आगरा के मुगल म्यूजियम का नाम बदलकर यूपी की योगी आदित्यनाथ सरकार ने छत्रपति शिवाजी म्यूजियम करते हुए वहां शिवाजी के आगरा से जुड़े ऐतिहासिक तथ्यों को सहेजने का प्रयास किया है। इस प्रयास की सराहना की जानी चाहिए, लेकिन वोटबैंक के लालची विपक्ष को सरकार का यह निर्णय अभी पच नहीं रह है। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री इसे अपने चुनाव अभियान का हिस्सा बना रहे हैं। अपने एक ट्वीट में उन्होंने कहा है कि ‘आगरा में सपा के समय शुरू हुआ मुगल म्यूजियम सपा सरकार आने पर राष्ट्रीय एकता एवं बहुधर्मी साझी विरासत के नाम से जाना जाएगा। आने वाले समय में सपा इसमें महाराज अग्रसेन, राजमाता जीजाबाई, छत्रपति शिवाजी महाराज व शहीद भगत सिंह जी की प्रतिमा ससम्मान लगवाएगी।’
पहले की अपेक्षा वो इस मुद्दे पर थोड़ा नरमी दिखाते हुए शिवाजी महाराज के साथ अन्य हिन्दू राजाओं की प्रतिमा को स्थान देने की बात कर रहे हैं, लेकिन वे अपने पुराने और वोट की लालसा वाले एजेंडे पर कायम हैं। वे साफतौर पर कह रहे हैं कि मुगल म्यूजियम बहुधर्मी विरासत का हिस्सा होगा। लेकिन उन्हें इस बात का अहसास होना चाहिए कि विरासत सुखदाई हो तो ही अच्छी लगती है।
कड़वी यादों को याद कर लज्जित होना किसी को अच्छा नहीं लगेगा। विरासत को ऐसे प्रतीकों से जोड़ा जाता है जिसपर हमें फक्र हो, उनसे जुड़े किस्सों को सुनकर मन हर्षित और उत्साहित हो जाये और बार-बार उसका जिक्र करने की लालसा बनी रहे। ऐसी बातें जिनसे मन को पीड़ा हो, अपमानित होना पड़े को विरासत का हिस्सा कौन बनाना चाहेगा? बात साझी विरासत को हो तो दो या अधिक पक्षों सभी के साथ सुखद यादें जुड़ी हुई हों तो ही अच्छा है।
हां, यह बात झुठलाई नहीं जा सकती कि मुगल भारत के इतिहास का हिस्सा नहीं रहे हैं। लेकिन वे हमारी साझी या विरासत का हिस्सा हों यह जरूरी नहीं है। हम शिवाजी के उन किस्सों को अपनी विरासत का हिस्सा बनाना चाहेंगे जो मुगल आक्रांताओं से लड़कर, भारतीय माताओं, बहनों और लाखों निरपराध लोगों के जीवन की रक्षाकर बनाई है। हम अत्याचारों की बजाय गर्व करने वाले विषयों को अपनी विरासत का हिस्सा बनाएंगे। बलात्कार, हत्या और जबरन धर्मांतरण करने वाले मुगल राजाओं के अत्याचार के किस्से न तो हमारी विरासत का हिस्सा हो सकते हैं न ही वे भारतीय संस्कृति और इसकी विविधता से जुड़ ही सकते हैं।
आगरा में मुगल म्यूजियम अभी निर्माणाधीन है। 2016 में अखिलेश यादव की सरकार में स्वीकृत हुआ था, उन्होंने वोटबैंक को खुश करने की कीमत पर इसका नाम मुगल म्यूजियम रखा था। प्रदेश में 2017 में योगी सरकार का गठन हुआ तो, परंपरा और इतिहास की गौरवशाली धरोहर संजोई जाने लगी। योगी आदित्यनाथ का मानना है कि यह म्यूजियम इस क्षेत्र के सांस्कृतिक धरोहर वैभव को में प्रस्तुत करता है और आगरा से छत्रपति शिवाजी की स्मृतियां जुड़ी है। इसलिए अपनी संस्कृति और परंपरा पर गौरव की अनुभूति कराने के लिए शिवाजी के नाम पर म्यूजियम का नामकरण किया जा रहा है। भाजपा के साथ ही समान विचारधारा वाले संगठन भी इसका खुलकर समर्थन कर रहे हैं। इसके पीछे उनका यही तर्क है कि गुलामी की मानसिकता से बाहर आना होगा, मुगल आक्रांता थे और उनका महिमामंडन नहीं होना चाहिए।
यह पहला मौका है अब जब बात हो रही है, संस्कृति, सभ्यता और उसपर गर्व कराने वाली बातों, किस्सों प्रतीकों को महत्व दिया जा रहा है। यह केवल शिवाजी तक ही नहीं सीमित है बल्कि देश के असंख्य गुमनाम शूरवीरों की भी चर्चाएं हो रही हैं। इसका केवल वोट बैंक के नाम किसी को खुश करने के लिए अपने चुनावी लाभ के लिए विरोध करने की नीति ही बनाकर चलना अब किसी भी सूरत में उचित नहीं है। राजनैतिक दल इस बात को समझें और बेजा विरोध जी जिद को त्यागें तो ही वो भारत के सांस्कृतिक ताने बाने के लिए सही और लाभकारी साबित होगी।