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कोरोना पर ‘नो टेंशन’, केंद्र सरकार है सजग, ‘वायरस’ डरकर भागेगा अब

नई दिल्ली। कोरोना वायरस को महामारी घोषित करने के बाद विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन ने जो ताजा आंकड़े पेश किए हैं उसके मुताबिक यह दुनिया के 157 देशों में फैल चुका है। इसकी वजह से अब तक लगभग 6500 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है और इससे 1,70,000 लोग पूरी दुनिया में संक्रमित हैं। जबकि इस संक्रमण से लड़कर बाहर निकलने वाले की संख्या 78 हजार के करीब है। इसके 85 हजार से ज्यादा एक्टिव केस अभी भी पूरी दुनिया में हैं। वहीं इन सभी मामलों में 6 हजार के करीब लोग क्रिटिकल कंडीशन में नजर आ रहे हैं। जबकि 85 हजार के करीब मामले ऐसे हैं जिनको लगभग इस बीमारी से मुक्त घोषित कर दिया गया है या इनका अब अंतिम चरण में इलाज चल रहा है।

कोरोना की चपेट में अब आम आदमी से लेकर खास तक है। आपको बता दें कि स्‍पेन की मंत्री और ब्रिटेन की स्‍वास्‍थ्‍य मंत्री भी इससे संक्रमित हैं। इसके अलावा कनाडा के प्रधानमंत्री की पत्‍नी भी इसकी चपेट में हैं। इससे पहले इसकी चपेट में आने से ईरान के सर्वोच्‍च नेता अयातुल्‍ला खामनेई के प्रमुख सलाहकार की मौत हो चुकी है। विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन लगातार इसको लेकर चेतावनी जारी कर रहा है। डब्‍ल्‍यूएचओ द्वारा इसे महामारी घोषित किए जाने के बाद भारत के कई राज्‍यों ने भी इसको महामारी घोषित किया है। ऐसा केंद्र सरकार के निर्देश पर किया गया है। राज्‍‍‍‍‍‍यों में ये महामारी रोग अधिनियम-1897 के प्रावधान के तहत किया जा रहा है।

आपको बता दें कि यह कानून राज्य एवं केंद्र सरकार को किसी महामारी का प्रसार रोकने के लिए अतिरिक्त शक्तियां प्रदान करता है। केंद्र सरकार के निर्देश पर राज्यों ने इस कानून को लागू करना शुरू कर दिया है। इसमें सरकारी आदेश को न मानने पर गिरफ्तारी एवं सजा तक देने का प्रावधान है। इस कानून को मुंबई में फैली प्लेग की महामारी से निपटने के लिए बनाया गया था। इस कानून का इस्तेमाल तब किया जाता है, जब लगता है कि किसी महामारी को रोकने के लिए सामान्य कानून पर्याप्त नहीं है। गौरतलब है कि अब से पहले वर्ष 2009 में स्वाइन फ्लू को महामारी घोषित किया गया था। आपको यहां पर ये भी बता दें कि केंद्र सरकार इस कानून को उस वक्‍त लागू करती है जब उसको लगता है कि महामारी को रोकने के लिए उठाए गए सभी कदम नाकाफी साबित हो रहे हैं। ऐसे में वह इस कानून का सहारा लेती है।

इस महामारी से पीड़ित टॉप-10 देशों में चीन (80981 मामले), इटली (12462 मामले), ईरान (9000 मामले), रिपब्लिक ऑफ कोरिया (7983 मामले), फ्रांस (2281 मामले), स्‍पेन (2140 मामले), जर्मनी (1567 मामले), यूएसए (987 मामले), स्विटजरलैंड (815 मामले) और जापान (620 मामले) शामिल हैं।

कोरोना के प्रकोप को टीका विकसित करके ही खत्म किया जा सकता है। टीके के विकास के लिए चीन, अमेरिका सहित कई देशों में शोध चल रहे हैं। भारत में भी इसके लिए प्रयास चल रहा है। पहले भी असरदार टीकों के दम पर ही भारत चेचक व पोलियो मुक्त हुआ। इसके अलावा कई संक्रामक बीमारियों पर अंकुश लगा है। इसलिए टीके घातक बीमारियों से जीवनरक्षा में वरदान साबित हुए हैं लेकिन कोरोना का टीका विकसित होने में एक साल से डेढ़ साल समय लग सकता है। जब हम टीके के विकास की बात करते हैं तो उसका मतलब दो चीजें होती हैं। पहला इनफ्लुएंजा जैसी बीमारी के टीके जो पहले से मौजूद हैं फिर भी हर साल नया टीका तैयार करना पड़ता है।

ऐसे टीके का विकास आसान होता है। क्योंकि उसके स्ट्रेन के बारे में पहले से मालूम है। नोवेल कोरोना वायरस दुनिया में नया वायरस है। दिसंबर से पहले इस वायरस के बारे में किसी को बिल्कुल मालूम हीं नहीं था। इसलिए नए टीके का विकास इतना आसान काम नहीं है। शोध में कई चीजों का ध्यान रखना होता है। सबसे अहम बात यह है कि टीका वायरस को बढ़ने न दे। वह स्वास्थ्य के लिए सुरक्षित हो। टीका तैयार होने के बाद पहले जानवरों पर परीक्षण करना पड़ता है कि वह प्रभावी है भी या नहीं। फिर इंसानों पर क्लीनिकल परीक्षण कर यह देखना होता है कि उसका इस्तेमाल कितना सुरक्षित है।

अब जानते हैं टीके के इतिहास को। टीके को अंग्रेजी में वैक्सीनेशन कहा जाता है यह शब्द लैटिन भाषा के वैक्सीनस से बना है। जिसका अर्थ होता है गाय या उससे संबंधित। 18वीं सदी के उत्तरादर्ध में फ्रांस के महान माइक्रोबॉयोलाजिस्ट लुई पाश्चर ने जर्म थ्योरी ऑफ डिजीज दी। इसी बुनियाद पर उन्होंने चिकेन पॉक्स, कॉलरा, रैबीज और एंथ्रेक्स के टीके विकसित किए। लेकिन माना जाता है कि वास्तविक रूप से टीकाकरण का इतिहास अंग्रेज चिकित्सक एडवर्ड जेनर के समय से शुरू हुआ। 1976 में जेनर ने पाया कि जो महिलाएं डेयरी उद्योग में काम करती हैं और वे काऊपॉक्स से संक्रमित होती हैं, लेकिन उन्हें चेचक नहीं होता। अपनी अवधारणा को साबित करने के लिए उन्होंने फार्म में काम करने वाले एक युवा के बाएं हाथ में चीरा लगाकर उसे काऊपॉक्स के विषाणुओं से संक्रमित कर दिया। हालांकि इस लड़के को चेचक नहीं हुआ। इस बात की पुष्टि होने के बाद उन्होंने चेचक का टीका बनाया। यह बीमारी उन दिनों महामारी बनकर लाखों लोगों का जीवन असमय निगल जाती थी।

मतलब साफ है कि कोरोनावायरस से निपटने के लिए टीके को इजाद करने में अभी बहुत समय लगने वाला है। ऐसे में भारत जैसे सघन आबादी वाले देश में अगर इस महामारी ने पैर पसार लिया तो क्या होगा। इसको सोचकर ही लोग डर उठते हैं हालांकि सरकार की तरफ से एहतियातन जो भी कदम उठाए गए हैं उनके हिसाब से अभी तक मामला पूरी तरह से नियंत्रण में नजर आ रहा है। लेकिन आपको बता दें कि किसी भी महामारी के चार चरण होते हैं। कोविड-19 भी इससे अलग नहीं है। इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च के अनुसार भारत में कोविड का प्रकोप अभी दूसरे चरण में है। इस चरण के तहत संक्रमण उन्हीं व्यक्तियों तक सीमित रहता है जो इस महामारी से गंभीर रूप से प्रभावित देशों की यात्रा से लौटे हों या आए हों। सामुदायिक रूप से इसके संक्रमण फैलने में या इस प्रकोप के तीसरे चरण में फैलने में अभी लगभग तीस दिन का समय शेष बताया जा रहा है। ऐसे में भारत के पास अभी बहुत कुछ करने का समय है।

ऐसे में आपको इस महामारी से खुद को बचाने के लिए फिल्म शोले का वह एक डॉयलाग याद रखना होगा जिसको अपने जीवन में उतारकर आप कोरोना वायरस से लड़ने में अपनी मदद कर सकते हैं। फिल्म शोले का वह डॉयलाग है, गब्बर के ताप से तुम्हें एक ही आदमी बचा सकता है, एक ही आदमी…खुद गब्बर। और कोरोना के ताप से आपको सिर्फ एक ही आदमी बचा सकता है, वह हैं आप खुद। आप अपने प्रतिरक्षा तंत्र को इतना मजबूत बना दीजिए कि कोरोना वायरस आपके शरीर में प्रवेश ही न कर सके। इस प्रतिरक्षा तंत्र को हासिल करने के लिए बहुत मशक्कत भी नहीं करनी है। संतुलित खुराक लीजिए उसी से आपका स्वस्थ प्रतिरक्षा प्रणाली काम करती रहेगी। वैज्ञानिक प्रमाणों के साथ ऐसी बहुत सी चीजें हमारे दैनिक जीवन में ही सुलभ हैं, जिनसे हम अपने प्रतिरक्षी तंत्र को कोरोना का कवच बना सकते हैं। ऐसे में अपने आसपास के लोगों के बीच इसको लेकर जागरुकता फैलाएं और इस वायरस के फैलने से रोकने में समाज और देश का सहयोग करें।

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