नई दिल्ली। पेगासस स्पाईवेयर के जरिए विपक्षी नेताओं और मोदी सरकार विरोधी पत्रकारों के फोन की जासूसी का आरोप जांच में टांय-टांय फिस निकल गया है। ये खबर अंग्रेजी अखबार ‘हिंदुस्तान टाइम्स’ ने दी है। अखबार के मुताबिक इस मामले की जांच कर रही सुप्रीम कोर्ट की तकनीकी कमेटी ने 100 से ज्यादा मोबाइल फोन की जांच की और एक में भी पेगासस का कोई निशान नहीं पाया गया। जिन लोगों ने जांच के लिए अपने फोन दिए थे, उनमें शशि मेनन, संदीप शुक्ला, एन. राम, रूपेश कुमार, जगदीप छोकर, जॉन ब्रिटास, सिद्धार्थ वरदराजन, प्रोफेसर डेविड काये, जे. गोपीकृष्णन और परंजॉय गुहा ठाकुरता भी हैं।
साल 2021 में संसद के मॉनसून सत्र से ठीक एक दिन पहले आरोप लगा था कि दुनियाभर की सरकारों ने इजरायल की कंपनी एनएसओ के इस जासूसी सॉफ्टवेयर से अपने विरोधियों की जासूसी कराई। जिन लोगों का भारत में नाम आया था, उनमें कांग्रेस के नेता राहुल गांधी, चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर और मौजूदा आईटी मंत्री अश्विनी वैष्णव का भी नाम था। प्रियंका गांधी ने भी आरोप लगाया था कि उनके फोन की भी जासूसी हुई। इसके खिलाफ तमाम लोगों ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दी थी। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की खिंचाई करते हुए अपने पूर्व जस्टिस आरवी रवींद्रन की अध्यक्षता में तकनीकी विशेषज्ञों की एक कमेटी बनाई थी। हिंदुस्तान टाइम्स के मुताबिक अत्याधुनिक तकनीकी से इस कमेटी ने सारे मोबाइल फोन की जांच की, लेकिन किसी में भी पेगासस लोड किए जाने का कोई सबूत नहीं मिला।
इस मामले में जस्टिस रवींद्रन ने अखबार को कोई और जानकारी देने से इनकार कर दिया। उन्होंने कहा कि मामला अभी कोर्ट में है। सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस एनवी रमना, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस हिमा कोहली की बेंच कर रही थी। बेंच को सरकार ने बताया था कि राष्ट्रीय सुरक्षा का मामला होने की वजह से वो इस बारे में कुछ नहीं बता सकती। हालांकि, आईटी मंत्री अश्विनी वैष्णव ने संसद में अपने बयान में कहा था कि सरकार पर जासूसी कराने का जो इल्जाम लग रहा है, वो सही नहीं है।