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Supreme Court On AMU: छिन सकता है एएमयू के अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा!, केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में कहा- संविधान के मुताबिक ये राष्ट्रीय चरित्र का

नई दिल्ली। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी यानी एएमयू पर सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला आना है। सुप्रीम कोर्ट की 7 जजों की बेंच सुनवाई कर रही थी कि एएमयू एक अल्पसंख्यक संस्थान है या नहीं। इस मामले में केंद्र सरकार ने अपनी राय कोर्ट में रखी है और एएमयू को अल्पसंख्यक संस्थान मानने से इनकार कर दिया है। अगर केंद्र की इस राय से सुप्रीम कोर्ट ने इत्तफाक जताया, तो इस फैसले के दूरगामी नतीजे देखने को मिल सकते हैं और ऐसे फैसले का अन्य अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों पर भी असर पड़ सकता है। इस मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस डॉ. डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस जेबी पारदीवाला, जस्टिस दीपांकर दत्ता, जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस सतीश शर्मा कर रहे हैं।

केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता के जरिए कहा कि एएमयू की स्थापना बनारस हिंदू विश्वविद्यालय यानी बीएचयू की तर्ज पर हुई और इसका राष्ट्रीय चरित्र है। इस वजह से इसे किसी खास धर्म का संस्थान नहीं माना जा सकता। तुषार मेहता ने कोर्ट में सरकार के जवाब में सुप्रीम कोर्ट के 1967 में अजीज बाशा मामले में दिए फैसले का भी जिक्र किया, जिसमें कोर्ट ने कहा था कि विश्वविद्यालय अपने लिए अल्पसंख्यक संस्थान के दर्जे की मांग नहीं कर सकता। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट की 7 जजों की बेंच में कहा है कि एएमयू की खास धर्म या धार्मिक प्रभुत्व रखने वाला संस्थान नहीं हो सकता। केंद्र का कहना है कि संविधान के मुताबिक कोई भी यूनिवर्सिटी राष्ट्रीय महत्व की होती है और इस परिभाषा के तहत भी एएमयू को अल्पसंख्यक संस्थान नहीं बताया जा सकता। इस पर वरिष्ठ वकील राजीव धवन का कहना था कि सरकार एएमयू के इतिहास को नजरंदाज करना चाहती है। उनकी दलील ये थी कि एएमयू से पहले इसका नाम मोहम्मडन एंग्लो ओरियंटल कॉलेज था। फिर 1920 में इसकी जगह एएमयू बनी।

एएमयू के नाम से दुनियाभर में प्रसिद्ध है अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी। सर सैयद ने इसकी स्थापना की थी।

सरकार ने एएमयू के अल्पसंख्यक संस्थान होने का विरोध करते हुए कोर्ट में एक और अहम बात कही। केंद्र ने कहा कि एएमयू को अल्पसंख्यक दर्जे की मांग से यूजीसी एक्ट से बचने की कोशिश भी है। यूजीसी एक्ट के तहत ही विश्वविद्यालय चलते हैं। केंद्र ने ये भी कहा कि एएमयू में एससी, एसटी, ओबीसी और आर्थिक रूप से पिछड़े छात्रों के दाखिले में रिजर्वेशन और पदों पर नियुक्तियों में कोटा से वंचित रखने की भी कोशिश है। कोर्ट ने इस पर संविधान के अनुच्छेद 30 का हवाला दिया और कहा कि इसे प्रभावी बनाने के लिए किसी अल्पसंख्यक समूह को इस तरह के दर्जे का दावा करने की जरूरत नहीं है। बता दें कि अनुच्छेद 30 के तहत अल्पसंख्यक समुदाय के शैक्षिक संस्थान बनाने की मंजूरी मिली हुई है। जबकि, बहुसंख्यक समुदाय के लिए ऐसा कोई प्रावधान संविधान में नहीं है। ऐसे में तमाम लोग इसे संविधान के तहत मिले बराबरी का अधिकार न बताते हुए अनुच्छेद 370 की तरह अनुच्छेद 30 को भी खत्म करने की मांग लगातार उठाते रहे हैं।

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