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Presidential Elections: यशवंत सिन्हा के आगे क्यों नतमस्तक हुआ विपक्ष, आखिर ऐसी भी क्या मजबूरी थी?

नई दिल्ली। मंगलवार को आखिकारकार विपक्ष दलों ने राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार का ऐलान कर ही दिया। विपक्षी दलों ने आज सर्वसम्मति से  पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा को राष्ट्रपति पद के नाम पर मुहर लगा दी। इसकी घोषणा कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने की। आपको बता दें कि बीते कई दिनों से विपक्ष की तरफ से राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के रूप में सहमति नहीं बन पाई थी। इस मसले को लेकर बीते दिनों टीएमसी चीफ ममता बनर्जी ने विपक्षी दलों के नेताओं की बैठक भी बुलाई थी, जिसे लेकर बीते दिनों बहस भी देखने को मिली थी। वहीं, बतौर राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के रूप में पहले एनसीपी प्रमुख शरद पवार के नाम को आगे बढ़ाया गया था। इसके बाद नेशनल कांफ्रेंस प्रमुख फारुक अब्दुल्ला को राष्ट्रपति के उम्मीदवार बनने का प्रस्ताव दिया गया था, लेकिन उन्होंने भी राष्ट्रपति चुनाव लड़ने से साफ इनकार कर दिया था।इसके बाद महात्मा गांधी के पोते गोपालकृष्ण गांधी के नाम को भी आगे बढ़ाया गया था, लेकिन उन्होंने विपक्षी दलों को ठेंगा दिखा दिया था। वहीं, आज कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने बतौर राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के रूप में यशवंत सिन्हा के नाम पर मुहर लगाई है। बता दें कि यशवंत सिन्हा को केंद्रीय के कार्यकाल के दौरान ‘मिस्टर यू-टर्न’ के नाम से भी जाना जाता है।

लेकिन हैरान करने वाली बात ये है कि विपक्षी दलों ने एक ऐसे नाम पर मुहर लगाई है जो कभी सत्ताधारी भाजपा के प्रमुख नेता हुआ करते थे। अटल बिहारी सरकार में वित्त मंत्री रहे यशवंत सिन्हा को भाजपा के दिग्गज नेताओं में गिना जाता था। इसके अलावा वाजपेयी सरकार में वे विदेश मंत्री की कुर्सी पर भी बैठे थे। इसके साथ ही यशवंत सिन्हा एनडीए में रहते हुए कांग्रेस समेत तमाम दलों को निशाने पर भी लेते रहे। इतना ही नहीं जो विपक्ष विवादित ढांचा गिराए जाने को लेकर भाजपा और हिंदू संगठन का विरोध करते थे वहीं यशवंत सिन्हा इस मामले पर  पार्टी लाइन के साथ खड़े रहे थे। यशवंत सिन्हा को भारतीय अर्थव्यवस्था से जुड़े कई महत्वपूर्ण फैसले लेने के लिए भी जाना जाता है। उन्होंने वित्त मंत्री रहते हुए संसद में बजट पेश करने का समय बदला था। उन्होंने शाम 5 बजे की बजाय 11 बजे बजट पढ़ने का तय किया था।

इसके साथ यशवंत सिन्हा ने वित्त मंत्री रहते अपनी ही पूर्व की सरकार के कुछ नीतिगत फैसलों को भी बदला था। जिसको लेकर उस वक्त विपक्षी पार्टियों ने उन पर निशाना साधा था। बता दें कि यशवंत सिन्हा दिवंगत अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी के करीबी माने जाते थे। मगर सवाल ये उठाता है कि विपक्ष दलों ने यशवंत सिन्हा के नाम मुहार लगा दी। हैरत की बात तो ये है कि जो यशवंत सिन्हा कांग्रेस को मुख्तलिफ मसलों पर घेरते हुए आए है। आज उन्हीं को इन विपक्षी कुनबों ने खुशी-खुशी राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया। जो कि मौजूद वक्त में हास्यास्पद प्रतीत होता है। ऐसी कांग्रेस की क्या मजबूरी थी पार्टी ने आडवाणी के करीबी के नाम पर मुहर लगा दी। सवाल ये भी है क्या देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस या विपक्ष के पास कोई भी ऐसा बड़ा चेहरा नहीं है जिसको वो राष्ट्रपति चुनाव के लिए खड़ा कर सके?

बता दें कि राष्ट्रपति चुनाव के लिए 18 जुलाई को मतदान होंगे, जबकि मतगणना 21 जुलाई को होगी। इसके साथ ही 25 जुलाई को देश के नए महामहिम शपथ लेंगे। जानकारी के लिए बता दें कि वर्तमान में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का कार्यकाल अगले महीने 24 जुलाई को खत्म होने जा रहे हैं।

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