नई दिल्ली। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) और जमीयत उलमा-ए-हिंद समेत मुस्लिम संगठनों ने अब समान नागरिक संहिता (यूसीसी) के खिलाफ एकजुट होकर आवाज उठाई है। इन मुस्लिम संगठनों के प्रमुख नेताओं ने साझा बयान जारी कर मुस्लिमों से यूसीसी का विरोध करने का आह्वान किया है। साझा बयान में एआईएमपीएलबी के अध्यक्ष मौलाना खालिद सैफुल्लाह रहमानी और जमीयत के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी समेत 21 मुस्लिम नेताओं के दस्तखत हैं। इन सभी का कहना है कि यूसीसी शरीयत के खिलाफ है। इन मुस्लिम नेताओं का कहना है कि इस वजह से यूसीसी का हर हाल में विरोध करना जरूरी है।
साझा बयान में मुस्लिम नेताओं ने कहा है कि भारत के मुस्लिमों की पहचान उनके पर्सनल लॉ से गहराई से जुड़ी है। उनका कहना है कि पर्सनल लॉ को 1937 के शरीयत एप्लीकेशन कानून के तहत बनाया गया है। कुरान और हसीद के आलोक में शरीयत के नियमों के तहत तमाम कानून बने हैं और उम्माह (मुस्लिमों) के बीच इन्हें लेकर एकराय भी है। साझा बयान में मुस्लिम नेताओं ने कहा है कि इस वजह से वो भारत सरकार से मजबूती से मांग करते हैं कि वो यूसीसी लाने का विचार छोड़ दे। इन नेताओं का कहना है कि अगर यूसीसी लागू किया गया, तो वो मुस्लिम पर्सनल लॉ पर असर करेगा और संविधान के तहत देश के नागरिकों को मिले अपना धर्म मानने के मूलभूत अधिकार को भी खतरे में डालेगा।
संगठन के नेताओं ने साझा बयान में आगे कहा है कि इसी वजह से हम सभी मुस्लिम नागरिकों से आग्रह करते हैं कि वो यूसीसी पर राय ले रहे 22वें विधि आयोग को इस बारे में अपनी भावना मजबूती से बता दें। मुस्लिम नेताओं ने आगे कहा है कि लोग जब अपनी राय विधि आयो को दें, तो उसमें साफ तौर पर कहें कि वो यूसीसी को नकारते हैं। इन नेताओं ने सभी संगठनों और आम लोगों से विधि आयोग को ई-मेल या अन्य तरीके से यूसीसी के खिलाफ अपनी राय देने के लिए बयान में आग्रह किया है।