News Room Post

Kapil Sibal: ‘अब सुप्रीम कोर्ट से कोई उम्मीद नहीं…’, SC के फैसलों पर भड़के कपिल सिब्बल तो AIBA ने दिया करारा जवाब

kapil sibble

नई दिल्ली। यूं तो देश में रह रहे सभी लोगों के पास मौलिक अधिकार हैं। बोलने से लेकर कहीं आने जाने और अन्याय के खिलाफ न्यायालय का दरवाजा खटखटाने की स्वतंत्रता है। अगर किसी के साथ कुछ गलत होता है तो वो इंसान इसके लिए अदालत जा सकता है क्योंकि न्यायालय ही अधिकारों के तहत हमारी रक्षा करता है लेकिन तब क्या हो जब खुद एडवोकेट इसपर भरोसा करने से कतराने लगें। ये बात इसलिए क्योंकि सीनियर एडवोकेट और राज्यसभा सांसद कपिल सिब्बल ने हालिया बयान में ये कहा है कि उन्हें सुप्रीम कोर्ट से कोई ‘उम्मीद’ नजर नहीं आती है।

एक कार्यक्रम में कही ये बात

सुप्रीम कोर्ट को लेकर ये बात सिब्बल ने बातें एक कार्यक्रम के दौरान कहीं। सिब्बल ने गुजरात दंगों को लेकर तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को दी गई क्लीन चिट से लेकर प्रवर्तन निदेशालय (ED) के शक्तियों तक का जिक्र किया और दावा किया कि ‘संवेदनशील मामलों’ को केवल चुनिंदा न्यायाधीशों के पास ही भेजा जाता है। आमतौर पर कानूनी बिरादरी को पहले ही इस तरह के फैसलों की जानकारी होती है।

आप बहुत बड़ी गलती कर रहे हैं- सिब्बल 

एक समाचार एजेंसी के मुताबिक, दिल्ली में आयोजित एक कार्यक्रम में सिब्बल ने कहा कि अगर आपको ये लगता है कि सुप्रीम कोर्ट से राहत मिलेगी तो आप बहुत बड़ी गलती कर रहे हैं। मैं ये बात सुप्रीम कोर्ट में 50 साल प्रैक्टिस करने के बाद कह रहा हूं।’ भले ही कोर्ट की तरफ से कोई ऐतिहासिक फैसला सुनाया जाए लेकिन उससे जमीनी हकीकत बमुश्किल ही बदल पाती है।

इसके आगे सिब्बल ने कहा कि ‘इस साल मैं सुप्रीम कोर्ट में प्रैक्टिस के अपने 50 साल पूरे कर लूंगा। 50 साल पूरे करने के बाद भी मुझे ऐसा लगता है कि संस्थान से मुझे किसी तरह की कोई उम्मीद नहीं है। मैं उस कोर्ट के बारे में इस तरह की चीजें नहीं कहना चाहता लेकिन अब समय आ गया है। अगर हम नहीं बोलेंगे, तो कौन बोलेगा? सच्चाई ये है कि किसी भी तरह का कोई भी संवेदनशील मामला, जिसमें हम जानते हैं कि कोई परेशानी है, उन्हें कुछ ही न्यायाधीशों के सामने रखा जाता है और नतीजे हम जानते हैं।’

आपको बता दें कि ऑल इंडिया बार एसोसिएशन (AIBA) ने कपिल सिब्बल के बयान को ‘अवमाननापूर्ण’ बताया है। ऑल इंडिया बार एसोसिएशन के अध्यक्ष आदिश सी अग्रवाल का कहना है कि एक मजबूत प्रणाली भावनाओं से अलग होती है और केवल कानून का उसपर असर होता है। कपिल सिब्बल एक वरिष्ठ अधिवक्ता हैं। ऐसे में न्यायाधीशों और फैसलों को केवल इस वजह से खारिज करना उनके लिए उचित नहीं है, क्योंकि अदालतें उनके या उनके सहयोगियों की दलीलों से सहमत नहीं थीं। आगे AIBA अध्यक्ष ने कहा कि ये चलन में है कि अगर किसी के खिलाफ मामला होता है तो वो सोशल मीडिया पर जजों की निंदा करने लगते हैं। कपिल सिब्बल की ये टिप्पणी अवमाननापूर्ण है। सिब्बल की पसंद का फैसला नहीं दिया गया है, तो इसका मतलब ये नहीं होता कि न्यायिक प्रणाली हार गई है। अगर वास्तव में संस्था से उनका भरोसा खत्म हो गया है तो वो अदालतों के सामने पेश नहीं होने के लिए स्वतंत्र हैं।

Exit mobile version