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शादियों के रजिस्ट्रेशन को लेकर इलाहाबाद HC का अहम फैसला, नहीं लगेंगी अब नोटिस बोर्ड पर तस्वीरें

नई दिल्ली। बुधवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने योगी सरकार को झटका देते हुए शादियों के रजिस्ट्रेशन को लेकर बड़ा फैसला सुनाया है। अपने फैसले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शादियों (Marriages) से पहले नोटिस प्रकाशित होने और उस पर आपत्तियां मंगाने को गलत बताया। कोर्ट का कहना है कि अगर ऐसा किया जाता है तो ये पूरी तरह से स्वतंत्रता और निजता के मौलिक अधिकारों का हनन है। अदालत ने इसके साथ ही विशेष विवाह अधिनियम की धारा 6 और 7 को भी गलत करार दिया है। कोर्ट के इस फैसले से अंतर-धार्मिक जोड़ों को राहत मिलेगी। कोर्ट ने कहा कि किसी की दखल के बिना अपनी पसंद का जीवन साथी चुनना किसी भी शख्स के मौलिक अधिकार के दायरे में आता है। ऐसे में अगर शादी कर रहे लोग अगर नहीं चाहते कि उनका निजी ब्यौरा सार्वजनिक किया जाय तो नहीं किया जाना चाहिए।

बता दें कि कोर्ट ने अपने फैसले में साफ शब्दों में कहा है कि ऐसे लोगों के लिए सूचना प्रकाशित कर उस पर लोगों की आपत्तियां न ली जाएं। इसके अलावा अदालत ने ये भी कहा कि, विवाह कराने वाले अधिकारी के सामने यह विकल्प रहेगा कि वह लड़के और लड़की, दोनों पक्षों की पहचान, उम्र और अन्य तथ्यों को सत्यापित कर ले।

दरअसल कोर्ट ने यह फैसला एक दंपति द्वारा दायर की गई याचिका पर दिया। मालूम हो कि सफिया सुल्ताना नाम की एक मुस्लिम लड़की ने अपने दोस्त अभिषेक से हिंदू बनकर शादी की थी, लेकिन सफिया के पिता इस शादी के खिलाफ थे और उसे उसके पति के साथ नहीं जाने दे रहे थे। इस मामले पर फैसला सुनाने के बाद कोर्ट ने सफिया और अभिषेक से जानना चाहा कि उन्होंने स्पेशल मैरिजेस एक्ट में शादी क्यों नहीं की? जिसमें नाम या धर्म बदलने की जरूरत नहीं पड़ती।

गौरतलब है कि इस पर उन्होंने बताया कि स्पेशल मैरिजेस एक्ट के तहत अगर इस तरह से शादी करनी हो तो इसके लिए अर्जी देने पर एक महीने तक लड़के और लड़की की फोटो एक नोटिस के साथ मैरिज अफसर के दफ्तर के नोटिस बोर्ड पर लगाई जाती है। नोटिस में लड़के और लड़की का पूरा पता बताया जाता है। इसके अलावा यह भी लिखा जाता है कि, अगर इनकी शादी से किसी को ऐतराज हो तो वह एक महीने के अंदर मैरिज अफसर से संपर्क कर सकता है।

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