लखनऊ। बहुजन समाज पार्टी(बसपा) से कांग्रेस में शामिल हुए नसीमुद्दीन सिद्दीकी को मंगलवार को यूपी विधान परिषद की सदस्यता गंवानी पड़ी। विधान परिषद के सभापति रमेश यादव ने दलबदल कानून के तहत उन्हें अयोग्य घोषित कर दिया। नसीमुद्दीन सिद्दीकी बसपा के टिकट पर 23 जनवरी, 2015 को विधान परिषद के सदस्य बने थे। वह 22 फरवरी, 2018 को बसपा छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो गए थे, जिसके बाद बसपा ने नसीमुद्दीन की सदस्यता समाप्त करने के लिए विधान परिषद के चेयरमैन के समक्ष अर्जी दी, जिस पर मंगलवार को फैसला लिया गया।
इस मामले में नौ जुलाई को इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने 15 दिन के भीतर विधान परिषद के सभापति को फैसला लेने का निर्देश दिया था। इस दौरान हाईकोर्ट ने कहा था कि यदि 15 दिनों में फैसला नहीं लिया जाता तो याचिका में मांगे गए अंतरिम अनुतोष पर विचार किया जाएगा। नसीमुद्दीन सिद्दीकी 23 जनवरी, 2015 को बसपा कोटे से एमएलसी बने थे।
इलाहाबाद हाईकोर्ट में याची दिनेश चंद्रा की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता सतीश चंद्र मिश्रा और उनके सहयोगी वकील सुनील कुमार चौधरी ने दलील दी कि सदस्यता समाप्त करने की मांग वाली अर्जी पर तीन माह के भीतर फैसला सुनाने के सुप्रीम कोर्ट के स्पष्ट आदेश के बाद भी उप्र विधान परिषद के चेयरमैन ने गत 29 मई, 2019 को नसीमुद्दीन की सदस्यता समाप्त करने की मांग वाली अर्जी पर सुनवाई पूरी कर अपना निर्णय सुरक्षित कर लिया था, जो एक साल पूरा होने के बाद भी नहीं सुनाया जा रहा है।
गौरतलब है कि 10 मई, 2017 को बसपा के कद्दावर नेता नसीमुद्दीन सिद्दीकी और उनके बेटे को मायावती ने पार्टी से बर्खास्त कर दिया था। माया ने सिद्दीकी पर अनुशासनहीनता का आरोप लगाया था। इसके बाद सिद्दीकी ने मायावती पर 50 करोड़ रुपये की मांग का आरोप लगाते हुए कई अडियो मीडिया के सामने लाए थे। 10 महीने बाद नसीमुद्दीन सिद्दीकी ने कांग्रेस जॉइन की थी।