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सऊदी अरब से नहीं बनी बात, अब चीन की शरण में पहुंचा पाकिस्तान

shah mehmood qureshi and imran khan

इस्लामाबाद। पाकिस्तान (Pakistan) के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी (Foreign Minister Shah Mehmood Qureshi) ने कश्मीर (Kashmir) विवाद के संबंध में सऊदी अरब (Saudi Arabia) के नेतृत्व वाले इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC) के खिलाफ बयान दिया था, जिसके बाद सऊदी की ओर से तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की गई थी। अब पाकिस्तानी सैन्य प्रतिष्ठान दोनों इस्लामिक राष्ट्रों के बीच मधुर संबंधों को जोड़ने पर केंद्रित हैं। वहीं प्रधानमंत्री इमरान खान (Imran Khan)  का हालिया बयान, जो कि कुरैशी की चीन (China) यात्रा के साथ दिया गया है, वह इस्लामाबाद की बीजिंग के प्रति निष्ठा और झुकाव का संकेत दे रहा है। कुरैशी अब वरिष्ठ अधिकारियों के साथ चीन के हैनान में 20 और 21 अगस्त को चीन-पाकिस्तान विदेश मंत्रियों की रणनीतिक वार्ता के दूसरे दौर में हिस्सा ले रहे हैं। पाकिस्तान विदेश कार्यालय के अनुसार, “चीनी पक्ष का नेतृत्व चीनी काउंसलर और विदेश मंत्री वांग यी करेंगे।”

विदेश मामलों के मंत्रालय ने प्रेस विज्ञप्ति में कहा, “दोनों पक्ष बातचीत के दौरान अन्य चीजों के साथ ही कोविड-19, द्विपक्षीय संबंध और आपसी हित के क्षेत्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय सहयोग पर चर्चा करेंगे। यह यात्रा पाकिस्तान-चीन ऑल-वेदर स्ट्रेटेजिक को-ऑपरेटिव पार्टनरशिप को और मजबूत बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। चीन के साथ रणनीतिक संचार और मुद्दों पर गहरा समन्वय है।”

प्रधानमंत्री इमरान खान ने एक दिन पहले ही कहा था कि पाकिस्तान का भविष्य चीन के साथ जुड़ा हुआ है। अब इसके अगले ही दिन कुरैशी का यह दौरा इस्लामाबाद के अपने विश्वसनीय मित्र और साझेदार चीन के प्रति झुकाव के संकेत को दर्शाता है। एक टेलीविजन साक्षात्कार में खान ने कहा, “यह स्पष्ट किया जाना चाहिए कि हमारा भविष्य चीन के साथ जुड़ा हुआ है। दोनों देश एक-दूसरे के महत्व को समझते हैं और आपसी संबंधों को मजबूत कर रहे हैं।”

उन्होंने कहा, “दुर्भाग्य से पश्चिमी देश चीन के खिलाफ भारत का उपयोग कर रहे हैं।” यहां यह उल्लेख करना जरूरी है कि जहां पाकिस्तान विशेष रूप से कश्मीर मुद्दे पर ओआईसी के प्रदर्शन से खुश नहीं है, वहीं बीजिंग ने पाकिस्तान को खुश करने के लिए संयुक्त राष्ट्र जैसे वैश्विक मंच पर कश्मीर का मुद्दा उठाने पर अपना पक्ष मजबूत किया है। पाकिस्तान के चीन के साथ मेलजोल बढ़ाने के साथ, विशेषज्ञों का मानना है कि इस्लामाबाद वित्तीय निर्भरता और सऊदी अरब के साथ गठबंधन से दूर हो सकता है।

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