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New Law: यूपी में दंगाइयों पर और सख्त हुई योगी सरकार, हिंसा में मौत या दिव्यांग होने पर दोषी को ही देना होगा पीड़ित को मुआवजा

yogi adityanath

लखनऊ। दंगाइयों के घरों पर बुलडोजर चलवाने के बाद अब यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने और सख्त रुख अपनाया है। यूपी में अब तक दंगे की सूरत में दंगा करने वालों को सार्वजनिक और निजी संपत्ति नष्ट होने पर हर्जाना देना होता था। अब दंगे में अगर किसी की जान गई या कोई दिव्यांग हुआ, तो उसका मुआवजा भी दंगा करने वालों को देना होगा। योगी आदित्यनाथ की सरकार ने विधानमंडल के दोनों सदनों से इस बारे में बिल पास कराया है। दंगाई को ये कहने का भी हक नहीं होगा कि मृतक या घायल व्यक्ति भी जिम्मेदार था। शुक्रवार को यूपी विधानसभा और विधान परिषद ने उत्तर प्रदेश लोक तथा निजी संपत्ति क्षति वसूली (संशोधन) बिल को पास कर दिया। संसदीय कार्य मंत्री सुरेश खन्ना ने बिल को पेश किया था। उन्होंने बताया कि दावा तय करने वाले प्राधिकरण को मौत या दिव्यांगता पर मुआवजा बढ़ाने का हक भी बिल के तहत दिया गया है।

संसदीय कार्य मंत्री ने दोनों सदनों में कहा कि सरकारी संपत्ति का नुकसान होने पर संबंधित दफ्तर के प्रमुख, निजी संपत्ति नष्ट होने पर उसका मालिक या न्यासी और किसी की मौत या दिव्यांगता पर उनके आश्रित या वो खुद दावा प्राधिकरण में मुआवजे के लिए वाद दाखिल कर सकेंगे। इसके लिए सिर्फ 25 रुपए का स्टांप शुल्क देना होगा। पहले दंगे की सूरत में क्षतिपूर्ति लेने के लिए घटना से 3 महीने तक की अवधि थी। इसे भी बढ़ाकर 3 साल कर दिया गया है। किसी की मौत या दिव्यांग होने के मामले में दंगाई को मुआवजे की रकम प्राधिकरण के फैसले के 30 दिन के भीतर जमा करनी होगी। सुरेश खन्ना ने बताया कि ऐसे मामलों में दावा प्राधिकरण खुद संज्ञान लेकर भी वाद दर्ज करा सकेगा।

दंगा होने पर दिव्यांगता की श्रेणी में उन लोगों को रखा गया है, जिनकी देखने और सुनने की ताकत पूरी तरह खत्म हो जाएगी। इसके अलावा शरीर के किसी अंग या जोड़ का अलग हो जाना भी इस श्रेणी में आएगा। अंग या जोड़ में ताकत खत्म होने और सिर या चेहरे के स्थायी तौर पर क्षतिग्रस्त होने पर भी दंगाई से मुआवजा वसूला जा सकेगा। इस बिल को पेश किए जाने पर बीएसपी और कांग्रेस की तरफ से प्रवर समिति में भेजने की मांग की गई। इस पर संसदीय कार्य मंत्री ने कहा कि 2011 में ही बीएसपी की सरकार ने इस बारे में आदेश जारी किया था। उसे अब कानून का रूप दिया जा रहा है। सदन ने इसके बाद बिल को प्रवर समिति को न भेजने का फैसला ध्वनिमत से किया।

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