नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट में आज यूं तो तमाम मामलों की सुनवाई होनी है, लेकिन एक सबसे अहम मामले में फैसला भी आना है। आपातकाल के दौरान 42वें संशोधन के जरिए संविधान की प्रस्तावना में बदलाव किए जाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट आज फैसला सुनाने वाला है। सुप्रीम कोर्ट में याचिका देकर कहा गया था कि अवैध तरीके से संविधान की प्रस्तावना को इंदिरा गांधी की सरकार ने बदला था। दरअसल, आपातकाल के दौरान जब विपक्षी नेता जेल में थे, उस वक्त 1976 में संसद के सत्र में इंदिरा गांधी की सरकार 42वां संविधान संशोधन बिल लाई थी और उसे पास कराया था। इस बिल के पास होने पर संविधान की प्रस्तावना बदली थी।
इंदिरा गांधी सरकार के बिल के पास होने के बाद संविधान में ‘समाजवादी’ और ‘पंथ निरपेक्ष’ शब्द जोड़े गए थे। जबकि, 1950 में लागू संविधान की प्रस्तावना में पहले ये दोनों शब्द नहीं थे। याचिका देने वालों का कहना है कि जब आपातकाल लगा हुआ था और एकतरफा तरीके से संविधान की प्रस्तावना को बदला गया। याचिका देने वालों ने सुप्रीम कोर्ट में ये दलील भी दी है कि समाजवाद जैसी विशेष राजनीतिक विचारधारा को संविधान का हिस्सा नहीं बनाया जा सकता। वहीं, उन्होंने ये भी कहा है कि संविधान की प्रस्तावना को 26 नवंबर 1949 को तत्कालीन संविधान सभा ने मंजूर किया था। ऐसे में बिना उस तारीख में बदलाव किए, प्रस्तावना को बदलना भी सही नहीं था। वहीं, सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान जजों ने अहम टिप्पणी की थी कि समाजवाद को कल्याणकारी राज्य के तौर पर माना जा सकता है।
संविधान की प्रस्तावना में बदलाव कर उसमें समाजवादी और पंथ निरपेक्ष शब्द जोड़े जाने पर विवाद लंबे समय से चलता रहा है। तमाम लोग इस तरह बदलाव के खिलाफ आवाज उठाते रहे हैं। इसकी वजह ये है कि आपातकाल के दौरान इंदिरा गांधी की सरकार ने विपक्षी नेताओं को जेल भेजा था और जब संविधान की प्रस्तावना में बदलाव किया जा रहा था, उस वक्त विपक्ष की तरफ से संसद में मौजूद नेताओं की संख्या इतनी नहीं थी कि वे इंदिरा गांधी सरकार के इस कदम के बारे में अपनी कोई राय रख पाते।