नई दिल्ली। ‘मतभेदों को भुलाकर पार्टी को आगे बढ़ाएं’ का मंत्र कांग्रेस आलाकमान यानी गांधी परिवार ने बीते दिनों राजस्थान के उदयपुर में तीन दिनों के चिंतन शिविर के बाद नेताओं और कार्यकर्ताओं को दिया था। फिर इस मंत्र को खुद ही शायद भुला दिया। ऐसा इस वजह से कि राज्यसभा के लिए जिन 10 नेताओं को गांधी खानदान ने टिकट देने का फैसला किया है, उनमें उनके नेतृत्व पर सवाल खड़े करने वाले 22 नेताओं में से सबसे मुखर लोगों का नाम काट दिया गया है। इन 22 नेतृत्व विरोधी नेताओं में कांग्रेस ने सिर्फ मुकुल वासनिक और विवेक तनखा को ही टिकट दिया है।
गांधी खानदान के नेतृत्व के खिलाफ मुखर होकर बोलने वाले गुलाम नबी आजाद का नाम कांग्रेस की लिस्ट में नहीं है। इसके अलावा हिमाचल से राज्यसभा सांसद रहे और पूर्व मंत्री आनंद शर्मा का नाम भी नदारद है। लिस्ट में जिन नेताओं को जगह मिली है, उनमें से 8 हमेशा गांधी खानदान के वफादार रहे हैं और सोनिया के साथ राहुल गांधी के पक्ष में बोलते रहते हैं। ऐसे में सवाल ये उठ रहा है कि दूसरों को मिलकर रहने और मतभेद भुलाने की सीख देने वाला गांधी खानदान खुद क्यों नहीं इस पर अमल कर रहा है?
बता दें कि गांधी खानदान के नेतृत्व से असंतुष्ट 23 नेताओं ने बाकायदा सार्वजनिक तौर पर अपनी बात रखी थी। इस पर सोनिया गांधी ने नाराजगी जताई थी। इन नेताओं में शामिल कपिल सिब्बल शायद पहले ही समझ गए थे कि उनको कांग्रेस से राज्यसभा नहीं भेजा जाएगा। इस वजह से 16 मई को पार्टी से इस्तीफा देकर वो यूपी में अखिलेश यादव की सपा की मदद से राज्यसभा के लिए बतौर निर्दलीय परचा भर भी चुके हैं। अब देखना ये है कि गुलाम नबी और आनंद शर्मा जैसे नेता अगला कदम क्या उठाते हैं। आनंद शर्मा ने तो राज्यसभा में विदाई भाषण देते हुए पहले ही कहा था कि अब शायद यहां वो नहीं दिखेंगे।