कांग्रेस का अंदरुनी कलह उसको सत्ता के गलियारे से दूर रख रहा है। इस बात को पार्टी के सभी वरिष्ठ नेता भी अच्छी तरह से समझ रहे हैं। इसलिए पार्टी के आलाकमान की तरफ से सत्ता तक अपनी पहुंच बनाने के लिए ऐसे-ऐसे बेमेल गठबंधन किए जा रहे हैं जिसको पचा पाना कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं को भारी पड़ रहा है। कांग्रेस केरल में वामपंथी दल के खिलाफ चुनाव लड़ती है और वहां वह उसकी धूर विरोधी रही है। वही कांग्रेस सत्ता की चाभी पकड़ने के ख्याल में मस्त पश्चिम बंगाल में वामपंथी दलों के साथ मैदान में उतर आई है। वहीं इंडियन सेक्यूलर फ्रंट (ISF) के साथ गठबंधन की बात कांग्रेस के नेता ही नहीं पचा पा रहे हैं। वहीं बंगाल विधानसभा चुनाव की गूंज अब कांग्रेस और राजद के बिहार वाले गठबंधन में भी सुनाई देने लगी है। यहां भी सियासत चरम पर है। कांग्रेस इसके पहले ऐसे ही बेमेल गठबंधन के साथ महाराष्ट्र में सत्ता चला रही है। लेकिन इस बार कांग्रेस को उसके सहयोगी राजद ने ही झटका दे दिया है।
कांग्रेस राजद के साथ मिलकर बिहार और झारखंड में चुनाव लड़ चुकी है लेकिन इस बार कांग्रेस के खिलाफ पश्चिम बंगाल में टीएमसी का दामन थाम राजद उतर आई है। कांग्रेस और टीएमसी के बीच सीटों पर बात नहीं बना पाना राजद को भा गया और राजद ने इसका फायदा उठा लिया। तेजस्वी यादव ने ममता बनर्जी से मुलाकात कर उनके गठबंधन सहयोगी के रूप में चुनाव लड़ने की इच्छा जता दी और इस तरह कांग्रेस की पुरानी सहयोगी पार्टी ने उसे बड़ा झटका दे दिया।
दूसरी तरफ भाजपा और तृणमूल कांग्रेस बंगाल में अपने दम पर चुनाव मैदान में ताल ठोंक रहे हैं। लेकिन राष्ट्रीय जनता दल (राजद) द्वारा पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस को मदद देने की घोषणा के बाद से ही कांग्रेस की परेशानी बढ़ गई है। राजद के इस निर्णय से बिहार कांग्रेस के अंदर भी खलबली मच गई है। राजद नेता तेजस्वी यादव ने तो ममता बनर्जी को बिना शर्त समर्थन देने की घोषणा की है। ऐसे में पश्चिम बंगाल में अपना जनाधार मजबूत करने की सोच लेकर चली कांग्रेस के वोट बैंक में सेंध लगना तय है। लेकिन कांग्रेस को केवल यहीं नहीं बिहार में भी राजद के इस कदम से झटका लगतचा नजर आ रहा है। कांग्रेस के नेता पहले से राजद के साथ गठबंधन का बिहार में दवाब झेल रहे हैं। ऊपर से सोने पर सुहागा पश्चिम बंगाल में टीएमसी को राजद का समर्थन।
राजद के नेता मानते हैं कि पार्टी की जनाधार पूरे देश में मजबूत करना है तो समान विचारधारा वाले दलों के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ना जरूरी है। इसी क्रम में टीएमसी को साथ देने का फैसला तेजस्वी यादव की तरफ से लिया गया है। तेजस्वी की नजर पश्चिम बंगाल और असम में अपनी पार्टी के पांव जमाने की है। हालांकि असम में तेजस्वी कांग्रेस के साथ ही चुनाव लड़ने के मुड़ में हैं लेकिन पश्चिम बंगाल में उन्होंने जो किया वह बिहार कांग्रेस के नेताओं को झटका देने के लिए काफी है।
हालांकि कांग्रेस और राजद दोनों की सोच भाजपा के बढ़ते जनाधार को कम करने की है। लेकिन पश्चिम बंगाल में आते-आते मंजिल एक होने के बावजूद दोनों के रास्ते अलग-अलग हो गए हैं। कांग्रेस यहां तृणमूल के साथ मिलकर भाजपा को रोकने की कोशिश तो कर सकती थी लेकिन उसे पता है कि इससे पार्टी मजबूत होने के बजाय कमजोर हो जाएगी। इसलिए कांग्रेस ने टीएमसी के साथ गठबंधन के बजाय अलग गठबंधन बनाकर चुनाव मैदान में उतरना स्वीकार कर लिया है। तेजस्वी के द्वारा ममता बनर्जी को बिना शर्त समर्थन देने की बात बिहार कांग्रेस के नेताओं को इतनी नागवार गुजरी है कि वह अब राजद के इस फैसले का विरोध करने लगे हैं। पार्टी के नेता इस बात को बार-बार दोहरा रहे हैं कि राजद नेतृत्व ने इस मामले पर बिना कांग्रेस से बात किए अपना फैसला ले लिया है। राजद के इस कदम पर बिहार कांग्रेस के नेताओं को भरोसा तक नहीं हो रहा है।