी का कानून बनना चाहिए। इसके बगैर वो आंदोलन तक खत्म करने के लिए तैयार नहीं थे। मोदी सरकार ने बीते दिनों एमएसपी पर चर्चा के लिए एक कमेटी बना दी। इसमें किसान संगठनों से उनके प्रतिनिधियों के नाम मांगे गए। इस कमेटी की पहली बैठक 22 अगस्त को होने वाली है, लेकिन किसानों के सबसे बड़े संगठन और आंदोलन में सबसे आगे रहने वाले संयुक्त किसान मोर्चा SKM ने अब तक सरकार को बैठक में शामिल होने वाले अपने सदस्यों के नाम तक नहीं भेजे हैं। ऐसे में अब सवाल ये है कि क्या किसान आंदोलन सिर्फ सियासी था?

एमएसपी पर होने वाली इस बैठक की अध्यक्षता पूर्व केंद्रीय कृषि सचिव संजय अग्रवाल को करना है। इसमें कृषि क्षेत्र के विशेषज्ञ भी हैं। अब तक किसान संगठन ने अपने 3 सदस्यों के नाम नहीं भेजे हैं। इससे लग रहा है कि एमएसपी पर होने वाली बैठक में उनकी तरफ से कोई हिस्सा नहीं लेगा। बता दें कि किसान आंदोलन के दौरान एसकेएम के सदस्य और बीकेयू के महासचिव राकेश टिकैत ने सबसे ज्यादा एमएसपी पर ही हल्ला मचाया था, लेकिन बैठक के बारे में उन्होंने भी चुप्पी साध ली है। टिकैत के अलावा एसकेएम के नेता योगेंद्र यादव ने भी इस मुद्दे पर अपना मुंह अब तक नहीं खोला है।

योगेंद्र यादव का एक बयान भी पिछले दिनों काफी वायरल हुआ था। इसमें वो कह रहे थे कि किसान नेताओं ने तो आंदोलन कर यूपी में सपा के अध्यक्ष अखिलेश यादव के लिए पिच तैयार की थी, वो ही बैटिंग न कर सके, तो हम क्या कर सकते हैं। वहीं, यूपी विधानसभा चुनाव के दौरान सपा की होर्डिंग में राकेश टिकैत की फोटो भी लगाई गई थी। अब बैठक के लिए नाम न भेजे जाने से ऐसा लग रहा है कि किसान आंदोलन सिर्फ यूपी विधानसभा चुनाव में बीजेपी के खिलाफ माहौल तैयार करने के लिए किया गया। अगर ऐसा न होता, तो एमएसपी की सबसे अहम मांग पर किसान संगठन और उसके नेता भला चुप्पी क्यों साधे रहते।

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